कल रात को
एक और स्वप्न..मन न जाने कितने गड्ढे, कितने गहरे तल छिपाए है और अवचेतन मन न जाने
कितना व्यर्थ भी अपने में समाये है. वासना और कामना, लोभ और अहंकार सभी के बीज
भीतर हैं ही..यहाँ हर व्यक्ति अपने भीतर एक गहरा कुआँ समोए है और एक अनंत आकाश भी.
वे जो अन्यों की तरफ ऊँगली उठाते हैं पहले अपने भीतर झाँक कर देखना चाहिए. एक मन
जिसने जान लिया, सारे मन उसने जान लिए. यहाँ सभी एक ही कीचड़ से उपजे हैं और कमल
बनने की सभी को छूट है. लोगों का आपस में मिलना अकारण नहीं है, न जाने कितने
जन्मों में वे एक दूसरे के मान-अपमान का सुख-दुःख का कारण बने हैं. कितनी बार
उन्होंने फूल भी उगाये हैं और कांटे भी. माँ की हालत बिगड़ती जा रही है, उनका मस्तिष्क
अब साथ नहीं दे रहा है, पिताजी बहुत परेशान रहने लगे हैं.
पिछले
तीन दिन डायरी नहीं खोली. परसों सुबह एक सखी के यहाँ आयोजित धार्मिक उत्सव में भाग
लेने वह मोरान गयी थी, शाम को लौटी, उसी दिन माँ बिस्तर से उठकर बाथरूम जाते समय
चक्कर आने से गिर गयीं. उनके दाहिने कूल्हे में चोट लगी है. इस समय वह अस्पताल में
हैं, जून और पापा भी उनके साथ हैं. बहुत दिनों बाद पूरे घर में वह अकेले ही है.
आज माँ
का अस्पताल में दूसरा दिन है, न जाने कितने दिन, कितने हफ्ते या कितने महीने
उन्हें अस्पताल में रहना होगा. जीवन की संध्या में यह दारुण दुःख उन्हें झेलना पड़
रहा है, कर्मों की ऐसी ही गति है. कल दिन भर उसका मन भी कुछ अस्त-व्यस्त सा रहा,
कोई भी कार्य पूरे मन से नहीं कर पायी. आज सुबह से दिनचर्या नियमित हुई है. जून आज
फील्ड गये हैं.
आज तीसरा
दिन है. जून अभी कुछ देर में आने वाले हैं. अस्पताल में खाना ले जाना है. एक परिचिता
का फोन आया है, विश्व विकलांग दिवस पर उसे
बच्चों के कार्यक्रम में भाग लेना है. दो दिन बाद बाल दिवस है, शायद वह न जा पाए.
सभी को फोन पर माँ के बारे में बताया. जीवन क्या मात्र मृत्यु की प्रतीक्षा है ?
प्रतीक्षा जो केवल एक व्यक्ति ही नहीं करता, करते हैं उसके अपने भी (?) जून के एक मित्र
की माँ पिछले पांच-छह महीनों से बिस्तर पर हैं. अब माँ ने भी बिस्तर पकड़ लिया है
अगले दो-तीन महीनों के लिए, डाक्टर ने कहा है इतना समय तो हड्डी को जुड़ने में
लगेगा. नूना खुद भी धीरे-धीरे बढती हुई उम्र का अनुभव देह के तौर पर करने लगी है.
मन के तौर पर तो कोई स्वयं को बूढ़ा कभी महसूस नहीं करता. कहना कठिन है उम्र घटती
है या बढ़ती है.
‘संडे
स्कूल’ व ‘मृणाल ज्योति’ के बच्चों के साथ बालदिवस मनाया, जून कापी और पेंसिलें ले
आए थे. मिठाई और केक भी. एक ही स्थिति में लेटे-लेटे माँ की परेशानी थोड़ा बढ़ गयी
है. पिताजी का उत्साह पूर्ववत है, वह ज्यादातर समय अस्पताल में ही रहने लगे हैं. उसे
अभी ‘विवेक चूड़ामणि’ का काव्यानुवाद आगे लिखना है. नवम्बर आधा बीत गया है, अभी तक
सभी क्यारियों में फूल नहीं लगा पायी है. आज शाम को सत्संग है. उस सखी का फोन आया
जो यहाँ से चली गयी है. काफी देर तक बात करती रही. वहाँ का जीवन यहाँ से बिलकुल
अलग है. उनका घर एक पहाड़ी पर है, चढाई करके घर तक आना पड़ता है. पांचवीं मंजिल पर
घर है और अभी तक लिफ्ट चलनी शुरू नहीं हुई है सो सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते साँस फूल जाती
है. बालकनी से सुंदर सूर्योदय दीखता है, ऊपर ठंड भी रहती है. नैनी दोपहर को एक ही
बार आती है. कुछ काम खुद भी करने होते हैं. माँ को अस्पताल गये आज पूरा एक सप्ताह
हो गया. ऐसे ही देखते-देखते समय बीत जायेगा और वह घर आ जाएँगी.
जून देहली
गये हैं, नन्हा भी वहाँ किसी काम से आया था उससे भी मिले. एक सखी का फोन आया, उसने
कहा माँ को ठीक से खाना चाहिए, उसे पता नहीं है किस स्थिति में वह हैं. उस दिन
उसने अस्तित्त्व से उन्हें दुःख से मुक्त करने के लिए प्रार्थना की थी, उसे अभी तक
पूरा होना बाकी है लेकिन यह दिखाकर ईश्वर उसके मन में वैराग्य दृढ़ कर रहे
हैं, ओशो कहते हैं, जीवन के अनुभव ही काफी हैं किसी को वैरागी बनाने के लिए. सुबह
से कई संतों के वचन सुने, अच्छा लगता है सुनना पर मनन् भी करना चाहिए मात्र सुनना
ही पर्याप्त नहीं है.
स्वागत व बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
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