Wednesday, February 22, 2017

ओले और वर्षा


नया वर्ष आरम्भ हुए दस दिन हो गये और आज पहली बार लिखने का समय मिला है. आजकल दिन अस्पताल और घर दोनों जगह की खोजखबर लेते ही बीत जाता है. सुबह सवा चार पर नींद खुली, मन में विचारों का ताँता लगा था, अब तो विचार चित्रों के रूप में दीखते हैं और सजग होते ही न जाने कहाँ खो जाते हैं. साक्षी भाव का अनुभव साधना है, अन्यथा मन में उठने वाली छोटी सी लहर भी तरंगित कर देती है. किसी विचार को रोकने जाओ तो वह टिक जाता है क्योंकि उसे ऊर्जा दे दी, सम्मान दे दिया. विचार रास्ते पर गुजर जाने वाले वाहनों जैसे ही हैं, जो आते हैं और चले जाते हैं. नदी की धारा में बहने वाले सामानों जैसे भी, आकाश पर उड़ने वाले बादलों जैसे भी, जो अभी हैं और अभी नहीं. यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है सो कुछ भी सत्य नहीं है, जो इनका साक्षी है बस एकमात्र वही सत्य है. उसमें टिकना आ जाये तो मन स्वतः शांत हो जाता है.

कई दिनों से हो रही वर्षा के कारण ठंड बहुत बढ़ गयी है. पूरे देश में ही वर्षा, बर्फ, ओले व कोहरे का प्रकोप जारी है. सर्दियों का मौसम अपनी पूरी सेना लेकर आया है. सद्गुरू को सुना, सहज भाव से प्रश्नों के उत्तर दे रहे थे. सहज रहना तभी सम्भव है जब किसी को कर्म के फल के प्रति आसक्ति न हो. सहजता. सरलता यदि स्वभाव बन जाये तो परमात्मा दूर नहीं है. वह हर क्षण उनके साथ है, वे ही अपनी नासमझी में उसे भुलाकर ढूँढने का नाटक करते हैं. जैसे कोई चश्मा नाक पर लगाकर खोजने का प्रयास करे. उसके सिवाय उन्हें कुछ चाहिए भी नहीं, फिर भी इधर-उधर हाथ-पांव मारते हैं, वही उनका सुहृद है, हितैषी है, यह मानते हुए भी दुनिया का मुँह तकते हैं. उसने उन्हें दाता बनाया है, वे दाता हैं, फिर क्यों मंगते बनें. उसने ‘एक जीवन एक कहानी’  पुनः लिखना शुरू किया है. अन्य पुरुष में लिखना ही ठीक रहेगा.

जून आज बड़ी ननद की बड़ी बेटी की शादी में सम्मिलित होने चले गये, भांजी की शादी में उसका जाना तो सम्भव नहीं है. नन्हा वहाँ पहले से ही पहुंच गया है. कल विवाह है. दोपहर बाद वह अस्पताल गयी, सिक्योरिटी गार्ड्स को बीहू के लिए तिल के लड्डू दिए. पिताजी ने कहा, उसकी एक सखी ने फोन करके कहा है, वह सुबह उन्हें अस्पताल से घर ले जाने आएगी, उन्हें अच्छा लगा है. माँ आज भी बेचैन लग रही थीं. उन्हें तकलीफ हो रही है, पर शब्दों में कह नहीं पाती हैं.  

दो दिनों का अन्तराल. जून आज आ रहे हैं. सुबह गहरा ध्यान लगा. अब जबकि ध्यान सधने लगा है, लगता है उसे ध्यान करना आता भी है या नहीं. उसे कुछ भी नहीं पता, ऐसा भाव भी होता है. परमात्मा ही जाने क्या हो रहा है, वह तो अब है ही नहीं, यदि वास्तव में ऐसा है तो यह लिख कौन रहा है, लिखने वाला हाथ है, कलम है, देह है, मन है, बुद्धि है, पर ये सब तो वह नहीं है. जो वह है वह निराकार है, शुद्ध चैतन्य है. आज एक लेखिका व ब्लॉगर महिला का संदेश फेसबुक पर आया है. वह उसकी कविताएँ अपने अगले कविता संग्रह में छापना चाहती हैं ! उसने दीदी की बड़ी बिटिया के लिए कार्ड बनाया उसके विवाह की सालगिरह है आज, एक कविता भी लिखी. शाम को एक विवाह में भी जाना है, हो सका तो उसके लिए भी एक कविता लिखनी है. जून माँ के इलाज के सिलसिले में आज डिब्रूगढ़ गये हैं.

एक परिचिता का फोन आया, उनके बेटे की मंगनी हो गयी, उन्हें कल ही फेसबुक से पता चल गया था. रात को लौटे जून और अभी माँ के लिए दोपहर का भोजन ले गये हैं, अब दो दिन उसे अकेले रहना है परमात्मा के साथ, ‘वह’ ही रहे नूना न रहे अब ऐसा ही भाव होता है. दीदी ने उसका चौथा ब्लॉग भी पढ़ना शुरू किया है. धीरे-धीरे और भी पाठक मिलेंगे. आज धूप कितनी तेज है, बैठा नहीं जा रहा है. कल सिहरन हो रही थी, ऐसा ही जीवन है कभी धूप कभी छांव. एक और भी जीवन है, महाजीवन..जो सदा एकरस है. मधुमय और ज्योतिर्मय..कल एक पुरानी परिचिता से वर्षों बाद मिली, उन्हें अब तक उसकी कविता की स्मृति थी. कविता दिल से निकलती है और दिल परमात्मा से..परमात्मा प्रेम से..प्रेम अमर है सो कविता भी अमर है !


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