आज भी कल की तरह वर्षा हो
रही है. पिछले चार दिनों से झड़ी लगी है. कल जून का जन्मदिन है और परसों पन्द्रह
अगस्त, जिस दिन वे मित्रों को भोजन पर आमंत्रित करेंगे. घर की सफाई का काम भी चल
रहा है. ‘कृष्ण’ जिसे लोग मन्दिरों में तलाशते हैं उसे मन के मन्दिर में मिल गये
हैं. जिन्होंने सारा का सारा शोक हर लिया है. जीवन को उत्सव बनाया है. ईश्वर की
निकटता का अनुभव ही जीवन का सार है !
आज सुबह उठने में देर हुई, नन्हे को टिफिन में पहली बार ब्रेड देनी पड़ी. जल्दी
में वह पानी भी नहीं ले गया. ससुराल से पिताजी का फोन आया, वह इस बात से नाराज लगे
की माँ कुछ दिनों के लिए यहाँ रहें. पर जून इस बात पर बराबर जोर दे रहे हैं.
भविष्य ही बतायेगा क्या होता है, वह दोनों ही तरह से प्रसन्न है. सुबह छोटे भाई से
बात हुई, उसे व पिताजीको पत्र मिल गया है, उन्हें पढ़कर ख़ुशी हुई जवाब भी दे दिया
है. कल देर शाम को गुलाब जामुन बनाये. दही बड़े के लिए बड़े भी आज ही बनाकर रखेगी.
ईश्वर के पथ पर चलना तलवार की धार पर चलने के समान है, पग-पग पर चोट खाने का
अंदेशा रहता है. थोडा सा भी अचेत हुए तो कभी सूक्ष्म अहंकार अपनी छाया से ढक लेता
है और कभी क्रोध ही अपने फन उठा लेता है. यदि उसकी स्मृति एक क्षण के लिए भी न हटे
तभी वे सजग रह सकते हैं, क्योंकि जो सचेत करता है यदि उसे ही भूल जाएँ तो कौन
मार्ग दिखायेगा ? एक उसी की लौ अगर हृदय में जली हो तो संसार का अँधेरा वहाँ कैसे
आ सकता है? उसे लगता है अभी तो वह पहली सीढ़ी पर ही है, उसे पाकर भी बार-बार खो
देती है, तो ऐसा पाना न पाने के ही बराबर है !
कल ही वह विशेष सत्संग है जब ‘विश्व शांति दिवस’ मनाया जायेगा. एक सखी ने उसे
इस अवसर के लिए एक कविता लिखने को कहा है. सद्गुरु के बारे में सोचते ही कितने ही
भाव मन में उठते हैं. जून को जन्मदिन पर ढेर सारी बधाइयाँ मिली हैं, उन्हें पढ़कर,
भानु दी का भजन सुनकर, ज्ञान सूत्र पढ़कर वैसे ही मन मुग्ध है, सो कविता लिखने के
लिए मन की भूमि पूरी तरह उर्वर है. कल नन्हे और उसके मित्र को कोचिंग से वापस आते
वक्त पुलिस ने रोका. वे स्कूटर पर थे, मित्र के पास लाइसेंस नहीं था और वे दो लोग
स्कूटर पर बैठे थे जो पन्द्रह अगस्त के कारण मना था. एक नया अनुभव उन्हें हुआ.
फ़ाईन देकर दोनों छूट पाए.
भक्ति के लिए जप, तप, ध्यान, सुमिरन, कीर्तन आदि कितने उपाय हैं, लेकिन उसे
सबसे अधिक ‘ध्यान’ ही रुचता है. हर तरह की मानसिकता वाला व्यक्ति इस मार्ग पर चल
सकता है. यह आवश्यक नहीं कि सभी ईश्वर के बारे में एक जैसी अवधारणा रखें. कोई एक
परम शक्ति, कोई परम ज्ञान अथवा कोई परम आनंद के रूप में उसकी कल्पना करता है. उसके
लिए तो उस एक को जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि उस एक को जानने से सब कुछ जाना जा
सकता है. वरना तो ज्ञान की इतनी शाखाएं हैं और कई तो एक दूसरे का विरोध करती हुई
लगती हैं. पल-पल वे मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं, न जाने कितने देखते-देखते काल के गाल
में समा गये. उनका कोई निशान भी नहीं बचता. मृत्यु से पूर्व यदि इस रहस्य से पर्दा
न उठे कि वे यहाँ क्यों हैं, यह संसार क्या है, ईश्वर कहाँ है, उन्हें बार-बार
सुख-दुःख के झकोरे में क्यों झूलना पड़ता है? इन सब बातों का ज्ञान तो बाद में
होगा, इस मार्ग पर चलते-चलते भी कई अनुभव होते हैं. चित्त को सुधारने का प्रयास
करते-करते सुख-दुःख उतना प्रभावित नहीं करते. प्रेम और शांति का उपहार भी मिलता
है.
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