उन्होंने शब्दों की होली खेली, कुछ शब्दों की बौछार इधर से हुई और
कुछ शब्दों की बौछार उधर से और लग गई आग दिलों में. इस होली से तो भगवान ही बचाए.
न जाने क्यों वे अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाते फिर वही वाणी के रूप में
बाहर आ जाती हैं. जानती है वह कि बाद में पश्चाताप के सिवा कुछ हाथ आने वाला नहीं
है. समाज में परिवार में सभी को साथ लेकर चलना है, साधना के लिए स्वार्थी तो नहीं
हुआ जा सकता, उसकी आवश्यकता को कोई अन्य कैसे समझ सकते हैं, उसे ही धीरे-धीरे इस
पथ पर लाना होगा. संसार का पथ तो अनेक जन्मों में चल कर देख चुकी है, यह बेपेंदी
के लोटे जैसा है कितना भी जल डालो यह खाली ही रहेगा. परमात्मा के पथ पर आनंद ही
आनंद है, लेकिन इस आनंद का भी यदि लोभ वह करने लगी तो...सहज रहना सीखना होगा, समभाव
में रहना. परीक्षा की घड़ियाँ आएँगी पर स्वयं पर नियन्त्रण रखना है.
आज होली है, उसने
ज्ञान की पिचकारी का रंग लगाया है, अब कोई और रंग उस पर चढ़ता ही नहीं. होली का
अर्थ है सारी पुरानी सड़ी-गली मान्यताओं को ज्ञान की आग में जलाकर मन को खाली कर
देना. फिर से नव जीवन का आरम्भ हो, भुला देना सारे शिकवे-शिकायत, तब जो भीतर उमड़ेगा
उसमें सारे रंग मिले होंगे.
कल रात को नन्हे ने जब
फोन पर कहा कि उसकी तबियत ठीक नहीं लग रही है तो जून और उसका चिंतित होना
स्वाभाविक था. उन्होंने उसे आवश्यक निर्देश दिए और अपने रोज के कार्य सामान्य रूप
से करते रहे. सुबह वह उठी तो जून ने कहा उन्हें देर तक नींद नहीं आयी, वह नन्हे की
अस्वस्थता की बात से परेशान हो गये थे. वह भी जब अपने मन की अवस्था पर नजर डालती
है तो उनसे बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. यह बात और है जब मन को परेशान देखा उसने तो
भगवन्नाम का ही आश्रय लिया, परमात्मा को सब कुछ सौंपना चाहा. उससे प्रार्थना भी
की. भक्ति के लिए भक्ति अर्थात उससे कुछ भी न मांगे, यह दृढ़ता तो दूर हो ही गयी.
उसने उन सबके लिए सुख व स्वास्थ्य माँगा. वह दाता है, सबकी सुनता है, किसी को
निराश नहीं करता, उसकी मर्जी से ही वे सब इस दुनिया में आए हैं. वही चैतन्य है,
उसका अंश आत्मा रूप से उनमें स्थित है. अभी यह उनका अनुभव नहीं है तभी वे मन की
समता खो बैठते हैं. जैसे चित्रकार चित्र बनाता है वे दुःख बना लेते हैं.
कल की रात्रि
स्वप्नों भरी थी, नन्हे को कई बार देखा, वह छोटा सा है और खाली फर्श पर सोया है.
मन भी कितना पागल है, खुद ही सपने बनाता है और खुद ही परेशान होता है. नन्हे का
रिजल्ट आ गया है उसने पहली बाधा पार कर ली है. जून भी निश्चिन्त हुए हैं. उसने da-vinci-code
पढ़ ली है, बहुत रोचक किताब है. अज गुरूजी ने ‘योग वशिष्ठ’ पर चर्चा शुरू की. जीवन
में दुःख है इसे पहचानना जरूरी है. तभी तो मन के पार जाया जा सकता है.
आज उन्हें यात्रा पर
जाना है, इस यात्रा का उद्देश्य है नन्हे को सालभर की कड़ी मेहनत के बाद परीक्षा
दिलाकर घर वापस लाना, परीक्षा से पहले उसे उत्साह दिलाना तथा उसका स्वास्थ्य ठीक
रहे उसका ध्यान रखना. ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उनकी यात्रा को सफल करे.
No comments:
Post a Comment