कल रात फिर माँ को सपने में देखा. वे सभी थे. पिता, सभी
भाई-बहन. वह काम कर रही थी, जैसे कि सशरीर हों, वास्तव में वह नहीं थीं, फिर वह
पलंग पर बैठ जाती हैं और पानी मांगती हैं. वे उन्हें पानी नहीं दे पाते क्योंकि
उनका भौतिक अस्तित्त्व नहीं है. मंझला भाई बोतल से उन्हीं के सामने पानी पी रहा है
और वह गिड़गिड़ाती हैं, फिर दुःख और क्रोध से कहती हैं कि उन्हें पानी न देकर क्या
वे सब जीवित रह पाएंगे? कैसा अजीब सा स्वप्न था, पर स्वप्न का अर्थ ही है अजीब...इसके
बाद ही वह जग गयी और यही सोचती रही कि उसके ही मन ने इसे गढ़ा होगा, वास्तव में ऐसा
नहीं होगा कि माँ को अंतिम समय में पानी की जरूरत रही हो और वह उन्हें न मिला हो.
पर अब इन बातों का कोई अर्थ नहीं है, जाने वाले एक बार जाकर वापस नहीं आते. कल जून
ने “बस इतना सा सरमाया” की spiral binding भी करवा दी. नन्हे ने उस दिन कवर पेज भी
कम्प्यूटर पर प्रिंट कर दिया था. माँ की कृतज्ञ है कि न होने पर भी उन्होंने उसे
इतना बल दिया. कल शाम वे उड़िया मित्र के यहाँ गये. सखी की तबियत ठीक नहीं थी पर
उसने अच्छी आवभगत की अब वापसी पर घर आने का निमन्त्रण भी दे दिया है. आज सुबह से
सूरज निकला है अभी पैकिंग का कुछ काम शेष है. जून के आने से पहले समाप्त हो जाने
से अच्छा है वरना वह बहुत जल्दी परेशान हो जाते हैं.
आज सुबह पिता से बात की,
ठंड वहाँ कम हो गयी है सो ज्यादा गर्म कपड़े ले जाने की आवश्यकता नहीं है. इस समय
फिर आकाश बादलों से ढका है, धूप निकलती है तो सब कितना स्पष्ट दिखाई देता है ऐसे
ही जब मन पर अज्ञान के बादल छाये हों तो कुछ भी स्पष्ट नहीं सोच पाता. ज्ञान की एक
किरण ही कितना प्रकाश भर देती है. सुबह बंगाली सखी ने उसकी कविताओं की तारीफ की
उसने अपने पति से उनके बारे में सुना था. कल दो और मित्र परिवारों ने भी पांडुलिपि
देखी. एक रचियता के लिए सबसे सुखद पल वे होते हैं जब कोई उसकी रचना को पढ़े व समझे.
मार्च का मध्य आ गया है.
फरवरी के अंतिम सप्ताह में वे यात्रा पर निकले थे. उस दिन के बाद आज पहली बार
डायरी खोली है. वे तीन दिन पहले वापस आ गये थे, आने के बाद सफाई आदि के कार्य से
निबट कर पुनः पुस्तक के काम में जुट गयी है. अभी भी आठ-दस दिनों का काम शेष है.
नन्हा सुबह सोकर उठा तो पेट दर्द की शिकायत कर रहा था, उसे सम्भवतः अपच हो गया है.
सुबह एक सखी से बात हुई उसने कहा, वह कहानियाँ भी लिखे, एक बार पहले भी उसने यह
बात कही थी. उसकी अगली पुस्तक कहानियों की हो सकती है, विचार बुरा नहीं है. अज
सुबह छोटी बहन से बात की, वह थोड़ी चुपचुप लगी, परिवार से दूर होने के कारण या वे
उससे मिलने नहीं गये शायद इस बात का मलाल हो या उसका वहम् भी हो सकता है. आज नन्हे
को नई किताबें लेने स्कूल जाना है जून उसे दोपहर को ले जायेंगे.
फिर से एक सपना... पता नहीं सोच का परिणाम या मन की कोई गाँठ... "बस इतना सा सरमाया" अच्छा नाम है. और बिलकुल सही बात कि अपनी रचना की कोई प्रशंसा करे तो बहुत अच्छा लगता है. मैं तो हमेशा कहता हूँ कि कोई भी रचना एक प्रसव पीड़ा के बाद ही जन्म लेती है. ऐसे में उसकी तरीफ़ अपने बच्चे की तारीफ सी लगती है.
ReplyDeleteइंतज़ार रहेगा उसकी कहानियों का भी. और शुभकामनाएँ उसकी कहानियों की किताब के लिये!