Saturday, September 14, 2013

मेले में झूला


अभी कुछ देर पहले वे टहलने के लिए निकले ही थे कि गले में कुछ चुभता सा महसूस हुआ, कुछ अजीब सा जैसे कोई लम्प हो और अभी-अभी मेडिकल गाइड में lump in throat पर पढ़ा, लिखा है, कभी-कभी यह सिर्फ तनाव की वजह से भी होता है. पर उसे लगता है यह केवल फिजिकल कारण से है, कल सलाइवा ग्लैंड में pain था उसी से जुड़ा कोई मर्ज है. आज १५ अगस्त है, आजादी के ढेर सारे तराने सुने, देवेगौड़ा जी का भाषण भी सुना. दोपहर को मित्रों के साथ सहभोज भी अच्छा रहा. इस समय टीवी पर ‘फौजी’ आया रहा है, जिससे थोड़ी देर के लिए वह lump के बारे में सोचना भी भूल गयी थी, पर अब सीरियल खत्म हो गया है और लम्प फिर याद आ गया है.

जून क्लब गये हैं, Treasure Hunt में भाग लेने, अभी दो भी नहीं बजे हैं और उसे अकेलापन (शनिवार के दिन) खटक रहा है. नन्हे के आने में अभी पूरा एक घंटा है. कुछ देर एक पत्रिका से कटिंग्स करती रही, कुछ देर पढ़ी भी और अब टीवी, पर मन कहीं  स्थिर नहीं हो रहा है. उस दिन गीता में पढ़ा ही था, राजसिक वृत्ति वाले थोड़ी देर स्थिर नहीं बैठ सकते. उनका चित्त इधर-उधर दौड़ता रहता है. सात्विक गुणों से वह दूर है और तामसिक भी ज्यादातर समय तो नहीं है फिर राजसिक प्रवृत्ति ही है जो एक कार्य में मन लगाने नहीं देती. मन को शांत, स्थिर करना ही तो अध्यात्मिक, धार्मिक व नैतिक कर्त्तव्य है. मन को साधै सब सधे.. ठीक ही कहा है किसी कवि ने. इस हफ्ते छोटे व मंझले भाई के पत्र आए हैं, सोमवार को जवाब लिखेगी जो उसका खतों के उत्तर लिखने का दिन है.

आज मौसम सुहाना है, न सर्दी न गर्मी..और वह भी ऐसी ही होना चाहती है. सुबह नन्हे को डांट कर उठाया तो, पर बाद में सुना, खुश रहने का उपाय है दूसरों को ख़ुशी देना. कल वे मेला देखने गये, ऊँचे झूले पर बैठे वह आँखें नहीं खोल पायी डर से कुछ पल के लिए, जबकि नन्हा आराम से मजे ले रहा था. उसे देखकर वह भी सामान्य हो गयी. उस दिन किसी भी टीम को खजाना नहीं मिला, इतने कठिन क्लू थे कि समय सीमा समाप्त हो गयी थी. उनके आने में अभी एक घंटा है, वह आज पहली बार coconut rice बना रही है, इस उम्मीद पर की उन्हें पसंद आयेगा.


अभी-अभी एक सखी से फोन पर बात की और दिल जैसे सुकून से भर गया. बंगाली सखी ने खत में लिखा है, मैत्री बहुमूल्य है उसे वह खोना नहीं चाहती, वह भी मित्रता खोना नहीं चाहती, किसी हद तक यह नितांत आवश्यक है. आज टीवी पर खाना खजाना में मसाला दोसा व साम्भर बनाने की विधि सीखी और उस सीखे हुए का उपयोग कर  साम्भर बना रही है. जून और नन्हे दोनों को ही पसंद है. अभी-अभी एक सखी से बात की वह मेंहदी लगाना सीखने के बाद अब पेंटिंग सीख रही है. और इसके बाद सिलाई सीखेगी. उसे भी कुछ सीखना चाहिए जैसे कि मीठा बोलना, अच्छी सी कविता लिखना, ऐसी जो उत्साह से भर दे या फिर मित्रता निभाना और पत्र लिखना. खुद को व जून और नन्हे को स्वस्थ रखना, घर का माहौल शांत व साफ-सुथरा बनाना और सुबह सवेरे जल्दी उठना. जून ने भी कहा आज, वह उठ जल्दी उठेगी तो सारा घर उठ जायेगा. और भी कुछ सीखना है पर पहले घड़ी की तरफ नजर डाल ली जाये उसने सोचा, ग्यारह बजे से पहले-पहले ही खाना तैयार हो जाना चाहिए.



  

2 comments:

  1. पढ़कर याद आया कि मीठा बोलना सीखने के प्रयास मैंने भी जीवन में कई बार किये लेकिन शायद मैं शायद अपनी प्रकृति को अधिक बदल न पाया. गनीमत यही रही कि सदा अच्छे लोगों का साथ मिला जिन्होंने संवाद के अभाव, बेरुखी या कड़वाहट को कभी अधिक महत्व दिया ही नहीं. हाँ, डायरी लिखने की आदत ने अपने जीवन के सटीक पुनरावलोकन का उपकरण अवश्य प्रस्तुत किया.

    मैं उन दिनों उसी परिसर में रहता था जहाँ तब फौजी की शूटिंग होती थी. शाम को अपनी पहली नौकरी से घर आने पर आसपास के सभी बच्चे घेरकर शूटिंग के किस्से सुनाते थे.

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  2. मुझे तो लगता है कोई भी प्रयास कभी असफल नहीं जाता, देर-सबेर उसका परिणाम मिलता है, नीरू माँ कहती हैं, हम जो रिकार्ड करके लाये हैं वही तो निकलेगा, तो जब पहले की रिकार्डिंग खत्म हो जाएगी, सब ठीक हो जायेगा. आपकी बात पढकर इतना तो तय हो गया कि डायरी लिखना एक अच्छी आदत है, अन्यथा ये सारी बातें कहाँ याद रहतीं..

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