Tuesday, January 3, 2017

आकाश का गीत


आज ध्यान कम टीवी पर सद्गुरू को श्रवण ज्यादा किया. आश्रम में उनसे जो प्रश्नोत्तर हो रहा था, बहुत अच्छा लगा. उन्हें नींद आ रही थी, लेकिन लोग थे कि प्रश्न पूछे ही जा रहे थे.
श्रवण दुःख पाप का नाशक, श्रवण करे जो बनता श्रावक
सुनने की महिमा है अनुपम, मिल जाता है जिससे प्रियतम
निज भाषा में सुनने का फल, मन की धारा बनती निर्मल !
पढ़ना वृत्ति, सुनना भक्ति, होगी इससे कुशल प्रवृत्ति
कल-कल नदिया की भी सुनना, पंछी की बोली को गुनना
बादल का तुम सुनना गर्जन, सागर की लहरों का तर्जन
पिऊ पपीहा केकी मोर की, गूंज मौन की सुने सही
सुनना भी एक विज्ञान, बढ़ता है जिससे प्रज्ञान
राग सुनो, आलाप सुनो, कोकिल की तुम तान सुनो
यहाँ हवाएं भी गा रही हैं, आकाश गा रहा है. संगीत से भरा है जगत !

आज सात परिचित महिलाओं को फोन किये, मृणाल ज्योति के कार्य में सहयोग के लिए, एक ने उठाया ही नहीं. लोगों से बातचीत चलती रहे तो अच्छा है. गुरूजी ने कहा, अपने में जो दोष हैं, उन्हें निकालने का प्रयास करने जायेंगे तो कोई लाभ नहीं होगा. अपना दायरा बढ़ाकर, स्वयं को व्यस्त रखकर अपनी ऊर्जा का सही उपयोग करके वे स्वयं को शुद्ध कर सकते हैं. सेवा से बढ़कर शुद्धि का कोई साधन नहीं और स्वार्थ से बढ़कर अशुद्धि का कोई साधन नहीं. सेवा में कितना आनंद भी है. परमात्मा भी तो यही कर रहा है, ‘स: इव’ जो वह कर रहा है वे उसकी नकल करते हैं, वही तो उनके द्वारा प्रतिबिम्बित हो रहा है !

आज का ध्यान और भी अनोखा था. सद्गुरू होते ही हैं अनोखे, सारी दुनिया से निराले, प्रभु के घर वाले..दिल में रहने का ध्यान था, दिल के भीतर, दिल के ऊपर और दिल के नीचे..रहना था ध्यान से, अहंकार को भूलकर, विचारों को छोड़ते जाना था और केवल महसूस करना था. बच्चे महसूस करते  हैं, वे सोचते नहीं..तभी एकदम ताजे रहते हैं, फूल की तरह कोमल और सुबह की ओस की तरह निर्मल...

कल मृणाल ज्योति गयी थी. सो कुछ नहीं लिखा. वह परमात्मा कितने-कितने उपाय करके कितने खेल रचके उन्हें अपनी ओर खींचता है. वे अनजान से बने उसकी कृपा को अनुभव कर ही नहीं पाते, बार-बार अहंकार का शिकार होते हैं और दुःख पाते हैं, पर अपने सच्चे स्वरूप को देखते ही नहीं जहाँ केवल प्रेम है, जहाँ दो हैं ही नहीं, जो उनका अपमान(तथाकथित) कर रहा है, वह भी वे ही हैं. सम्मान करने वाले भी वही हैं. जब वे किसी का सम्मान करते हैं तो पुण्य बढ़ता है क्योंकि वे अपना ही सम्मान कर रहे हैं और जब किसी का अपमान कर रहे हैं, तो उनका पुण्य घटता है क्योंकि वे स्वयं का ही अपमान कर रहे हैं. इसका अर्थ हुआ कोई जब उनका सम्मान करता है तो अपना पुण्य बढ़ाता है उनका घटाता है, और अपमान करता है तो अपना पुण्य घटाता है, उनका बढ़ाता है. अद्वैत का अनुभव किये बिना कोई इस जगत में सुख से रह ही नहीं सकता. आज का ध्यान भी अनोखा था. अपने पोर-पोर को परमात्मा से ओत-प्रोत मानना था, एक-एक कण को..आज सुबह प्राणायाम करते समय भी उसे अपने घर में टिकने का अनुभव हुआ. वे व्यर्थ ही बाहर भटकते हैं. कभी धूल फांकते हैं तो कभी दामन फड़वाते हैं. उनका अपना मन ही मूर्खता भरे विचार उन्हें सिखाता है और वे उसकी बातों में आ जाते हैं. यहाँ करने को कुछ भी नहीं है सिवाय मस्ती में झूमने के..पर वे वही छोड़कर सारे काम करते हैं !        



1 comment:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "ठण्ड में स्नान के तरीके - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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