आज उन्होंने प्रातः कालीन साधना बाहर लॉन में
की पहली बार, सुबह सवा तीन बजे ही लाइट चली गयी, अंदर उमस थी. बाहर आते-जाते लोगों
की आवाजें कानों में पड़ रही थीं, फिर भी अच्छा लगा. कल शाम वह उड़िया सखी से मिलने
गयी, जो वापस उड़ीसा जा रही थी, पर आज सुबह वापस आ गयी क्योंकि ट्रेन ही वापस आ
गयी. कहीं बम ब्लास्ट हुआ था. इन्सान अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कितनों को हानि
पहुंचाता है, ऐसे व्यक्ति स्वयं भी कभी सुखी नहीं रहते.
कल पढ़ा था,
सत्य वही है जो सदा है, नित्य है, अर्थात उनका सच्चा स्वरूप ही सत्य है. जगत पल-पल
बदल रहा है, इसे जैसा है वैसा ही स्वीकारना होगा क्योंकि यह तो है ही असत्य, तो
असत्य में अगर सुधार करें भी तो असत्य ही रहेगा. सुधार की गुंजाइश तो सत्य में ही
करनी चाहिए अर्थात यदि वास्तविक रूप अभी स्पष्ट नहीं दीख रहा हो तो उस पर से मैल
झाड़नी है, पाना उसी को है जिसे पाकर खोना न पड़े, यदि खोना ही पड़े तो एक मिले या दस
कोई अंतर नहीं पड़ता. ज्ञान की अनुभूति कितनी सुखद होती है, ज्ञान ही प्रेम बन जाता
है और प्रेम ही भक्ति. उसे सद्गुरु के कार्य को आगे बढ़ाना है, अगले दो वर्षों में
उनका संदेश पहुंचाना है, जब उनके कार्य को पच्चीस वर्ष हो जायेंगे और वे उन्हें
मात्र पिछले दो वर्षों से जानते हैं, तेईस वर्षों तक वह अपना कार्य कर रहे थे पर
वे अनभिज्ञ थे. शमा जल रही थी और वे अँधेरे में थे. जब तक ईश्वर की कृपा न हो
व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकता.
आज गणेश पूजा
का अवकाश है, गणेश चतुर्थी, उनके बारे में कई कथाएं बचपन से सुनी हैं. आज पढ़ी भी, वे
विघ्नविनाशक हैं, लेकिन उसके इष्टदेव तो कान्हा ही हैं, जो प्रेम, ज्ञान और ध्यान
के अध्येता हैं. जो अपनी ओर आकर्षित करते हैं. जो समता में रहने का, अमनी होने का
मार्ग बताते हैं. मन व आत्मा के मध्य तो कल्पनाओं का एक बड़ा झुण्ड है पर उसके व
आत्मा के मध्य तो कुछ भी नहीं, वह निकटस्थ है. उसे कृष्ण की परा प्रकृति का अंश
होना है, जो शाश्वत है, चिन्मय है.
आज उसने
बाइबिल की कुछ कहानियाँ पढ़ीं, यीशू के उपदेश दिल को छू लेते हैं. प्रेम से छलकता
उसका हृदय उनके हृदयों को छू जाता है. वह गड़रिया है और वे उसकी भेड़ें, वे उसकी
अंगूर की बारी हैं, वह उन्हें रोपता है फिर ध्यान रखता है. वे उसके आश्रित हों तो
वह उन्हें धरती का नमक भी बना सकता है. वह चुन-चुन कर उनके दोषों को दिखाता है फिर
उन्हें दूर करने को कहता है. वह प्रेम को सर्वोपरि मानता है, वे सभी मूलतः प्रेम
की उपज हैं, यह जगत प्रेम के आश्रित है. यीशू भी उसे कान्हा की तरह प्रिय है वैसे
ही जैसे कबीर, नानक, तुलसी और अन्य संत, माँ शारदा, रामकृष्ण परमहंस तथा
विवेकानन्द उसे प्रिय हैं. सद्गुरु, बाबाजी तथा गुरू माँ भी उसे प्रिय हैं. प्रीति
ही जगत में स्थिरता प्रदान करती है. प्रीति यदि सच्ची हो तो हृदय को पवित्र बनाती
है. आज इस क्षण उसे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कहीं न कहीं उसके कर्त्तव्य निर्वाह
में त्रुटि हो रही है पर उसके मन की प्रसन्नता तथा शांति तो अखंड है, यह अब भौतिक
परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती, यह आत्मिक है और आत्मभाव में रहने वाला,
देहात्मबुद्धि से ऊपर हुआ मन अब यूँ ही विषाद ग्रस्त कैसे हो सकता है. भीतर जो
कतरा था अब दरिया बन गया है !
आपकी इस पोस्ट को शनिवार, ०६ जून, २०१५ की बुलेटिन - "आतंक, आतंकी और ८४ का दर्द" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
ReplyDeleteस्वागत व बहुत बहुत आभार तुषार जी !
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