Friday, April 24, 2015

मोमबत्ती का प्रकाश


जीव चेतन स्वरूप हैं पर जड़ की ओर उनका झुकाव है. जब वे अपनी चेतना को परम चेतना की ओर लगाते हैं तो सारे कार्य कर्मयोग बन जाते हैं, अन्यथा कर्म भी जड़वत प्रतीत होंगे. इस क्षण उसका हृदय पूर्णतया संतुष्ट है, कुछ भी पाने की न तो आकांक्षा है और न ही कुछ खो जाने की चिंता है. उसे न किसी से भय है न ही किसी को उससे भय मिले ऐसी कामना है. सभी की मित्रता उसे मिले और इस सृष्टि के सभी स्थावर-जंगम प्राणी उसकी मित्रता पायें ! जहाँ कहीं भी शुभ हो उसकी दृष्टि उसे ही देखे, अन्यों के दोषों पर नजर न जाये. अगर जाये भी तो हृदय में कटुता का उदय न हो, उन्हें उनके सम्पूर्ण गुणों व दोषों सहित वह अपना ले. कभी भी ऐसा न हो कि अपने लक्ष्य से विचलित हो जाये ! इस समय शाम के छह बजने को हैं, नन्हा कोचिंग गया है. जून पिताजी को लेकर सुबह ही डिब्रूगढ़ गये थे, सात बजे तक आएंगे. मौसम बादलों भरा है. कल शाम को जो आंधी आई थी, उसके बाद से वर्षा लगातार ही हो रही है. कल बिजली चली गयी थी और रात्रि भोजन मोमबत्ती के प्रकाश में किया. अभी कुछ देर पूर्व ही बिजली आई है. बड़े भाई का फोन आया अभी कुछ देर पहले.

टीवी पर ‘जागरण’ आ रहा है, गुरूमाँ कह रही हैं, पानी जैसे तापमान के बदलने पर अपनी अवस्था बदलता रहता है वैसे ही मन बदलता रहता है. लेकिन इन सबको देखने वाला निर्विकार आत्मा है जो अचल है. उसे लगता है जब कोई अध्यात्म के मार्ग पर चल पड़ता है तो हानि-लाभ की चिंता से मुक्त हो जाता है. कर्म सहज होते हैं. कोई कामना पूर्ति उनका लक्ष्य नहीं होती. अंतर में समता जगती है. प्रेम की भावना का उदय होता है, प्रेम ही जीवन को रसमय करता है. आज वर्षा थमी है. कल शाम उसने लिखना शुरू किया था कि जून आ गये, डाक्टर ने कहा है आपरेशन करना पड़ेगा.

आज उसे लग रहा है, उनकी कथनी और करनी में कितना अंतर होता है. किसी निकट के सम्बन्धी ने उनसे मदद मांगी और उन्होंने खुले दिल से फौरन मदद करने की बजाय सोच-विचार शुरू किया. मन जो सदा संदेह करता है, कैसे-कैसे तर्क देने लगा. मन के लोभ का कोई अंत नहीं है. उसने जून को सही सलाह नहीं दी या उनकी स्वयं की भी यही इच्छा रही होगी और उसे समर्थन मिल गया. वे धर्म की सिर्फ ऊपरी सतह तक ही पहुंचे हैं, अभी मन विशाल नहीं हुआ है. गुरू से प्रेम करने वाले भी यदि मन छोटा रखें तो इसका अर्थ है कि प्रेम अभी हुआ ही नहीं, स्वार्थ से ऊपर अभी उठे ही नहीं, अविश्वास दिल से निकला ही नहीं, अविश्वास भी अपने ही जन के प्रति..अभी बहुत दूर जाना है ! स्वय को यदि कष्ट होता हो तो भी यदि कोई कुछ मांगता है तो मुँह से ‘ना’ न निकले, ईश्वर ऐसा हृदय उन्हें दे. ईश्वर की प्रसन्नता भी इसी में है कि उसके भक्त उसके मार्ग पर चलें. ईश्वर उन्हें हर क्षण कुछ न कुछ प्रदान करता है, अनवरत उसकी कृपा का प्रसाद उन्हें मिलता है ..तो वे क्यों कृपण बनें ! भक्त तो विश्वास की ज्योति की लौ के सहारे-सहारे अंदर-बाहर दोनों ही जगह उजाला पाता है.

आज सुबह ध्यान में एक अनोखी अनुभूति हुई, सही होगा यह कहना कि ईश्वर ने अपनी उपस्थिति का अहसास कराया ! मन कृतज्ञता से भर उठा था...और उस क्षण की स्मृति चित्त में अंकित हो गयी है. मौसम भी आज सुहावना है. विश्वास गहरा हो तो कोई निश्चिन्त होकर जीवन बिताता है, एक-एक क्षण का आनंद लेता है. भक्ति के कितने ही कीर्तिमान संतों व भक्तों ने बनाये हैं और कुछ हो सकने की सम्भावना उनके भीतर भी है. उसके लिए कुछ होने का अर्थ है..उसका होना ! ईश्वर की सुखद स्मृति में मन को सदा लगाये रखना..इन्द्रियों, मन व वाणी पर नियन्त्रण ही उसे इस पथ पर आगे ले जायेगा ! देह रूपी यंत्र को स्वस्थ रखना उनका कर्त्तव्य है जिससे आत्मा स्वयं को प्रकाशित कर सके. आत्मा को साधन रूपी मन तथा तन मिले हैं, जिन्हें सजग रहकर  स्वस्थ रखना है यह करने का मार्ग भी आत्मा ही सिखाता है.








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