कल शाम ही वे तावांग की यात्रा से वापस लौट
आये, वापसी की यात्रा भी निर्विघ्न सम्पन्न हुई. दोपहर का भोजन एक ढाबे में किया.
सुबह बोमडीला से चले तो सर्दी बहुत थी, स्वेटर, शाल सभी कुछ पहना हुआ था पर पहाड़
खत्म होते न होते ही मौसम का मिजाज बदल गया. अज सुबह जल्दी उठे, नन्हे को पढ़ने
जाना था. ढेर सारे कपड़े धोये, अभी सभी को सहेज कर रखना है, पहले प्रेस भी करने हैं.
यात्रा ने मन प्राण को नवीन उत्साह से भर दिया है. आज भांजी की मंगनी की रस्म भी
होने वाली है. कल ही वे फोन करेंगे ताकि सब समाचार मिल सकें. अभी उन्हें तावांग
यात्रा में खींचे गये फोटोग्राफ्स का भी इंतजार है. आज सुबह जागरण नहीं सुन पायी,
यात्रा के दौरान एक दिन सुना था, “जीवन भी एक यात्रा ही है और उसमें इस शरीर में
मिला जीवन तो एक पड़ाव भर है, अगले जन्म में अगला पड़ाव. जैसे शंकर जी के मंदिर में
चढ़ने के लिए सीढियां होती हैं, वैसे ही असली मंजिल पर जाने के लिए यह जीवन-मृत्यु
सीढ़ी की तरह है. यहाँ कुछ भी चिर स्थायी नहीं है, न ही साथ जाने वाला है सिवाय उस
शांति के जो मानव का जन्म सिद्ध अधिकार है. मानव यहाँ दुःख उठाने नहीं आये हैं. इस
पथ पर गोविन्द पग-पग पर साथ हैं.”
कल दिन भर
बादल बरसते रहे, आज भी रह-रह कर वर्षा हो रही है. कल शाम को उसने तावांग यात्रा पर
लेख टाइप करना शुरू किया है. तीन-चार दिन में पूरा करना है. कल रात को नन्हे ने
उनके कमरे का फोन का कनेक्शन निकाल दिया, ताकि उन्हें पता न चले, पर देर रात उसे
फोन पर बात करते सुना. इस उम्र में बच्चे कुछ कार्य छुपा कर करते ही हैं, चाहे
उन्हें घर में कितना भी खुला रहने को कहा जाये. ज्यादा सुविधाएँ भी उन्हें बिगाड़
देती हैं, अपने मूल उद्देश्य से भटककर वे अन्य कार्यों में अपना समय लगाने लगते
हैं. आज कई दिनों बाद धूप निकली है, पर मौसम में ठंडक अभी भी मौजूद है. कभी-कभी
जीवन परीक्षा लेता है, ऐसे में ईश्वर पर
अटूट विश्वास ही स्थिर रख सकता है. धागे जो उलझ गये हैं अपने आप ही सुलझ जायेंगे,
अभी जहाँ अंधकार नजर आता है कल वहीं प्रकाश होगा. वह परम चेतना सभी के भीतर है,
सभी को निर्देश दे रही है, सभी सुरक्षित हाथों में हैं, किसी को भी भयभीत होने की
जरूरत नहीं है.
आज सुबह जून
ने उसे जन्मदिन का कार्ड दिया, जिस पर उनके मन की भावनाएं अंकित थीं, वह उसे कुछ
जताना चाहते थे. उन्होंने एक सुंदर उपहार भी दिया और एक चाकलेट भी. सुबह सबसे पहले
ससुराल से फोन आया, फिर एक-एक करके पिताजी, भाई-बहनों, सखियों, ननदों, बुआ-फूफा जी
सभी के फोन आये. शाम को कुछ मित्र परिवार आयेंगे. वह पाव-भाजी तथा आम-दूध रस यानि
मैंगो शेक बनाएगी. नन्हा कल रात को कम्प्यूटर पर कोई कार्ड बना रहा था, कमरे की
लाइट बंद करके, जैसे कि उन्हें आभास हो वह सो रहा है, बच्चे इस उम्र में रहस्यमय
हो जाते हैं. खैर अपनी तरह से जीने का सभी को हक है. बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो
उनकी अपनी सोच होती है. जून सुबह थोड़ा परेशान थे, यह भी स्वाभाविक है, पर उसे तो
किसी भी बात पर अब परेशानी होती ही नहीं, आनंद का स्रोत यदि भीतर मिल गया हो तो ये
छोटी-छोटी बातें असर नहीं करतीं. वे किसी और महान उद्देश्य को पाने के लिए यहाँ
भेजे गये हैं, वह रहस्य उन सबके भीतर है, उसके ही निकट उन्हें जाना है. जीवन के हर
क्षण का उपयोग उस परम सत्य की खोज में हो सके तो ही जीवन सफल है. रोजमर्रा का
कार्य भी उसी ओर इंगित करे, विचार, आचरण भी वही दर्शाए. अनुभव सच्चा हो, सजग होकर
रहें, जीवन को एक विराट परिदृश्य में देखें. वे सभी श्वास के द्वारा एक-दूसरे से
जुड़े हैं, उनकी चेतना परम चेतना का ही अंश है ! वे अपरिमित शक्ति के स्वामी हैं !
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