Thursday, September 19, 2013

जलेबी का प्रसाद


नन्हे को सर्दी लग गयी है, वह स्कूल नहीं जा रहा है, पर शाम को कम्प्यूटर क्लास अवश्य जाता है, दिन भर उसको व्यस्त रखना होता है, नूना के गले में भी हल्की खराश महसूस हो रही है. उसने देखा है कि नन्हे को कुछ होने पर उसके खुद के भीतर भी वही लक्षण दिखने लगते हैं, पर इतनी कमजोर नहीं होना है उसे, छोटी बहन को बहादुर बनने की शिक्षा देते हुए एक पत्र लिखा था परसों. नन्हा इस समय ब्लॉक्स से घर बना रहा है, कभी-कभी पूरा एक घंटा उसे लग जाता है, छोटे छोटे प्लास्टिक के ब्लॉक्स से इमारत बनाने में. वह उसकी एक किताब ‘हमारी पुस्तकें’ पढ़ रही थी, उसमें वेद, पुराण, उपनिषद, कथा सरित सागर, जातक कथाएं आदि के बारे में पढ़ा. कुल उपनिषद १०८ हैं, जिनमें से दस प्रमुख हैं, ईश, केन, मुण्डक, माण्डुक्य, तैतरीय, छान्दोग्य, कथा, प्रश्न, कैवल्य, एतरिय आदि.

नन्हे को जून अस्पताल ले गये थे, पर डॉक्टर से मिल नहीं पाए, रात भर की वर्षा के बाद हॉस्पिटल में पानी भर गया है, जिससे वे लोग कार से उतर ही नहीं सके, उसका स्कूल भी वर्षा के कारण बंद है. उसने महसूस किया नन्हे की अस्वस्थता के कारण वह कुछ परेशान हो गयी है. जो उसके चेहरे पर भी झलक रही है. दोपहर को जब वह सो गया, वह उपनिषद पढ़ती रही कुछ समझ में आया, कुछ नहीं, कल शाम को जितने अध्याय पढ़े, ज्यादा समझ पायी थी. सारी पुस्तक का सार निकाला जाये तो यह होगा कि- ‘आत्मा मानव के हृदय में विराजमान है, आत्मा ही ब्रह्म है, जिसका दर्शन मानव ध्यान द्वारा कर सकता है. इन्द्रियों को वश में करके, मन का निग्रह करके, सदाचरण करके, ॐ का उच्चारण करके, जप द्वारा ध्यान करके आत्मा को जाना सकता है. सारे उपनिषदों में भिन्न-भिन्न प्रकार से ब्रह्म की अखंड सत्ता का, एकमात्र शाश्वत ब्रह्म का वर्णन किया है’.
कुछ देर पहले वह छाता लेकर बाहर टहलने गयी क्रिसेंथमम के पौधे कुम्हला से गये हैं, उनमें खुरपी लगाई, मन थोड़ा शांत हुआ, वैसे अशांत कब और कैसे हुआ उसे पता ही नहीं चला, फिर कैसेट लगाकर व्यायाम किया, वर्षा के कारण टहलना बंद है. अज शाम उन्हें क्लब भी जाना है, नन्हे को क्विज़ में भाग लेना है. आज सुबह जब नींद खुली थी तो दूर से आती मद्धिम सी आवाज थी, नींद में कभी लग रहा था फोन बज रहा है कभी अलार्म. कल जन्माष्टमी की छुट्टी है,  शाम को वे राधा-कृष्ण मन्दिर की सजावट देखने जायेंगे.

कल वे कृष्ण मन्दिर देखने के बाद कालीबाड़ी भी गये, पता नहीं क्यों पर ईश्वर का निराकार रूप ही उसे वास्तविक लगता है, मूर्ति या फोटो देखकर मन में श्रद्धा नहीं होती. वहीं से वे उस सखी के यहाँ गये जो वस्त्रों पर पेंटिग सीख रही है, आजकल दीवान का कवर पेंट कर रही है, रंगशोख और चटख हैं. कल दोपहर बैकडोर पड़ोसी के यहाँ सिंथेसाइजर बजाया, उसने एक गाने की स्वरलिपि भी बताई. उसकी आवाज काफी तेज थी, काफी बड़ा भी था. नन्हे ने मन्दिर सजाया है और शाम को वह जलेबी का प्रसाद भी बनाने वाली है. आज शिक्षक दिवस भी है. संयोग ही है की उसके पास डॉ राधा कृष्णन की एक पुस्तक है, जो लाइब्रेरी से लायी थी.


कल शाम को ‘स्वामी रामतीर्थ’ के भाषण पढ़े और अभी कुछ देर पूर्व भी वही पढ़ रही थी. उनके शब्दों में ओज है और आत्मा को जगाने की शक्ति, कल से कई बार इन्ही शब्दों के प्रभाव के कारण मन को व्यर्थ के जोड़-तोड़ से बचा पायी है. उसे लगा, वे अपना कितना सारा वक्त यूँही व्यर्थ की बातों में बिता देते हैं और मन की ऊर्जा जिसे किसी अच्छे काम में लगाना चाहिए, इधर-उधर की बातों को सोचने में खर्च कर देते हैं. 

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