परसों सुबह छोटी बहन ने फोन पर खबर दी,
बात करते वक्त वह सामान्य थी पर फोन रखते-रखते ही रुलाई फूट पड़ी. मन जानता था कि
यह होने ही वाला है. गुजरात में आए भूचाल में लाखों प्रभावित हुए हैं, हजारों की
मौत हो गयी. एक झटके में वे गहरी नींद में सो गये. जीवन कितना क्षण भंगुर है. इलाहबाद
में महाकुम्भ में एक ओर लाखों स्नान कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गुजरात के लोग दुःख
और पीड़ा में डूबे हुए हैं. इन्सान प्रकृति के आगे कितना बेबस है.
कुछ देर पूर्व मंझली भाभी
से बात की. आज वहाँ सभी फूल चुनने गये हैं. आज चौथा रस्म है, शनिवार को दसमी और छह
को तेहरवीं. कल दिन भर जून बेहद उदास दिखे, उन्हें ऐसा देखकर उसने सामान्य रहने का
प्रयास किया, पर सहज रूप से रहना अलग बात है कोशिश करना अलग. नन्हे का स्कूल आज
बंद है, आज बसंत पंचमी है. सरस्वती पूजा का आयोजन जगह-जगह किया जा रहा है.
जीवन के सच बहुत कड़वे होते
हैं, मानव आँखों पर रेशमी पर्दे डाले रहता है पर सच्चाई सारे पर्दे उठा सामने आ
खड़ी होती है. मृत्यु भी एक ऐसी सच्चाई है. आज बापू की पुण्य तिथि भी है ‘शहीद दिवस’,
सो आज मरण दिवस ही है. पर मृत्यु के बाद नया जन्म भी तो होता है. आत्मा को नव शिशु
का कलेवर मिलता है एक बार फिर मृत्यु का ग्रास बनने के लिए. इसलिए ही संतों ने इस
चक्र से मुक्ति को ही मानव का अंतिम लक्ष्य माना है. कितने जन्मों में कोई कितना
कुछ पाए अथवा खोये, अंततः मृत्यु सब समेट लेगी. किन्तु इससे जीवन की महत्ता कम तो
नहीं हो जाती. जीवन चाहे एक क्षण का हो या कुछ वर्षों का, अपने आप में एक उपहार
है. जैसे और भौतिक वस्तुएं सदा साथ नहीं देतीं वैसे ही शरीर भी एक दिन नष्ट हो
जायेगा. यही सनातन सत्य है. फूल खिलता है झरता है फिर खिलता है फिर झरता है, इससे
फूल की महत्ता कम तो नहीं होती. जिसका जितना साथ मिला है उतना ही कृतज्ञ होते हुए
उसे सम्मान देना चाहिए. गुजरात के उन हजारों लोगों को जो भूकम्प से आहत हुए हैं या
मृत हो गये हैं, सच्ची श्रद्धांजलि वे सैनिक और समाज सेवी संस्थाओं के कार्यकर्ता
दे रहे हैं जो दिन-रात वहाँ काम में जुटे हैं.
मन के आकाश पर काले घने
बादल छा गये कहीं कोई रोशनी की लकीर नहीं, फिर एकाएक बादल छंटने लगे और नीला आकाश
धूप की चमक लिए स्पष्ट हो उठा, यह आकाश जिस तरह है नहीं पर दीखता है, उसी तरह मन
का यह भ्रम उहापोह है नहीं, दीखता है. सब कुछ स्वप्नवत है आज जागरण में फिर शरीर
की अनित्यता और परमात्मा की नित्यता के बारे में सुना, वर्षों से सुनती आ रही है कि
देह मरण धर्मी है. लगता था कि समझ भी लिया है पर ऊपर-ऊपर से समझना और उसे वास्तव
में जानना, इन दोनों में काफी फर्क है. पता नहीं कहाँ से यह दुःख मन में आकर बैठ
गया है जो माँ के इस तरह चले जाने से ही उत्पन्न हुआ है. पहले-पहल लगा था कि मन
सम्भला रहेगा पर पिछले दिनों की तरह उनकी स्मृति के अलावा कोई और बात मन में नहीं टिकती.
शायद उसे स्वयं को ज्यादा समय देना चाहिए, धीरे-धीरे सब स्वयं ही सामान्य हो
जायेगा. जून भी आजकल बहुत चुप रहते हैं. कल जब वह आये और यह बताया कि वे नहीं जा
रहे हैं तो उसे बहुत दुःख हुआ. उन दोनों में से एक को वहाँ पहुंचना है ऐसा निर्णय
वे कर चुके थे क्यों कि नन्हे को ले जाना ठीक नहीं होगा. कल उसके स्कूल में कवि
सम्मेलन प्रतियोगिता थी. उसका हाउस अंतिम स्थान पर रहा, उसने भाग लिया और आज
working model competition में भी भाग ले रहा है. सुबह दो सखियों के फोन आये उनके
साथ भी वही बात हुई. गुजरात में मृतकों की संख्या बढ़ती जा रही है. प्रकृति निर्मम
है.
मैं तब कोलकाता में था और इनकी छोटी बहन गुजरात में जब यह भूकम्प आया था. लेकिन जीवन फ़ीनिक्स की तरह है... अपनी राख से एक नये शरीर का निर्माण् करता है वह पक्षी और फिर एक नई उड़ान पर निकल जाता है...
ReplyDeleteदु:ख हुआ, साथ ही परमात्मा का धन्यवाद भी किया कि शारीरिक कष्ट से मुक्ति मिली. मैं स्वयम यह मानता हूँ कि मृत्यु जीवन का वह स्थान है जहाँ जाकर बचपन की खुशियाँ अपनी ऊँचाई हासिल करती हैं. लेकिन वो सब जीव के साथ होता है, उससे जुड़े नाते-रिश्तेदारों के मोह का क्या.. जो डुबो देता है उन्हें आँसुओं के सागर में!!
समय सबको सामान्य बना देता है! धीरे धीरे!!!
फीनिक्स का उदाहरण बिलकुल सही है गुजरात के सन्दर्भ में जो इतनी बड़ी त्रासदी के बाद शीघ्र ही पुनः खड़ा हो गया था
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