मकर संक्रांति के दिन वे यात्रा पर निकले थे और दो हफ्ते बाद
वापस आये, सो आज कई दिनों के बाद डायरी खोली है. सभी से मिलकर अच्छा लगा, बड़ी भांजी
की शादी भी भली प्रकार से हो गयी. उन्होंने नये-नये स्थान देखे, पुराने मित्रों से
मिले. कुल मिलाकर दो हफ्ते उनके लिए उम्मीदों व आशाओं से भरे थे. कभी-कभार ऐसे पल
भी आए जब मन चिन्तन में लीन था. संगति का असर पड़ना स्वाभाविक था, लोभ भी जगा, कामना
भी उठी. नये वस्त्रों की चाह उठी, संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ी. चमचमाते बाजार देखकर
खरीदने की इच्छा उठी, पर अब अपने पुनः अपने घर लौट आये हैं. यात्रा बहुत कुछ सिखाती है, बीच-बीच में समय मिला तो
सद्गुरु के वचन भी सुने. क्रिया नियमित रूप से की. मन टिका रहा इसी कारण. प्रमाद
ने घेरा अवश्य पर भीतर की आग बुझी नहीं. कल रात को एक स्वप्न देखा, जिसमें ईश्वर
चर्चा चल रही थी. भीतर जिसने आत्मा को एक बार जाना है वह उससे कभी भी विलग नहीं हो
सकता चाहे गला डूब संसार में उसे क्यों न रहना पड़े.
मन जिस भाव में
टिकता है, समझना चाहिए उस समय वही प्रबल है. उसका मन स्मरण में न टिककर संसार में
जा रहा है. कल फिल्म देखी, जस्सी का भी आकर्षण है. सद्गुरु कहते हैं अपनी परीक्षा
स्वयं नहीं लेनी है. अंततः मन लौट कर वहीं तो जाता है जो उसका आश्रय है. आज सुबह सड़क
दुर्घटना में डा.विद्यानिवास मिश्र के निधन का समाचार सुना, ईश्वर उनकी आत्मा को
शांति दे. ईश्वर उनके साथ सदा था, उनके भी और उनकी धर्मपत्नी के भी जिनका देहांत
अभी डेढ़ महीने पूर्व ही हुआ था. आनंद के महासमुद्र में निरंतर वास करने वाली आत्मा
शुद्ध है, बुद्ध है, नित्य है, चेतन है, अविनाशी है तथा प्रेममयी है. इसे जानते
हुए यह जगत का व्यवहार उन्हें करना है.
जगत तब उन्हें छू भी नहीं सकता.
आज सुबह-सुबह एक
स्वप्न देखा, एक संत जो भक्ति में नृत्य कर रहे थे और गा रहे थे, उसके सम्मुख आए.
उनसे दृष्टि मिली, उसके देखते-देखते उनकी दृष्टि प्रखर होती गयी, आँखों की
पुतलियाँ जैसे स्थिर हो गयीं और उनमें से कोई तेज निकलने लगा. उसकी आँखों तक
पहुंचा और उसके सिर पर रखा दुप्पटा बल से ऊपर उठ गया और शरीर पर किसी आघात का
अनुभव हुआ और अगले ही क्षण अभूतपूर्व आनंद तथा हँसी उसके सारे अस्तित्त्व से फूट
पड़ी तो उसके आसपास के लोग भी चकित हो रहे थे, तभी अलार्म बजने लगा और उसकी नींद
खुल गयी. आज जब ध्यान में बैठी तो निर्विचारिता के क्षण अधिक देर तक टिके तथा मौन
का अनुभव भी हुआ. कितना अनोखा अनुभव था, आँखें खोलने का भी मन नहीं हो रहा था. आज
की अनुभूति अलग थी. वैसे तो हर दिन का ध्यान अलग होता है.

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