चार दिनों बाद परसों वे यात्रा से लौट आये. सोचा था कि
रसोईघर व स्टोर में सफेदी का कार्य पूरा हो चुका होगा पर अभी भी एक दो-दिन का
कार्य शेष था. आज सुबह मृणाल ज्योति गयी नये वर्ष में पहली बार. जून ने कुछ डायरी
दी थीं उन्हें देने के लिए और एक पुराना लैप टॉप. उसने बच्चों को योग कराया और
बिस्किट बांटे. वापसी में बाजार में लाल गाजरें मिल गयीं, यहाँ कम ही मिलती हैं,
ज्यादातर नारंगी रंग की चिकनी गाजरें होती हैं. दोपहर को स्टोर में सब सामान लगाया.
गाजर का हलवा बनाया. शाम को क्लब में मीटिंग हैं, योग कक्षा में आने वाली महिलाओं
में से जो वहाँ जाएँगी, उन्हें अपने शाम के कार्य पहले निपटाने होंगे. योग तो छोड़ा
जा सकता है पर दूसरे कार्य कहाँ ? तभी तो जीवन में योग फलीभूत नहीं होता. आज जून
को गोहाटी जाना था, घर से साढ़े बारह बजे से पहले ही चले थे, पर अभी तक एअरपोर्ट पर
ही बैठे हैं सभी यात्रीगण, फ्लाईट अब सात बजे जाएगी.
आज निकट के एक गाँव में मृणाल ज्योति की एक कर्मी के विवाह का निमत्रंण था,
लगभग ढाई घंटे वहाँ रुकी. पहली बार असमिया शादी के ‘जुरून’ रस्म को इतने निकट से
देखा. अच्छा लगा. उन्हें भी यह रस्म निभानी होगी. जून से बात हुई वह गोहाटी में ब्रह्मपुत्र
नदी पर बने पुल पर ट्रैफिक में अटके हुए थे, कहने लगे एक-डेढ़ घंटा ज्यादा लग
जायेगा गंतव्य तक पहुँचने में. सुबह एक सखी का फोन आया, शाम को आग जलाकर उसी में सिकी
रोटी खाने के लिए, उसे इस कार्य में दक्षता हो गयी है.
सुबह उठते ही ध्यान में बैठी. भीतर जैसे कोई फिल्म चलने लगी हो. पुराने जन्म
के सिलसिले जो इस जन्म तक चले आये हैं, दिखे, साक्षी भाव से सबको देखते रहो तो कुछ
भी नहीं होता. दोपहर को नैनी के घर से लड़ने की आवाजें आ रही थीं, पर कोई
प्रतिक्रिया नहीं हुई भीतर. आत्मा में रहो तो कितना चैन है, कुछ नहीं छूता. मैत्री,
करुणा, मुदिता व उपेक्षा सहज ही घटते हैं. जो कर्म प्रारब्ध के रूप में फल देने के
लिए प्रस्तुत हो चुके हैं, वे क्षीण हो जाते हैं, जब कोई साधना करता है. जून
गोहाटी से लौट आये हैं, बांस के बने दो कलात्मक मूढ़े लाये हैं और भी कुछ कलापूर्ण
वस्तुएं, जैसे लकड़ी के गिलास, एक गैंडा, बेंत की टोकरी आदि, आने वाले मेहमानों के
लिए सुंदर उपहार ! टाटा स्काई पर गुरूजी को सुन पाती है आजकल, अच्छा लगता है, वे
ध्यान भी करवाते हैं. जिसे सुनते-करते वे प्राणायाम भी कर लेते हैं. कल शाम उस सखी
के यहाँ आग में शकरकंदी भी भूनी, अच्छा रहा सारा कार्यक्रम, उस सखी में बहुत ऊर्जा
है.
आज ठंड बहुत अधिक है. दोपहर के एक बजे हैं, वह लॉन में धूप में बैठी है. पीठ
पर तपन महसूस हो रही है. एक योगाचार्य से सुना कि शरीर को जितना विटामिन डी चाहिए,
उसके लिए कम से कम पौन घंटा धूप में रहना चाहिए. आज सुबह स्कूल गयी तो रास्ते में सह
शिक्षिका ने जो बात बताई, उससे मन बेचैन है. कल अख़बार में भी ऐसी ही एक खबर पढ़ी. मानव
के भीतर के पशुत्व को बताती बात, छोटे-छोटे बच्चों को उस पशुत्व का शिकार होने की
बात. हर मानव के भीतर पशु भी छिपा है और देव भी, कोई किसे जगाना क्घहता है यह उस
पर निर्भर करता है. उस शिक्षिका ने उसे बताया की वह परेशान है और अब उसने अपनी
परेशानी उसे दे दी है. मालिन से पूछताछ करने के बाद ही जून को बताना होगा. यदि यह बात
सच हुई तो आगे की कार्यवाही भी करनी होगी.
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