Friday, September 27, 2013

कश्मीरी शालें


कल सुबह एक छोटा सा झूठ बेवजह ही बोल दिया, चाहे कितना ही निर्दोष क्यों न हो, झूठ तो झूठ ही है. आत्मा पर एक दाग लगा ही जाता है. जाने कितने दाग लग चुके हैं चादर पर. दास कबीरा ने जतन से ओढ़ी थी चदरिया, पर उसने तो हर दिन उसे मैला ही किया है और साफ करने की आदत भी भूलती जा रही है. कल एक पुस्तक लायी है लेकिन पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ..... मन का बैर तो ढाई आखर पढ़ने से ही मिलेगा न, और वे ढाई आखर भी कभी धुंधला जाते हैं. आज नन्हे को असेम्बली में एक कहानी पढ़नी है और उम्मीद है कि वह अपनी स्पष्ट आवाज में पढ़ पायेगा. इस समय सुबह के दस बजे हैं, काम लगभग हो गया है, पर मन है कि टिक ही नहीं रहा है, इतनी सी देर में सिन्धवा जाकर ब्रज, सुमन, शिव और रुकमणी से भी मिल आया है.

आज भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी का जन्मदिन है, सुबह के समाचारों में इसका जिक्र होना चाहिए था. नन्हे को आज फिर असेम्बली में समाचार बोलने हैं स्कूल में. कल उसकी कहानी ठीक रही. सभी ने उसकी तारीफ़ की, उसे पुरस्कार भी मिल सकता है . बच्चों के भोलेपन पर रश्क आता है, उनकी निर्दोष बातें बड़ों के दुराव-छिपाव के आगे कितनी बड़ी लगती हैं. नन्हा अपनी कई बातों से कई बार कितना कुछ सिखा जाता है. आज नूना को हिंदी कक्षा में जाना है वापसी में प्रदर्शनी देखते हुए आएगी, कश्मीरी सामानों की प्रदर्शनी आई है. आजकल फोन से सबसे बात हो जाती है, उसके पत्र लिखने कम हो गये हैं. कल वह नई परिचिता आई थी, उसकी बातों से लगा कि वह अपने पति से पूरी तरह जुड़ नहीं पा रही है. वह अपना व्यक्तित्व बनाये रखना चाहती है, एक अलग पहचान, सिर्फ किसी की पत्नी बन कर जीना उसे मंजूर नहीं. पर सही मायनों में एक होने के लिए दोनों को अपना-अपना अहम् छोडकर एक-दूसरे के सुख-दुःख को स्वयं महसूस करना होगा.

दोपहर का वक्त है, दूर से एक पक्षी की आवाज निस्तब्धता को भंग कर रही है, अभी-अभी वह पिता की फरमाइश पर शाम के नाश्ते के लिए कस्टर्ड बनाकर आई है. जून दफ्तर से आते समय लाये थे, माँ-बाप जब वृद्ध हो जाते हैं तो बच्चे उनका बच्चों की तरह ख्याल रखते हैं. सही कहा है कवि ने child is the father of man. वे दोनों(माँ-पिता) सो रहे हैं, बस तीन दिन और रह गये  हैं उनके प्रवास के. वह पिता के लिए एक टोपी बना रही है. आज माली ने डायन्थस व फ्लौक्स के पौधे लगा दिए.



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