Wednesday, April 8, 2015

कच्चे धागे पक्के रंग


आज सुबह ‘क्रिया’ के बाद ध्यान अपने आप लग गया, फिर भ्रामरी करते समय अद्भुत  दृश्य दिखे, कितनी सुन्दरता भीतर छिपी है. ईश्वर जहाँ है वहाँ तो सौन्दर्य बिखरा ही होगा. ईश्वर प्राप्ति की उसकी आकांक्षा को इन चिह्नों से बल मिलता है. सुबह सुना था, साधना को कभी त्यागना नहीं है, बाहरी परिस्थितियाँ कैसी भी हों, भीतर की यात्रा पर जाने से वे रोके नहीं. एक वर्ष होने को आया है उसे प्रथम अनुभव हुए. अगले वर्ष में और प्रगति होगी और उसे पूर्ण विश्वास है कि इसी जन्म में उसे आत्म साक्षात्कार होगा. उसे संगदोष का विशेष ध्यान रखना होगा, जल में कमल के समान रहने की कला सीखनी होगी ताकि संसार प्रभाव न डाल सके. वाणी का संयम सबसे अधिक आवश्यक है. मन को भीतर की ओर मोड़ना है. मधुमय, रसमय और आनंद मय उस प्रभु को पाना किना सरल है. अंतर्मुख होना है. चित्त की लहरों को शांत कर उसका दर्पण स्पष्ट करना है, वह अटल तो शाश्वत है ही.

अभी-अभी उसका ध्यान इस बात की ओर गया कि शीघ्रता पूर्वक लिखने से उसका लेख बिगड़ गया है. ईश्वर को चाहने वाले का तो सभी कार्य सुंदर होना चाहिए, क्योंकि वह इतना सुंदर है ! कृष्ण के बारे में कल विवेकानन्द के विचार पढ़े, वह उन्हें महापुरुष मानते थे, बहुत सम्मान करते थे और मन ही मन उन्हें प्यार भी करते रहे होंगे, ईश्वर भी मानते रहे होंगे. कृष्ण ऐसे मनमोहक हैं कि उनके बारे में पढ़कर, जानकर उन्हें कोई भी चाहे बिना नहीं रह सकता है. आज धूप सुबह से ही नजर आ रही है. सुबह वे आधा  घंटा देर से उठे, नन्हे को स्कूल नहीं जाना था, पर साढ़े छह तक सभी कार्य कर योगासन के लिए तैयार थी . सुबह संत मुख से तुकाराम के जीवन पर आधारित घटनाएँ सुनी. सभी संतों ने काफी कष्ट झेले हैं, उसके बाद ही उन्हें मान्यता मिली है. आग में तपकर ही सोना निखरता है. गुरुमाँ ने अंगुलिमाल की कथा सुनाई. अतीत कैसा भी यदि कोई सच्चे हृदय से पश्चाताप करे और भविष्य में ज्ञान का मार्ग पकड़े तो ईश्वर उसे तत्क्षण स्वीकारते हैं. अतः अतीत में न रहकर वर्तमान में रहने का उपदेश संत देते हैं. कर्म के सिद्धांत के अनुसार यदि वे इसी क्षण से सुकृत करें तो भविष्य सुधार सकते हैं. पिछले कर्मों का फल उठाने का सामर्थ्य ईश्वर देते हैं फिर कष्ट कष्ट कहाँ रह जाता है. उसने अपना मार्ग तय कर लिया है, मन में जो भी थोड़ी बहुत आशंका थी उसे गुरू की कृपा ने मिटा दिया है और अब ईश्वर ही एकमात्र उसके जीवन का केंद्र है, जिसका हाथ पकड़ा है और ईश्वर ने उसका !


आज छोटे भाई का जन्मदिन है, उससे फोन पर बात की पर बधाई देना भूल गयी, राखी की शुभकामनायें जरुर दे दिन. पिताजी आज घर पर अकेले रहेंगे, उनका समय टीवी, अख़बार, किताबें और संगीत में अच्छा गुजरता है. बड़े भैया-भाभी का फोन भी आया, छोटी बहन को उन्होंने किया. छोटी ननद का आया, बड़ी को उन्होंने किया. अब बाबाजी आ गये हैं, कह रहे हैं, रक्षाबन्धन आवेश और आवेग को नियंत्रित रखने का दिन है. सारे भयों से मुक्त होने का दिन है, ईश्वर के निकट जाने का तथा सभी के लिए मंगल कामनाएं करने का दिन है. कच्चे धागों का लेकिन सच्चे प्रेम का दिन है. अपने चित्त को अवसाद से बचना है, चित्त की सौम्यता की रक्षा हर हाल में करनी है. अभी प्रभात की सुमधुर बेला है, मन स्वतः ही शांत है, दिन भर सप्रयास इसे इसी भाव में रखने का पर्ण है ताकि रात्रि को सोते समय भी ईश का ध्यान शांत भाव में दृढ़ रखे ! अभी पड़ोसिन का फोन आया वह भी उनके साथ ‘मृणाल ज्योति’ जाएगी. आज पूर्णिमा है, उपवास का दिन, होता अक्सर यह है कि इसी दिन उसे व्यस्तता ज्यादा होती है, उपवास के दिन भर मौन रहने का विचार मन में है एक दिन तो ऐसा होगा ही. 

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