Friday, February 22, 2019

मिजोरम की चोटियाँ



दो दिनों का अन्तराल, जून गोहाटी गये हैं कल. उन्हें जून के पूर्व मुख्य अधिकारी को विदाई भोज के लिए घर पर बुलाना है. शनिवार को उन्हें निमंत्रित करने गये पर वे लोग शायद शहर से बाहर गये थे. दोपहर को उसने बगीचे से तोड़ी ब्रोकोली के चावल बनाये और शाम को कच्चे केले की सब्जी. इस वर्ष भी सर्दियों की सब्जियां इतनी हो रही हैं कि महीनों से वे आलू, प्याज, टमाटर, खीरा आदि के अतिरिक्त बाजार से कुछ नहीं खरीद रहे हैं. कल एक सखी के यहाँ से योगानन्द जी की एक पुस्तक मिली, गॉड टॉक्स विथ अर्जुन, अच्छी है. उनके भीतर निरंतर युद्ध चल रहा है. आत्मा और अहंकार के मध्य. अहंकार है देहभान तथा आत्मा है कृष्णभान. सारा दारोमदार इस बात पर है कि इस युद्ध में कौन जीतता है. सामने नीला आकाश है और उस पर श्वेत बादल, हवा बह रही है, जिसका स्पर्श सुखद है और सुखद है देह के भीतर तरंगों का स्पर्श भी !

सुबह से बादल बने हैं पर बरस नहीं रहे हैं. तीन दिन फिर किन्हीं व्यस्तताओं में गुजर गये. आज शाम को तीन परिवारों को रात्रि भोज पर बुलाया है. काफी काम हो गया है, थोड़ा शेष है. कुछ कार्य जून को करना है, कुछ नैनी को. आज सिलापत्थर  में एक बंगाली समूह ने असम के छात्र संघठन के दफ्तर पर हमला किया, उसी के विरोध में असम  बंद का एलान किया गया है. काफी दिनों से असमिया-बंगाली शांति से रह रहे थे, अचानक यह बदलाव कहाँ से आ रहा है. तीन दिन बाद होली है. उसने सोचा, वे आज ही होली भोज का आयोजन कर रहे हैं. अगले हफ्ते उन्हें मिजोरम की यात्रा पर निकलना है.

सुबह पौने छह बजे वे असम से रवाना हुए थे. सवा आठ बजे फ्लाईट डिब्रूगढ़ के मोहनबारी हवाईअड्डे से चली और पौने दस बजे कोलकाता पहुंची. जहाँ तीन घंटे प्रतीक्षा करने के बाद दोपहर एक बजे स्टारलाइंस-एयर इंडिया के विमान ने आइजोल के लिए उड़ान भरी. हवाईअड्डे पर कई मिजो लड़के-लडकियाँ थे, सभी काफी प्रसन्न, जरा उनसे नजरें मिलाओ तो मुस्कुराने को तैयार ! छोटी सी फ्लाईट थी लगभग पचास मिनट की, ऊपर से सैकड़ों मीलों तक फैली हरियाली से ढकी पर्वतों की श्रृंखलायें दिख रही थीं, एक के बाद एक पहाड़ों की चोटियाँ, घाटियाँ नहीं के बराबर. दोपहर दो बजे वे मिजोरम के लुंगपेई हवाईअड्डे पर पहुंचे, जहाँ कई सुंदर छोटे-छोटे बगीचे फूलों से भरे थे. बाहर निकले तो हर तरफ वृक्षों की कतारें. शहर से काफी दूर है हवाईअड्डा, लगभग सवा घंटा पहाड़ों के सान्निध्य में छोटी सी पतली सड़क पर यात्रा करने के बाद कम्पनी के गेस्ट हॉउस पहुंचे. यह हल्के हरे रंग से रंगी चार मंजिला इमारत है. रास्ते में बांसों के झुरमुट और फूल झाड़ू के पेड़ बहुतायत में दिखे. दो तीन जगह पिकनिक स्पॉट जाने के मार्ग बताते बोर्ड दिखे. स्वादिष्ट नाश्ता करके शहर घूमने निकले. पूरा शहर या कहें पूरा प्रदेश ही पहाड़ियों पर बसा है, सडकें ऊंची-नीची हैं, कहीं-कहीं तो खड़ी चढ़ाई है, लेकिन यहाँ के ड्राइवर इतने अभ्यस्त हैं कि ऐसी सड़कों पर आराम से वाहन चला लेते हैं. उसने एक पारंपरिक मिजो ड्रेस खरीदी. यहाँ के लोग कुत्तों से बहुत प्रेम करते है. एक महिला को देखा स्कूटर पर एक कुत्ते को शाल में लपेटे ले जा रही थी, जैसे कोई अपने बच्चे को ले जाता है. याद आया, एक मिजो लड़की यात्रा में उनके निकट बैठी थी, जो हैदराबाद में ब्यूटी पार्लर में काम करती है, अब छुट्टियों में घर जा रही थी. उसने बताया था, मिजोरम में कोई स्ट्रीट डॉग नहीं होता. सडकों पर महिलाएं और बच्चे ज्यादा नजर आ रहे थे, सभी प्रसन्न मुद्रा में.

4 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 22/02/2019 की बुलेटिन, " भाखड़ा नांगल डैम" पर निबंध - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. Replies
    1. स्वागत व आभार महेंद्र जी !

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