Sunday, April 22, 2012

गणित की परीक्षा


एक दिन और बीत गया. जून को पत्र उसने दोपहर को ही लिख दिया था, जानती थी रात को सोने के लिये जाते-जाते काफ़ी देर हो जायेगी. जनवरी होने के बावजूद ठंड ज्यादा नहीं है, धूप इतनी तेज होती है कि हवा का कोई असर ही नहीं होता. वह आज भी दूध लेने गयी थी. लौटी तो पिताजी भी काम से आ चुके थे कुछ देर बैठकर बहुत अच्छी-अच्छी बातें बताते रहे, वह तो आजकल कुछ विशेष लिखती-पढ़ती नहीं है, कभी कभी अस्वस्थ भी महसूस करती है, पाचन क्रिया ठीक नहीं है. कभी बेचैनी भी लगती है. पता नही कैसा हो गया है उसका मन इन दिनों. सिवाय एक के उसे किसी की सुध नहीं आती. वही रहता है हर पल उसके मन में. कितने स्नेह से देखभाल करता था उसकी. सुबह देर से उठी. स्वप्न देख रही थी कि गणित की परीक्षा में शून्य मिला है, नींद से जगाने के लिये ही तो आते हैं ऐसे स्वप्न, और जागकर कितनी राहत मिलती है.
  

No comments:

Post a Comment