इन्सान जो चाहता है, वह एक न एक दिन उसे मिलकर ही
रहता है. चाहे परिस्थितियां वैसी न हों, जिसमें उसने वह कामना की थी. सेवा का अवसर
मिले ऐसा उसने चाहा था पर इस तरह नहीं. खैर इसी का नाम जीवन है, यहाँ उतार-चढ़ाव
उसी तरह आते हैं जैसे सागर में ज्वर-भाटा, यह प्रकृति का नियम है. समय सदा एक सा
नहीं रहता. आज सुबह वे पौने पांच बजे उठे. कल रात को सोने में थोड़ी देर हो गयी थी.
क्रिया आदि की, व्यायाम नहीं कर पायी, जो सांध्य-भ्रमण से हो जायेगा यदि जून समय
पर आ गये. वह बिलकुल नहीं घबराए हैं सासु माँ के पैर की मोच देखकर. जो उनकी
अनुपस्थिति में अपनी एक परिचिता के साथ उनकी किसी परिचिता के घर जाने पर उन्हें लग
गयी है. ईश्वर उन सभी को ऐसी दृढ़ता दे. उनके मनों को इतनी शुद्धता भी कि किसी के
प्रति कोई नकारात्मक विचार भी न पनपे. सभी अपने-अपने स्वभाव के अनुसार करते, कहते
हैं.
कल से उसे
गुरूजी बहुत याद आ रहे हैं, उनकी कृपा दृष्टि उस पर अवश्य हुई है ! आज क्रिया के
बाद भी अद्भुत अनुभव हुआ, पहले वंशी की आवाज सुनाई दी फिर कहीं से विचार आया कि
ससुराल में पिताजी बच्चों को डिब्बा खोल कर दिखा रहे हैं और रंग-बिरंगे
हिलते-डुलते से कुछ आकार डिब्बे में दिखे, उस क्षण कुछ और सोचा होता तो वह भी दिखा
होता. बाद में गुरूजी की भी एक झलक दिखी. ईश्वर की कृपा ही धूल के एक कण को हिमालय
की विशालता प्रदान करती है. सीमित को असीमित कर देती है. उनका ज्ञान अद्भुत है और
सबसे अद्भुत है उनका प्रेम...उसका मन एक ऐसी शांति से भर गया है, असीम स्नेह से,
अनंत प्रेम से और अनोखे आनंद से कि इस क्षण यदि मृत्यु उसके सम्मुख आये तो बाहें फैलाकर
उसका भी स्वागत करे. उसके
हाथ इतने बड़े हो गये हैं कि सारा ब्रह्मांड उनमें समा
सकता है !
शाम हो चुकी
है, वे अभी टहल कर आये हैं. दिन भर कोई गंभीर अध्ययन नहीं किया, बल्कि आजकल पढ़ने
का समय कम ही निकाल पाती है. पर मन में चिंतन चलता है. पढ़े हुए को मथकर उसे पचाने
के लिए अलग से कोई समय नहीं निकलना पड़ता, कार्य करते हुए ही मनन चलता रहता है. कोई
नकारात्मक विचार मन में टिकता नहीं, फौरन कृष्ण का नाम अंतर में प्रतिध्वनित होने
लगता है. कभी कोई मन्त्र या भजन की पंक्ति चलती रहती है, फ्लैश बैक म्यूजिक की
तरह. कृष्ण बिलकुल सच्चा वादा करते हैं कि उनके भक्तों के कुशल क्षेम का भार वह
अपने सिर पर ले लेते हैं. इसलिए जीवन जितना सहज और हल्का आज लगता है वैसा पहले
नहीं था, कुछ वर्षों पहले. अब ऐसा लगता है जैसे हर वक्त ही वह ध्यान में है. एक
अनोखी ख़ुशी पोर-पोर से फूटती रहती है, फूल से जैसे सुवास फूटती है. कहीं कोई चाह
शेष ही नहीं रह गयी है, जीवन जब उस जीवन दाता ने दिया है तो उसे ही यह अधिकार है
कि उसे चलाये. वह जो उसके दिल में रहता है, जो उसे उससे ज्यादा जानता है., जो उसके
विचारों को सतह पर आने से पूर्व ही पढ़ सकता है, जो जीवन का स्रोत है.
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