आज नेता जी का जन्मदिन है. बंगाली
सखी की बिटिया का जन्मदिन भी है, सुबह उससे बात हुई. कल शाम को एक भोज में गयी थी.
कुछ परिचित महिलाओं से बात हुई, यूँ ही इधर-उधर की बातें. एक पुरानी परिचिता जो अब
यहाँ नहीं रहतीं, उनका फोन नम्बर भी लिया. सामने बगीचे में तरह-तरह के फूल खिले
हैं व पंछियों की आवाजें आ रही हैं. अगले महीने पिताजी से मिलने घर जाना है दिल्ली
होते हुए.
शाम हो गयी है, यानि एक और दिन बीतने में कुछ ही घंटे शेष हैं. आज सुबह कितनी
देर से उठे वे, कारण, रात को देर तक नींद का न आना.. उसका कारण कल शाम को तीन-साढ़े
तीन घंटे व्यर्थ ही बातों में बिता देना. जीवन को इतना भी हल्के में नहीं लेना चाहिए
कि जीवन से रस ही चला जाए. मन को भी विश्राम चाहिए और जैसे कोई गायक रोज रियाज
करता है, वैसे ही साधक को रोज ही साधना करनी होती है. थोड़ी सी भी लापरवाही मन को
मूल से दूर ले जाती है और वह बिन जल की मछली की तरह तड़पता है. परमात्मा से एक क्षण
की भी विलगता अब सहन नहीं होती. जब दरिया भीतर बहता ही है तो क्यों कोई प्यासा
रहे. कल शाम को मंझली भाभी ने भतीजी के रिश्ते की बात बतायी. पंजाब का परिवार है,
लड़का विदेश में रहकर नौकरी करता है. ईश्वर चाहेगा तो इसी वर्ष उसका भी विवाह हो
जायेगा. नैनी की सास ने चार संतरे लाकर दिए हैं जो उसका बड़ा बेटा अरुणाचल प्रदेश के
संतरे के बगीचे से लाया है. आज बड़े भाई से बात की, वह खुश लग रहे थे.
रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं. शाम को लेडीज क्लब की मीटिंग में गयी, एक सदस्या
के लिए कविता पढ़ी. एक सखी की माँ अस्वस्थ है, अस्पताल में है, वह उससे मिलने गयी
है. जून अभी तक आये नहीं है. ऑडिट चल रहा है उनके दफ्तर में. शाम को योग कक्षा
हुई, अगले हफ्ते दो दिनों के लिए एक साधिका को कहा है, अपने घर में करवा लें. कल
शाम से पहले ही नन्हा अपने मित्रों के साथ आ जायेगा. घर में चहल-पहल हो जाएगी. शाम
को बगीचे की सफाई करवाई. दोपहर को कुर्सियां और बगीचे के छाते भी आ गये हैं. जून घर
का सामान भी ले आये हैं, यानि तैयारी पूरी है और उसने नन्हे और उसकी भावी पत्नी के
लिए कविता भी लिख दी है जिसे जून ने प्रिंट कर दिया है. आज चारों ब्लॉग्स पर पोस्ट
प्रकाशित भी कीं. दोपहर को दूध गैस पर रखकर सो गयी, उबल कर गिर गया, विश्राम की
कीमत !
साढ़े दस बजने को हैं, मौसम आज बादलों भरा है. नन्हा और उसके मित्र कोलकाता
पहुँच चुके हैं. दो घंटे बाद अगली फ्लाईट है. भोजन बन चुका है, जून आज देर से आने
वाले हैं, उनका मन लेकिन इधर ही लगा हुआ है. वर्षा होने से पूर्व ही फोन करके कहा,
सूखी लकड़ियाँ गैराज में रखवा दे, जो मेहमानों के आने पर एक रात्रि उन्हें जलानी
हैं. सुबह-सुबह एक सखी आई थी, खुश थी, चाहती है नन्हे को स्वयं जाकर बंगाली सखी को
बुलाना चाहिए, पर उसे लगता है इसकी कोई जरूरत नहीं है. उसने जो ठान लिया वह करके
ही रहेगी, इसलिए जो होता है सब ठीक है. वर्षा होकर रुक गयी है, पूरे लॉन में पत्ते
बिखर गए हैं. उन्होंने कल ही अच्छी तरह सफाई करवाई थी. Really God Loves Fun!
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