आज सुबह
उसके जीवन अनोखी सुबह थी, चार बजे अलार्म सुना, बंद किया और फिर आँख लग गयी.
स्वप्न में देखा, नन्हा छोटा है, तीन-चार साल का. उसे माथे पर चोट लगी है, वह दवा
लगा देती है, नींद नहीं टूटी, स्वप्न आगे बढ़ा. नन्हा भी सोया है, उसके माथे पर
बायीं ओर फिर खून निकल रहा है और उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान है, नन्हा नींद में है और वह चौंक कर उठ गयी. बैठ गयी
तो भीतर से कोई आत्मा-परमात्मा के रहस्य समझाने लगा. वह जग चुकी थी पर अचल बैठी थी..परमात्मा
की अनंतता..घटाकाश...महाकाश सभी कुछ स्पष्ट होता चला गया..उसका अपना आप भी वही है
जो परमात्मा है..मन, बुद्धि के पिंजरे में बद्ध है चेतना..जो न कहीं आता है न कहीं
जाता है..सदा एक सा है..देह के आने जाने से वह आता-जाता प्रतीत होता है. जैसे मछली
जल में है वैसे ही वे चेतना के महासमुद्र में है, एक लहर उठती है और एक देह में
कैद हो जाती है पर वह सदा वैसी ही रहती है. उसकी उपस्थिति से ही देव जीवंत है..देह
के कण-कण में वह व्याप्त है बल्कि कहें कि वही हैं और वही देह हो गयी है..फिर भी
कुछ नहीं हुआ..अद्भुत है यह ज्ञान. भीतर की सारी दौड़ खत्म हो गयी लगती है.
कम्प्यूटर भी खराब हो गया है. आज सुबह मृणाल ज्योति गयी थी. परसों फिर जाना है,
उनकी वार्षिक सभा है. उसने एक कविता लिखी है. ब्लॉग पर भी प्रकाशित करेगी. उनके
लिए पोस्टर भी बनाना है. एक अध्यापिका ने सुंदर राखियाँ बनायी हैं. कोओपरेटिव में
वे बिक्री करेंगे. एक परिचिता ने उसे भी कुछ सामान खरीदवाया, वह भी कुछ राखियाँ
बनाएगी. इस वर्ष वह उसके साथ काम कर रही हैं, सो साल भर तो साथ रहेगा ही. वह भी
स्कूल के लिए बहुत काम करती हैं.
आज जून
घर आ रहे हैं. मौसम अच्छा है. धूप न वर्षा ! कल रूद्र पूजा में गयी थी. प्रसाद में
एक रुद्राक्ष मिला है, एक फल और बेलपत्र. भगवान शिव की कृपा का अनुभव भी ध्यान में
हुआ..शुद्ध घन चैतन्य का अनुभव करने की प्रेरणा भीतर जगी..एकाध क्षण के लिए हुआ भी
होगा. शुद्ध चैतन्य में कोई संवेदना नहीं..भावना भी नहीं..वहाँ सब अचल है स्थिर..घन..ठोस..अहं
का संवेदन होता है तब आगे की श्रंखला शुरू हो जाती है. उसे अब यात्रा में भी रूचि
नहीं रह गयी है. यात्रा में मन और ज्यादा चंचल हो जाता है. साधक के लिए एक ही
स्थान पर रहना ही ठीक है. परमात्मा भी शायद यही चाहते हैं.
आज सुबह
एक स्वप्न ने उठाया, कोई है जो निरंतर उनके साथ है, उनका ख्याल रखनेवाला, वे न हों
तो वही रहता है. जून को देखा, वह स्त्री वेश में थे. अगले जन्म में शायद वह स्त्री
ही होने वाले हों..कौन जानता है ? आज मौसम अपेक्षाकृत गर्म है. कल उसने जिस पोस्टर
बनाने की बात सोची थी, वह अभी तक कल्पना में ही है. मृणाल ज्योति की राखियाँ कितनी
बिकीं, यह भी अभी पता नहीं है. आज एकादशी है जून नारियल लाये थे पर वह कच्चा है,
निकालने में दिक्कत हो रही है. ननद का फोन आया है, वह माँ-पिता को बेटी की शादी
में बुलाना चाहती है पर दोनों की उम्र व स्वास्थ्य को देखकर ऐसा सम्भव नहीं लगता.
आज सुबह गुरुमाँ ने कहा वे खुद से मिलना नहीं चाहते, इसलिये फिल्म आदि में समय
बिताते हैं. कल्पना की दुनिया में ही वे जीते हैं. आज ध्यान में ठीक एक घंटा हुआ
था तो किसी ने सजग किया..उस एक चिद्घन को, परम चैतन्य को उनकी पल-पल की खबर रहती
है, वह हर क्षण उनके पास है. अनंत रूप हैं उसके, अनंत नेत्र हैं उसके..अनंत
विस्तार है उसका..उसको वे अपनी छोटी सी बुद्धि से समझ नहीं सकते, वह होकर ही समझ
में आता है..जब वे उसमें विश्राम करते हैं तो जगत का लोप हो जाता है. फिर मन,
बुद्धि में आते हैं तो भी उसकी स्मृति बनी रहती है. मन जब केन्द्रित होता है तब
उसी की शक्ति प्रवाहित हो रही होती है. ध्यान जितना अचल होगा मन उतना ही मजबूत
होगा.
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