Friday, April 24, 2015

नाद और ज्योति


आज फिर एक अन्तराल के बाद डायरी खोली है. सुबह वर्षा हो रही थी, पर अब थमी हुई है. कल दोपहर की तेज गर्मी की तुलना में, जब वे कार में बैठे थे, आज मौसम सुहावना है. उसका सुबह का कार्य लगभग हो चुका है. पिताजी बाहर बैठकर किताब पढ़ रहे हैं, माँ शाम के सत्संग के लिए साड़ी तय कर रही हैं. आज उनकी तबियत पूरी तरह ठीक नहीं लग रही है. कल तिनसुकिया यात्रा में उन्हें काफी थकान हो गयी थी. कल शाम हल्का सिरदर्द उसे भी था पर थोड़ी देर के ध्यान से ठीक हो गया. शाम को एक मित्र दम्पत्ति मिलने आए, गुरूजी के बारे में विश्वास पूर्वक बातें बता रहे थे. मन श्रद्धा से परिपूर्ण हो तभी विश्वास टिकता है. उसी विश्वास ने सम्भवतः उसे पलों में ठीक कर दिया ! सद्गुरु की महिमा का जितना बखान करो, उतना कम है. जीवनमुक्त स्वयं को उस स्थिति तक पहुंचा लेते हैं कि उनका दर्शन अथवा उनका स्मरण भी हृदय को कैसी शीतलता पहुँचाता है. सुबह-सवेरे की क्रिया में आज मन एक-दो बार इधर-उधर गया और ध्यान में समझ नहीं पायी मन कहाँ चला गया, कुछ पलों की जानकारी ही नहीं है, वह निद्रा था अथवा..ध्यान में पूरी तरह सचेत रहना होगा. कल गांधीजी का जन्मदिन था. वह भी जीवन मुक्त थे और ऐसे व्यक्ति निर्भीक हो जाते हैं. उन्हें न कोई कामना होती है न किसी वस्तु के खो जाने का डर. वे साक्षी भाव से जगत को देखते हैं, उसमें लिप्त नहीं होते. वह सदा आत्मभाव में स्थित हुए जगत को शांत देखने में सफल होते हैं.

सत्य एक है, सत्य ही धर्म है, सत्य ही वह पथ है जिसपर चलकर परमात्मा को पाया जा सकता है. आज ध्यान में उसे अनुभव हुआ कि कृष्ण ने असत्य बोलने पर उसे टोका, फटकारा, समझाया. असत्य बोलने में उसे कोई हिचक नहीं होती, उसका असत्य निर्दोष होते हुए भी असत्य तो है ही. जितना-जितना असत्य छूटेगा उतना-उतना चित्त शुद्ध होगा. मजाक में अथवा सहज भाव से कहा गया असत्य भी आत्मा पर अज्ञान की लेप चढ़ा देता है. बाबाजी कह रहे हैं, ऊंचे हित के लिए लघु हित को त्यागना पड़ता है. परम के निकट जाने की यात्रा जिसे करनी है, उसे अंतर्मुख होकर स्वयं को जानना होगा. क्योंकि वह जितना दूर है उतना ही निकट भी है. वह उन्हें उतना ही प्रेम करता है जितना वे उससे करते हैं बल्कि उनके प्रेम से भी कई गुणा अधिक. उन्होंने कहा गहन ध्यान में नाद सुनाई पड़ता है और ज्योति के दर्शन होते हैं.

कल जिस नाद की बात उसने सुनी थी, आज सुबह ‘क्रिया’ के बाद सद्गुरु की कृपा से वह संगीत सुनाई दिया, घंटों सुनते बैठे रहें ऐसा अद्भुत वादन था, पर मन सचेत था. जून इंतजार कर रहे थे सो ध्यान से बाहर आई, कृष्ण की अनुभूति अंतर को अनंत सुख से ओतप्रोत कर देती है और कृष्ण तक ले जाने वाले तो उसके सद्गुरु ही हैं. वह देह नहीं है, जीव है और जीव परमात्मा का अंश है, उसके लक्षण वही हैं जो परमात्मा के हैं. वह भी शाश्वत, चेतन तथा आनंद स्वरूप है, जिसका भान होने पर सारा का सारा विषाद न जाने कहाँ चला जाता है.  



2 comments:

  1. सत्य ही जीवन है ... और सद्गुरु जो मिलवाता है उस शाश्वत सत्य से ...
    उत्तम लेख ..

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  2. स्वागत व आभार दिगम्बर जी...

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