Tuesday, September 2, 2014

अस्पताल में


नन्हे का होमवर्क अभी भी खत्म नहीं हुआ है, उसका स्कूल अगले हफ्ते खुल रहा है. आज सुबह एक अच्छी बात सुनी, यदि किसी को आध्यात्मिक उन्नति करनी है तो अपनी आस्था, निष्ठा और श्रद्धा को एक बिंदु पर केन्द्रित करना होगा, भटकाव कहीं पहुंचने नहीं देगा, जैसे कोई किसान अपने खेत में जगह-जगह गड्ढे खोदता है, उसका विश्वास डगमगाता रहता है और इस तरह कुआँ कभी पूरा नहीं हो पाता. इसी तरह साधक कभी योगी, कभी भक्त, कभी वेदांती, कभी उपासक बन जाता है, उसकी निष्ठा एक तरफ न होकर अनेक ओर बिखर जाती है. उसका लक्ष्य कभी नहीं मिलता. ईश्वर के सान्निध्य का अनुभव वह क्षणिक रूप से तो करता है पर सदा उसी में अनुरक्त नहीं रह पाता.

आज के दिन की शुरुआत जून से फोन पर बात के साथ हुई, नैनी आज फिर छुट्टी पर है सो सुबह के काम करते-करते ग्यारह बज गये हैं, आज दोपहर को वह सखी अपने बेटे के साथ आएगी. पड़ोसिन का फोन आया, आजकल वह उसका ज्यादा ध्यान रखने लगी है. जब से उसे सूट लाकर दिया है, लिखकर वह मुस्कुरा दी. आज का प्रवचन करुणा और मैत्री पर था. सुनते समय कई उद्दात भाव हृदय में उठते हैं, संवेदनशीलता, करुणा, सहानुभूति और मैत्री. यही गुण मानव को मानव बनाते हैं. छोटी बहन से बात हुई, उसे बच्चों से अलग रहना मान्य  नहीं, चाहे बीच-बीच में परेशानी खड़ी हो, फ़िलहाल उसकी फील्ड ड्यूटी नहीं है. ‘योग वशिष्ठ’ में श्रीराम की जीवनचर्या का, उनके विषाद का वर्णन पढ़कर मन अभिभूत हो जाता है. रात को वह श्री अरविंद का ‘वेद रहस्य’ पढ़कर सोती है, अभी तक भूमिका ही चल रही है. 

आज उनका फोन डेड है सो जून से बात नहीं हो सकी, वह अवश्य ही प्रतीक्षा कर रहे होंगे. सुबह एक बार तो नींद खुल गयी पर वह पंछियों की आवाजों को सुनने का प्रयत्न  करने लगी, उसी समय हल्का उजाला भी खिड़की से स्पष्ट होने लगता है. सुबह ही सुबह लेडीज क्लब की एक सदस्या का फोन आया, उन्होंने शाम को बुलाया है. ‘हसबैंड नाईट’ के कार्यक्रम के लिए हिंदी में ‘नवरस’ पर कुछ लिखना है, ऐसा उन्होंने कहा. ‘जागरण’ सुना पर मन स्थिर नहीं रह पाया, कभी पढ़े साहित्य के नवरसों में डूबने लगा. महाकुम्भ पर समाचार देखे, दुनिया का विशालतम धार्मिक मेला कुम्भ करोड़ों लोगों के आगमन से सभी के आकर्षण का केंद्र बना है. मेले की व्यापकता का अनुमान लगाना कठिन है. भविष्य में कभी अवसर मिला तो वह अवश्य जाएगी. विदेशी पर्यटकों को योगासन करते व संगम में डुबकी लगाते देखना एक अनोखा अनुभव था. नागा साधुओं का जुलुस भी शोभनीय था. सदियों से यह मेला हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक बना हुआ है, ईश्वर की अनोखी कृतियों में यह भी एक है. दोपहर को वह बच्चा आयेगा, पढ़ने में अच्छा है, उसका लेख भी स्पष्ट है.  

कल रात वे सो चुके थे, पता नहीं कितने बजे होंगे, फोन की घंटी बजी, उसने फोन उठाया पर उधर से कोई आवाज नहीं आई. अजीब सी बेचैनी मन पर छाई थी. कुछ देर बाद पुनः घंटी बजी तो उसने जानबूझकर फोन नहीं उठाया. फिर फोन शांत हो गया. कोई बुरी खबर होगी, इसका भी अंदेशा था, अजीब से ख्यालों ने मन को घेर लिया था. रात के सन्नाटे में धीमी आवाजें भी स्पष्ट सुनायी देती हैं. जून के बिना रात डरावनी लग रही थी. ईश्वर भी कहीं दूर चले गये थे, ईश्वर जिसको दिन में अपने आस-पास ही महसूस करती है. फिर पता नहीं कब सो गयी. नन्हा दूसरे कमरे में आराम से सोया था. सुबह फिर फोन की घंटी से ही नींद खुली, बड़ी भाभी का फोन था, माँ अस्पताल में हैं. वे लोग शताब्दी से घर जा रहे हैं. जून से बात हुई तो पता चला, वह भी यहाँ न आकर उनके साथ ही जा रहे हैं. उन्होंने कहा, वहाँ पहुंचकर खबर देंगे.



2 comments:

  1. एकाग्रता सचमुच आवश्यक है किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये. और आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति तो एक साधना है, जीवन निकल जाता है.

    बहन के फ़ैमिली रियुनियन की बधाई! और लग रहा है कि यह पड़ोसन कब तक सखी बनती है! :)
    मेरे साथ कई बार ऐसा हुआ है कि जब बहुत ज़रूरत रही है तो फ़ोन डेड मिलता है या (इन दिनों) स्विच्ड ऑफ!! हमने इलाहाबाद प्रवास के दौरान कुम्भ मेले की विशालता को साक्षात देखा और अनुभव किया है. शायद यही विशाल जन सैलाब फ़िल्मों में दो भाइयों के बिछड़ने की पृष्ठभूमि बना होगा.

    देर रात का फ़ोन दिल की धड़कनें बढा देता है, विशेषकर उन प्रवासियों के लिये जिनके परिजन उनके पास नहीं हों और अस्वस्थ रहते हों!!

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  2. स्वागत व आभार ! तो आपने कुम्भ भी देखा है...लगता है पड़ोसिन को अब पड़ोसिन सखी कहने का वक्त आ गया है.

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