Friday, September 5, 2014

कोहरे का जाल


आज पूरे एक हफ्ते बाद डायरी खोली है. उस दिन जून उसे छोड़ने एयरपोर्ट गये थे. वह दिल्ली पहुंच गयी थी शाम साढ़े सात बजे, घर पहुंचते नौ बज गये. अगले दिन सुबह साढ़े चार बजे ही भाई के साथ टैक्सी स्टैंड गयी. कोहरा घना था और स्टेशन तक के रास्ते में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, लग रहा था कोई स्वप्न चल रहा है. उड़ान के दौरान भी और ट्रेन में भी सारा वक्त मन में एक वही ख्याल मंडरा रहा था. कोहरे के कारण उनकी ट्रेन बहुत रुक-रुक कर चल रही थी. दोपहर बाद वे गन्तव्य पहुंचे, मंझला भाई लेने आया था पर उसकी गाड़ी में पेट्रोल खत्म हो गया, भागदौड़ में उसे भरवाने का वक्त ही नहीं मिला था, बस से वे अस्पताल पहुंचे. जहाँ शेष सभी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे. थोड़ी देर में ही अस्पताल गयी, उनको ऑक्सीजन दी जा रही थी और भी कई नलियां उनके विभिन्न अंगों से जुडी थीं, देखकर उसकी आँखें भर आयीं. वह उसे देखकर पहले तो खुश हो गयी थीं, जिसे उन्होंने ताली बजकर भी दर्शाया पर उसके आँसूं देखकर दुखी हो गयीं. वह बोल नहीं सकती थीं. उन्हें इतनी पीड़ा सहते देख सभी दुखी हैं पर कोई कुछ नहीं कर सकता. उसके बाद वह चार दिन वहाँ और रही. एक बार माँ ने उसका लिखा संदेश पढ़ा और आशीर्वाद भी दिया. लिखना भी चाहा पर इस बार उनकी लिखाई ठीक नहीं रह गयी थी. एक दिन बाद वह वापस दिल्ली आ गयी और अगले दिन असम, जहाँ जून और नन्हा उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे.

कल रात भर उसे वही स्वप्न आते रहे. ऑक्सीजन, हीमोग्लोबिन, ICU, और डॉक्टर, अस्पताल शब्द कानों में गूँजते रहे. एक बार माँ को बोलते हुए भी सुना. वह ठीक होकर आ गयी हैं और किसी बारे में पिता के सवाल का जवाब दे रही हैं. कल शाम वे लाइब्रेरी भी गये और माँ की बीमारी पर जानकारी हासिल की. उन्होंने बहुत कष्ट सहा है इस रोग के कारण. ईश्वर ही अब उनका सहायक है. उसका सिर भारी है, मस्तक के दोनों ओर की नसें तन गयी हैं. कल शाम को जून को तनावमुक्त रहने का उपदेश दे रही थी पर स्वयं तनावमुक्त रहना कितना मुश्किल है. आज सुबह सुना विजयाराजे सिंधिया तेईस दिन ICU में रहने के बाद स्वर्ग सिधार गयीं तो दिल धक से रह गया. माँ को भी अस्पताल में दो हफ्ते हो गये हैं. अभी-अभी छोटी बहन को फोन किया, शायद वह व्यस्त थी, फोन नहीं उठाया. जून भी उसे उदास देखकर परेशान हो गये हैं. उसे स्वयं को सामान्य रखने का प्रयास करना चाहिए, जिस बात पर उनका कोई वश नहीं है उसके बारे में चिन्तन करते रहने से क्या लाभ ? आज से संगीत का अभ्यास शुरू करेगी, मन को व्यस्त रखने से ही वह शांत रहेगा. सबसे बड़ा दुख संसार में है इच्छा, इच्छा पूरी हो जाये तो दूसरी उत्पन्न होगी, पूरी न हो तो दुःख देगी.

“कबिरा सब ते हम बुरे हम तज भलो सब कोई
जिन ऐसा करि देखिया मीत हमारा सोई”

मन को जितना धोते हैं उतना पता चलता है कि मैल की कितनी परतें चढ़ी हैं.


2 comments:

  1. माँ की स्थिति में सुधार (जितना भी दिखा) देखकर इतने सीरियस वातावरण में भी एक तसल्ली अनुभव हुई.उसने माँ से मुलाक़ात की तमाम मुश्किलों के बावजूद भी - यह और भी अच्छा हुआ. कई बार मन में मलाल रह जाता है. जैसे मुझे मेरे पिता जी के समय.

    जून सचमुच एक सच्चे साथी की भूमिका में है. अपने किसी बहुत अपने का साथ ऐसे मौक़ों पर बहुत ढाढस और सुकून देता है!

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  2. सही कहा है आपने, और यह मलाल जीवन भर साथ रहता है

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