उसने विमल
मित्र को पढ़ा और उसके बाद एक कविता लिखी, शब्द अपने थे पर प्रभाव तो यकीनन पढ़े हुए
का था. यह भी तो चोरी हुई, विचारों की चोरी भी उतना ही बड़ा पाप है जितना वस्तुओं
की चोरी का, यह बात अब समझ में आने लगी है. भीतर ज्ञान का अनंत स्रोत है, जहाँ से
शब्दों की नदियाँ बह सकती हैं, फिर क्यों संस्कार वश दूसरों की ईंटों से अपना भवन
तैयार करना. आज भी गर्मी बहुत है. उसने सिन्धी कढ़ी बनाई है. आज वे अपनी वसीयत
लिखने वाले हैं.
परसों जो
गतिरोध उत्पन्न हुआ था, वह कल टूट गया. अन्ना हजारे का अनशन कल समाप्त हो गया, अब
वह अस्पताल में हैं. देश की हवा बदल रही है. अमेरिका में तूफान आया है. दिल्ली में
लोग जश्न मना रहे हैं. लन्दन में भी सड़कों पर कार्निवाल है. समाचारों में सुना कई
राज्यों में बाढ़ आयी है. मुम्बई में वर्षा का पानी सडकों व रेल पटरियों पर भर गया
है. असम के धेमाजी में भी बाढ़ ने भीषण रूप ले लिया है. इटली में ज्वालामुखी फट गया
है. एक बेटे ने अपनी बानवे वर्षीय माँ को घर से निकाल दिया, उसे वह मकान किराये पर
चढ़ाना था. जीवन कितने विरोधाभासों से युक्त है. द्वंद्व ही जीवन का दूसरा नाम है, जो
इसके पार हो गया, वही यहाँ मुक्त है और वही सुखी है. शेष तो एक भ्रम में जी रहे
हैं. कल इतवार की योग कक्षा में बच्चों को पूरे दो घंटे व्यस्त रख सकी. वे
ख़ुशी-ख़ुशी सब बात मानते हैं, अभी मासूम हैं. उस दिन उसने स्वप्न देखा, कार में एक
परिचिता के साथ जा रही है पर जाना कहाँ हैं पता नहीं, स्वप्न का क्या अर्थ था कौन
जानता है, लेकिन उसने यही लगाया कि कोई भेद नहीं रहा अब अर्थ युक्त और अर्थ हीन
में, भीतर-बाहर में. सारे आवरण गिर गये हैं. जून ने भी आज अपना स्वप्न बताया. वह
एक द्वीप पर पहुँच गये हैं. एक आदिवासी व्यक्ति उन्हें समुद्रतट पर ले जाता है.
सुंदर तट है पर अचानक लहरें चढ़ आती हैं और वह किसी तरह रेलिंग को पकड़ कर बच जाते
हैं.
आज एक नये
तरह का ध्यान किया. देह ऊर्जा का एक केंद्र है. ऊर्जा का चक्र यदि पूर्णता को
प्राप्त न हो तो जीवन में एक अधूरापन रहता है. प्रार्थना में भक्त भगवान से जुड़
जाता है और चक्र पूर्ण होता है, तभी पूर्णता का अहसास होता है. हर व्यक्ति अपने आप
में अधूरा है जब तक वह किसी के प्रति समर्पित नहीं हुआ. यही पूर्णता की चाह अनगिनत
कामनाओं को जन्म देती है. व्यर्थ ही इधर-उधर भटक के अंत में एक न एक दिन व्यक्ति
ईश्वर के द्वार पर दस्तक देता है. इस मिलन में कभी आत्मा परमात्मा हो जाता है और
कभी परमात्मा आत्मा. उसने भी आज प्रार्थना में तीनों गुणों से मुक्त होने की
प्रार्थना की. तीनों एषनाओं से मुक्त होने की प्रार्थना. माँ होने का सुख, शिशु को
बड़ा होता हुआ देखने का सुख तो वर्षों पहले मिल गया, अब कितना सुख चाहिए. व्यस्क
होने के बाद व्यक्ति स्वयं अपने भले-बुरे का जिम्मेदार होता है. उसका मन जहाँ जहाँ
अटका है, उसे वहाँ-वहाँ से खोलकर लाना है. इस जगत में या तो किसी के प्रति कोई
जवाबदेही न रहे अथवा तो सबके प्रति रहे. एक साधक का इसके सिवा क्या कर्त्तव्य है कि
भीतर एकरसता बनी रहे, आत्मभाव में मन टिका
रहे. जीवन जगत के लिए उपयोगी बने, किसी के काम आए. अहम का विसर्जन हो. वह परमात्मा
ही उनका आदर्श है जो सब कुछ करता हुआ कुछ भी न करने का भ्रम बनाये रखता है..चुपचाप
प्रकृति इतना कुछ करती है पर कभी उसका श्रेय नहीं लेती..फूल खिलने से पहले कितनी
परिस्थितियों से दोचार नहीं होता है, बादल बरसने से पहले क्या-क्या नहीं झेलता..
और वे हैं कि हर कम करने के बाद औरों के अनुमोदन की प्रतीक्षा करते हैं. वे भी
छोटे-मोटे परमात्मा तो हैं ही, मस्ती, ख़ुशी तो उनके घर की शै है, इन्हें कहीं
मांगने थोड़े ही जाना है. ज्ञान का दीपक सद्गुरू के रूप में जल ही रहा है.
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