आज नन्हा पानी की बोतल ले जाना भूल गया, जबकि वह उसके
बैग के निकट ही रख देती है. बस में चढ़ने के बाद उसने इशारा किया, पर जब तक वह घर जाकर बोतल लेकर आती बस को
चले ही जाना था, उसने सोचा यही ठीक है कि आज वह पानी के बिना ही रहे, तभी भविष्य
में ऐसी भूल नहीं करेगा. परसों शाम को लेडीज क्लब की मीटिंग है, फोन करके सबको बताना
है, कल तैयारी भी करनी होगी. आज सुबह से पड़ोस के बच्चे की सूसी नाम की एक बिल्ली
उनके स्टोर में आकर सोयी है, शायद उसे यह घर भी अपना घर लग रहा है. उसे आवाज सुनाई
दी, धोबी आ गया था, वैसे भी आज इधर-उधर की बातें लिख कर वह पेज भर रही थी, सही
मायनों में जिसे आत्मशोध कहते हैं या आत्मज्ञान उसके करीब जाने का प्रयास नहीं था.
आज ध्यान में अपेक्षाकृत सफलता मिली. मन को जब चाहे तब संयमित कर पाने की विद्या
कुछ-कुछ सध रही है. पर कल दोपहर को उसे नैनी पर क्रोध करना पड़ा, क्या वह असंयम
नहीं था, शायद नहीं, क्योंकि वह सोच-समझ कर उठाया गया कदम था. क्या इसका अर्थ यह
नहीं कि यदि कोई गलत कार्य करे और उसे उचित ठहरने के लिए तर्क का सहारा ले तो
कार्य सही हो जाता है. उसे तो लगता है क्रोध एक प्रभाव में आकर किया जाता है
सम्मोहन की अवस्था में और वह मन का ही एक रूप है.
आज सुबह नन्हे को उठाने
में काफी मशक्कत करनी पड़ी, उसकी एक आँख तो चिपकी होने के कारण खुल ही नहीं रही थी.
आज न तो जागरण पर ही ध्यान टिका पायी और न ही बाद में ध्यान के लिए बैठी. मीटिंग के
लिए फोन करते-करते ही सारी सुबह निकल गयी. दोपहर पढ़ने-पढ़ाने में, शाम भ्रमण व
बागवानी में. कल रात सैलाब में शिवानी को इतना बेबस देखा की उसके दुःख में शामिल
हो गयी.
जून के आने में अभी काफी
वक्त है और उसका सुबह का काम लगभग समाप्त हो गया है. जागरण में आज दादा का संदेश
सुना- what is
silence is turning to God बाहर का शोर यदि न भी हो तो हमारे भीतर जो आवाजों का
शोर है उसे खत्म करके ही सच्चा मौन पाया जा सकता है. There are voices of
desires, of anger, of so many feelings, so many useless thoughts then one can
not turn to God even for a single minute. ईश्वर को पाना इतना कठिन
क्यों है ? दूरदर्शन पर ‘मजहब नहीं सिखाता’ में हिन्दू-मुस्लिम एकता पर एक भाव
प्रवण दृश्य देखा, बच्चों का जन्मदिन मनाने जो नाराज मुसलमान पड़ोसी हिन्दू के घर
नहीं आते वे रात को उसकी चीख सुनकर आ जाते हैं. जब तक लोगों में एक-दूसरे के मजहब
के प्रति नफरत है तब तक लोग मजहब का असली रूप पहचान ही नहीं सकते. दादा कहते हैं, Make a relationship with
God ! पर यह उसके लिए पहले कभी सम्भव था जब वह बरबस यह वाक्य बोला करती थी, God is with her always
because he is her friend. लेकिन अब इतनी निकटता अनुभव नहीं कर पाती, भावना पर
बुद्धि हावी हो जाती है और कभी-कभी लगता है कि ईश्वर की आवश्यकता ही नहीं है. पर
वह जानती है, किसी भी विपत्ति के आने पर उतनी ही श्रद्धा से फिर उसे पुकारेगी.
ईश्वर उसका मददगार है क्योंकि उसमें यह चाह है.
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