आज सुबह वे चार बजे से भी पहले उठ गये और पांच बजे से पहले
तैयार भी हो गये. हल्का सा नाश्ता किया और जून ने ड्राइवर को फोन किया. वह लगभग
बीस किमी दूर एक गाँव में रहता है, गोरखा बंद के कारण उसे एक सुरक्षा कर्मी भी
अपने साथ लेते हुए आना था, किन्तु उसने बताया आधे रास्ते में ही धरना देने वाले लडकों
ने उसकी कार को रोकर चाबी उससे ले ली है और अब उसके पास आने के लिए कोई साधन नहीं
है. कुछ पलों के लिए वे परेशान हुए फिर उसे समझाया, वह घर चला जाये और उन लडकों का
नम्बर ले ले. उन्होंने सुरक्षा अधिकारी को इस वारदात की खबर भी कर दी, जिसने सहायता
का वादा किया. जून ने एक दूसरे ड्राइवर को फोन किया वह अपने स्कूटर से आया और उनकी
कार में लगभग पचास किमी दूर हवाई अड्डे ले गया. गनीमत है रास्ते में और किसी ने
नहीं रोका. एक बात और अच्छी हुई, जून बिजनेस क्लास में थे, उसका टिकट भी किसी
स्कीम के कारण अपग्रेड हो गया और आरामदायक यात्रा के बाद वे ग्यारह बजे कोलकाता
पहुंच गये. गेस्टहाउस जाकर सामान रखा और विवाह के लिए कुछ आवश्यक खरीदारी करने
निकल पड़े, लौटकर सदा की तरह स्वादिष्ट भोजन और फिर रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़े.
रेल यात्रा भी सुखद थी. शाम की चाय शताब्दी ट्रेन में भारतीय रेल के सौजन्य से
मिली. रात्रि आठ बजे वे धनबाद पहुंच गये. होटल का नाम है १७ डिग्री, पारंपरिक साज-सज्जा
से सुशोभित यह होटल सुविधाजनक है. रात्रि भोजन के बाद कुछ देर टहलने के लिए गये.
हवा ठंडी थी और भली लग रही थी. अब निद्रा का समय है.
रात्रि के दस बजे हैं, अभी-अभी वे आईएसएम धनबाद के यूनियन क्लब के बैंकेट हॉल
से लौटे हैं. शाम सात बजे पहुँचे थे. लोहे की बड़ी-बड़ी पिंजरेनुमा अंगीठियों में
कोयले के लाल अंगारे दहक रहे थे. कोयले की नगरी में आकर कोयले का ऐसा रूप देखना तो
स्वाभाविक ही है. कार्यक्रम आरम्भ भी नहीं हुआ था कि चायनीज बेबी कॉर्न व सूप
परोसा गया, पहली बार छऊ नृत्य देखने का सौभाग्य मिला. बेहद आकर्षक नृत्य था
जिसमें सभी कलाकार पुरुष थे. जो पौराणिक कथाओं पर आधारित था, पारंपरिक वाद्य यंत्र
थे जिन्हें कई अधेड़ व वृद्ध उम्र के कलाकार बजा रहे थे, एक मुख्य गायक था.
उन्होंने वीडियो भी बनाया और तस्वीरें उतारीं. उसके बाद टीवी कलाकार तान्या
मुखर्जी का कार्यक्रम था, जो सुरीले गीत गा रही थीं. वे थक गये थे सो जल्दी ही
भोजन करके होटल लौट आये. ठंड काफी थी, तापमान १४ डिग्री था जो अग्नि के पास बैठने
पर महसूस नहीं हो रहा था. शाम को वे विरसा-मुंडा पार्क देखने गये थे, जो काफी
विशाल था पर वे थोड़ा सा भाग ही देख पाए. सुबह नौ बजे आईएसएम, जो अब आईआईटी बन गया
है, पहुंच गये थे, कार्यक्रम लगभग दस बजे आरम्भ हुआ. दोपहर बाद जून को पेपर प्रस्तुत
करना था. कार्यक्रम अच्छा था, काफी लोगों को सुना. कल पुनः सुबह साढ़े नौ बजे ‘शक्ति
मन्दिर’ होते हुए उन्हें यहाँ आना है. दोपहर ढाई बजे तक कार्यक्रम है.
