दोपहर के दो
बजने को हैं. किचन में सफेदी हो रही है. बाहर लॉन में नया माली घास काट रहा है.
उसके दाहिने हाथ में हल्का सा दर्द कभी-कभी महसूस होता है, माउस पकड़ने का प्रभाव
लगता है. आज ब्लॉग पर नई कविता पोस्ट की है. कुछ दिन से वह दिखाई नहीं दे रही थीं,
पता चला ब्लौगर रश्मिप्रभा जी का किडनी का आपरेशन था वापस घर आ गयी हैं. उसने
प्राणायाम पर बी के एस आयंगर जी की पुस्तक पढ़नी शुरू की है.
पिछले दो
दिन डायरी नहीं खोली, उन सबके भीतर एक मार्गदर्शक है जो पग-पग पर उन्हें रास्ता
दिखता है पर वे दिमाग पर ज्यादा भरोसा करते हैं और उसकी आवाज को अनसुना कर देते हैं.
भय होने पर वही उन्हें सचेत करता है और कोई आवश्यक कार्य यदि वे भूल गये हों तो
वही याद दिलाता है. वह उनका सद्गुरू भीतर ही रहता है. वही परमात्मा का दूत है. उस दिन
अपने भीतर से आती एक आवाज सुनी थी कि वह अस्वस्थ होने वाली है और आज सुबह कंघी
करते समय दाहिने हाथ में पीड़ा का अनुभव हुआ, शायद कम्प्यूटर पर गलत तरीके से माउस
पकड़ने के कारण ऐसा हुआ हो या केवल हाथ की मांसपेशियों के ज्यादा उपयोग करने के
कारण ही. एक्सरे भी कराया है. माली गमले धो रहा है, जिसमें वे गुलदाउदी के पौधे
लगायेंगे. नैनी की बेटी पिताजी के साथ खेल रही है. सवा साल की बच्ची और बयासी साल
के वृद्ध की मित्रता देखते ही बनती है. नार्वे में हुआ हत्याकांड तथा बमविस्फोट
कितना भयानक था. उस दिन दीदी से बात हुई, कुछ लिखा भी था, जिसे टाइप करना शेष है.
शाम को
सेंटर में क्रिया है. अगले महीने रूद्र पूजा है, इस बार वे पूरे परिवार की ओर से
पूजा में भाग लेंगे. सभी को आशीष मिलेगा, मिल ही रहा है, वे उसे पहचानने में सफल
होंगे. जून को मनाना होगा, लेकिन वह अपनी बुद्धि पर ज्यादा भरोसा करते हैं. कल
सेंटर में एन ई एपेक्स बॉडी का सेमिनार है, वहाँ भी वह जाएगी एक सखी के साथ, सम्भव
हुआ तो. भगवद गीता में पढ़ा, अहंकृत भाव ही बंधन का कारण है. कुछ होने की जगह यदि कुछ
भी न होने का भाव रहे तो कोई बंधन नहीं है. आत्मा न कर्ता है न भोक्ता है. मन ही
कर्मों का जाल रचता है और दुःख पाता है. परमात्मा उसे अपनी ओर खींच रहे हैं. एक-एक
करके भीतर से सब वासनाओं को निकालने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
जून आज
नुमालीगढ़ गये हैं. पिताजी ने कहा, उन्हें केश कटवाने हैं. गाड़ी मिल सकती हो तो वे
जायेंगे. उसका संकोच देखकर वह पैदल ही बाजार जाकर कटवा आए हैं. मन में जो विचार एक
बार आ गया उसे पूरा करना ही है. यही स्वभाव जून का भी है. एक बार जो संकल्प आ गया
उसे पूर्ण किये बिना चैन नहीं आता. नूना के संकल्पों में इतना बल नहीं है. मौसम आज
भी सावन का है. कल शाम को जून ने मालपुए बनाये, तीज की प्रतीक्षा उनसे नहीं हो सकी.
कल शाम नन्हे से बात हुई अब उनकी कम्पनी में इक्कीस लोग हो गये हैं.
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