Monday, February 27, 2017

तेज पत्ते का पेड़


मन के भीतर उपजा एक छोटा सा शब्द या विचार मन की शांति को भंग करने में समर्थ है, यह तो अच्छा है कि यह उनके हाथ में है उसे उपजाएँ या नहीं, लेकिन तभी तक जब तक वे सजग रहते हैं. एक बार बेहोशी में कोई विचार उपजाया तो बात हाथ से निकल सकती है और ऊपर से तुर्रा यह कि वह शब्द एक बीज बनकर भीतर जम जायेगा और भविष्य में आलंबन मिलने पर पुनः पनप सकता है. लेकिन शब्द का जन्म किसी न किसी कामना के कारण होता है, कामना ही हर दुःख के जड़ में है, कोई उसे प्रेम का नाम दे यह उसकी स्वतन्त्रता है पर भीतर कहीं भय है जो कामना को जन्म देता है और यह भय अकेले रह जाने का है, इसका मूल भी तो मृत्यु के भय में है. वे मरना नहीं चाहते किन्तु आत्मा में स्थित रहें तो मृत्यु का भय नहीं और आत्मा में रहें तो अकेलेपन का भी भय नहीं और कामना का तो वहाँ प्रश्न ही नहीं उठता. हर कामना अभाव से उपजती है, आत्मा पूर्ण है वहाँ कोई अभाव नहीं. जीवन कितना सुंदर है और वे इसे कुरूप बनाने में लगे रहते हैं. वे उन दुखों को पैदा कर लेते हैं जिनका वास्तव में कोई अस्तित्त्व ही नहीं है, वे संशय के जाल में स्वयं को फंसा लेते हैं, जहाँ विश्वास के फूल खिले हैं. उनका दुःख के प्रति लगाव तो देखते ही बनता है. वे उगते हुए सूर्य में अंगारे खोज लेते हैं और बहते हुए धारे में तलवारें खोज लेते हैं. जो उनके पास है उसकी कद्र करने की बजाय  उसके खो जाने के अज्ञात भय में रातों की नींद गंवा देते हैं !

‘जो तू है सो मैं हूँ’ इस उक्ति को जाने कितनी बार कहा, सुना था. आज पूरी तरह से अनुभव भी कर लिया. कल रात्रि सोने से पूर्व अस्तित्त्व जैसे उस पर बरसा. ऐसा अनुभव पहली बार हुआ, अज्ञात ने जैसे उसे चारों और से घेरे में ले लिया थे. अचिंतनीय भावों की वर्षा हो रही थी. शांति इतनी सघन थी कि..और तब प्रतीत हुआ कि जैसे वह है इस देह में अपनी यात्रा पूर्ण करती हुई वैसे ही अन्य आत्माएं हैं सबके साथ प्रेम का ही नाता है. जो वह है वही वे हैं, कोई भेद है ही नहीं, तभी उनके द्वारा किसी को कहा गया कटु वचन उन्हें भी दुःख दे जाता है और उनके द्वारा किसी को कहा गया प्रेमपूर्ण वचन उन्हें ही तृप्त कर जाता है क्योंकि उन्होंने स्वयं को ही कहा होता है. मन और आत्मा दोनों ही परमात्मा की सन्तान हैं, आत्मा सुर है मन असुर, आत्मा कृष्ण है और मन कंस है, मन जब तक अर्जुन नहीं बन जाता उसे मरना होगा. भक्त होकर ही मन आत्मा से एक हो जाता है, रावण होकर वह आत्मा का विरोध करता है, विभीषण होकर उसकी शरण में जाता है. जून का फोन आया था सुबह, वह उसका सच्चा मीत है, उसकी आत्मा है, उसे उसने कुछ मूर्खतापूर्ण शब्द कहे जो स्वयं को ही चुभने लगे, उससे क्षमा मांगी, मन हल्का हो गया. सुबह ध्यान के वक्त भीतर कविताएँ जन्म ले रही थीं. असीम है सद्गुरू की कृपा..उनकी कृपा ही उसे यहाँ तक लायी है, परमात्मा की चौखट पर लाने वाले उसके प्यारे सद्गुरू को कोटि कोटि प्रणाम उसने भेजे.

सरदारनी आंटी को कार्ड, फूल व छोटा सा उपहार देकर आयी है. अब उनके दिल्ली जाने से पहले सम्भवतः एकाध बार और उनसे मिलना हो. आज दायीं तरफ की पड़ोसिन का फोन आया, वे लोग भी तबादले के कारण दिल्ली जा रहे हैं. जून के एक और सहकर्मी भी जा रहे हैं, एक दिन तो सबको छोड़ना ही था, अच्छा है एक-एक कर सब बिछड़ रहे हैं. मन मुक्त रहेगा जितना उतना परमात्मा में टिकेगा. आज सुबह ध्यान में एक आकृति दिखी पहले भी कई बार दिखती है, कौन है वह ? क्या है ? कौन जानता है, कोई दिव्य आत्मा या उसका कान्हा स्वयं ही ! जून आजकल बहुत शांत हो गये हैं, वे भी अध्यात्म के पथ के यात्री हैं. परमात्मा कभी भी किसीकी पुकार अनसुनी नहीं करता, वह अनंत है, वे उसकी एक बूंद कृपा के भी आकांक्षी नहीं हो पाते अहंकार के कारण.
कल उन्हें यात्रा पर निकलना है, तैयारी अभी शेष है. मन एक भिन्न उल्लास का अनुभव कर रहा है. अभी कुछ देर पूर्व धोबी आया था, पुराना कम्प्यूटर जो उसे दिया था, चला ही नहीं, कह रहा था लौटा जायेगा. आज कढ़ी बनाई है. पिताजी को ताजा तेजपत्ता व कढ़ी पत्ता घर ले जाने का मन है. जून के मना करने के बावजूद ढेर सारे हरे पत्ते वह अपने सूटकेस में रख रहे हैं. यदि कपड़ों में कोई दाग लग जाये या गंध भर जाये इसकी परवाह किये बिना. 

2 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "मैं सजदा करता हूँ उस जगह जहाँ कोई ' शहीद ' हुआ हो ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. स्वागत व बहुत बहुत आभार !

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