रात्रि के नौ बजे हैं, वे होटल लौट आये हैं, आज यहाँ तीसरी और अंतिम रात्रि है. पैकिंग कर ली है और पालक
व हरी सब्जियों का भोजन भी. शाम को बाजार से भावी वधू के लिए आभूषण खरीदे. सुबह
शक्ति मन्दिर के दर्शन किये. मन्दिर अत्यंत विशाल व स्वच्छ था, पर द्वार के बाहर भिखारियों
की लंबी कतार थी, जैसे पूरे के परिवार वहाँ थे, हर उम्र की औरतें, बच्चे और पुरुष.
मानव होने की गरिमा से अनभिज्ञ कितने अभागे. सम्मान का जीवन क्या होता है, उन्हें
पता ही नहीं. वहाँ से वे कैंपस गये, उसे कैंपस दिखाने के लिए एक विद्यार्थी को कह
दिया गया था, जिसने पहले प्रयोगशाला दिखाई, फिर अन्य दो विद्यार्थियों ने पूरा क्षेत्र
दिखाया. यह संस्था १९२६ की बनी हुई है तथा उस जमाने की विशाल इमारतें अभी तक
सुरक्षित हैं और शानदार हैं. उसके बाद वह पुस्तकालय में बैठी रही. हिन्दी की
पुस्तकें पढ़ीं. नरेंद्र कोहली की स्वामी विवेकानन्द पर आधारित पुस्तक, राहुल सांस्कृतायन
के पत्र तथा अशोक वाजपेयी की एक पुस्तक जिसमें कई निबन्ध थे, अधिकतर कविता से
जुड़े. तन्मय तथा राजेन्द्र ने स्टूडेंट एक्टिविटी सेंटर दिखाया, जो काफी बड़ा था
तथा जिसमें अनेक कक्ष थे. लगभग हर क्षेत्र में रूचि रखने वाले छात्रों के लिए कोई
न कोई क्लब था. योग, नृत्य, खेल, रेडियो, साहित्य, कला तथा अन्य कई. उन छात्रों ने
कालेज के बारे में कई रोचक बातें बतायीं. जैसे, धनीराम चाय वाला जिसकी तीन पीढ़ियाँ
उसकी दुकान को चला रही हैं. दोपहर का भोजन वहीं किया. धनबाद कोयले की राजधानी है,
वे झरिया भी गये जहाँ दूर-दूर तक कोयले का क्षेत्र था, जहाँ आग लगी हुई थी तथा
जगह-जगह धुआं भी निकल रहा था. ड्राइवर सुदर्शन उन्हें कोलकाता ले जायेगा. भोजन के
बाद कैंपस में बगीचा देखा, जहाँ फूलों की बहार थी. विभिन्न प्रकार के फूल वहाँ की
शोभा को बढ़ा रहे थे. माली काम में लगे थे, उनके इस सुंदर कार्य की प्रशंसा की, तस्वीरें
उतारीं.
रात्रि के नौ बजे हैं, वे कोलकाता गेस्टहाउस लौट आये हैं, लकड़ी के फर्श और
ऊंची-ऊंची दीवारों वाला यह सुंदर गेस्टहाउस उन्हें अपने घर जैसा ही लगता है. अभी-अभी
भोजन किया, मेथी-आलू, भिंडी और मूंग की दाल के साथ छोटी फूली हुई रोटी, यहाँ का
भोजन भी घर जैसा होता है. आज दिन में भी कुछ खरीदारी की. सब सामान पैक हो गया है
और कल सुबह वापस घर जाना है.
No comments:
Post a Comment