Thursday, September 5, 2013

अटलांटा ओलम्पिक


कल वे क्लब में English फिल्म  Rising sun देखने गये, उसे ज्यादा अच्छी नहीं लगी, जबकि जून को रोचक लगी, पसंद अपनी-अपनी. शनिवार है आज, परसों से नन्हे के इम्तहान हैं. अभी जून के आने में एक घंटे का समय है, उसने सोचा इसका सदुपयोग करना चाहिए कोई कविता लिखकर या ध्यान लगाकर, कोई पत्रिका या पुस्तक पढ़ना तो बहुत आसान कार्य होगा जो बाद में भी किया जा सकता है.

कल उनके मित्र ट्रेन से आने वाले थे, पर कामरूप जिला बंद है, ट्रेन लेट है सो वे कल आयेंगे. इन आए दिन के ‘बंद’ का और कुछ असर होता है या नहीं, लोगों को परेशानी अवश्य होती है. कल दोनों घरों को पत्र भेज दिए और वे दोनों कविताएँ भी जो जून को बहुत अच्छी लगी थीं. उनके बाएं तरफ वाली पड़ोसिन किसी से फोन पर बात कर रही अहै उसके हंसने और बातों की आवाज यहाँ तक आ रही है, वह तेज तो बोलती ही है पर सन्नाटा भी तो है.

इस वक्त भी वर्षा हो रही है, पिछले कई दिनों लगातार वर्षा की टिप-टिप कानों में सुनते-सुनते अब तो इसका अभ्यास हो गया है, जैसे ईश्वर नल खुला छोड़कर भूल गये हों. नन्हा शुक्रवार को स्कूल नहीं गया, कल उसके दो पेपर थे, शाम को उसके दोस्तों को बुलाकर छोटी सी पार्टी की उसके जन्मदिन की. सभी बच्चों को बहुत अच्छा लगा. कितने भोले और कितना साफ़ दिल होते हैं बच्चे, निष्पाप, निर्द्वन्द्व, बड़े उनकी तुलना में कभी-कभी छोटे लगने लगते हैं, सारी उम्र बच्चे ही क्यों नहीं बने रह पाते. अगर बड़े भी उनकी तरह बातों के पीछे छिपे अर्थ न निकालें, जो जैसा है उसे वैसा ही लें, तो कितने ही उहापोहों से बच जाएँ, चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में देखने की आदत मात्र से. कल एक जापानी उपन्यास पढ़ा, अच्छा था, इतना रोचक की एक बार कोई हाथ में ले तो छोड़ने का मन ही न हो. जून नन्हे के लिए एक पत्रिका लाये हैं wisdom काफी ज्ञान है उसमें शुद्ध खालिस जानकारी.

आज से एटलांटा में ओलम्पिक खेलों का शुभारम्भ हो रहा है, यूँ वहाँ के समय के अनुसार १९ जुलाई यानि कल से खेल आरम्भ हुए अर्थात इस समय वहाँ कल शाम के साढ़े चार बज रहे होंगे. उसने उद्घाटन समारोह देखकर अच्छा लगा.

सिमट आया है सारा विश्व
मानो एक प्रांगण में आज
निहारते स्वप्न नगरी करोड़ों उत्सुक नयन
थिरकते एक लय में बद्ध नर्तक
लहराते इन्द्रधनुष रंगों के वस्त्र
धरा से गगन तक गून्जतीं ध्वनियाँ
सजतीं रौशनी की लड़ियाँ
और दमकते चक्र
अनुपम ! अद्भुत !
जैसे परीलोक उतर आया हो
एकता के सूत्र में पिरोता है पांच महाद्वीपों को
यह ओलम्पिक का महाकुम्भ !


इन्सान का दिल यानि मन दुनिया की सबसे अनोखी वस्तु है. मन में इतने तरह के विचार आते हैं, छोटे, बड़े, सुंदर, असुन्दर और कोई-कोई तो इतने बेतुके कि..मन खुद भी शर्मा जाये और यही वह मन है जिसने अपने विचारों की नवीनता से संसार को कई खोजें प्रदान कीं, कितनी पुस्तकें, कितने सुंदर चित्र और कलाकृतियाँ, कोमल भावनाएं भी इसी मन में अंकुरित होती हैं और कठोर निर्णय भी, कटु भाषा भी इसी मन के धरातल पर उत्पन्न होती है, और वह जो अक्सर छोटी-छोटी बातों पर झुंझला उठती है उसके मन की कमजोरी की निशानी है. आज सुबह सुना, कार्य विचार की निरन्तरता का परिणाम है, जैसे हमारे विचार होंगे हम वैसा ही कार्य करेंगे और वैसा ही स्वयं को पाएंगे. कल शाम उसने अपनी एक सखी के साथ क्लब में स्विमिंग पूल के किनारे ठंडे शांत वातावरण में हल्का-फुलका व्यायाम किया, शाम का वक्त, पानी बहुत स्वच्छ था और वर्षा होकर थमी ही थी.    



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