आज वह बाजार गयी थी, घर के लिये कुछ सामान खरीदा,
मेहमानों के कमरे के लिए एक चादर, कुशन कवर के लिये कपड़ा और जून के लिये भी.
पिताजी अभी तक आये नहीं हैं, वे मुरादाबाद गए थे, शायद रात तक आ जायें. सुबह से ही
बादल छाये हैं, कभी कभी बरस भी जाते हैं, उनकी रिमझिम आवाज कानों को भली लगती है. ठंड
से बचने के लिये वह दिन भर स्कार्फ, शाल, स्वेटर में लिपटी रही, बिजली भी चली गयी
थी. काफ़ी देर नदारद रही, वह सोने चली गयी, कुछ लिखने का विशेष मन भी नहीं होता क्योंकि
उसे लगता है कई जो भी लिखेगी उदासी की झलक उसमें आ ही जायेगी. भुलाये रखना चाहती
है वह कि जून उससे दूर है. वह भी चाहता है कि जल्द से जल्द वह वहाँ आ जाये.
उसने आकाश की ओर नजर डाली बादल छंट
गए थे और तारे नजर आ रहे थे, आज भी दोपहर बाद से वर्षा हो रही थी. पर ये तारे खबर
दे रहे हैं कि कल धूप निकलेगी. ऐसे ही एक दिन वह पुनः अपने घर में होगी, यह घर भी
उसका है पर न जाने क्या बदल गया है एक वर्ष में कि उसे अपना नया घर ही याद आता है.
कल वह सहारनपुर गयी थी बचपन की कई
यादें ताजा हो गयीं. दादा दादी के साथ जब वे उस घर में रहा करते थे, जहाँ उसने
प्राइमरी की शिक्षा भी पायी और कॉलेज की शिक्षा भी. चाची मिलीं और छोटी चचेरी बहन
भी. गुलाबी रंग का एक सलवार सूट उपहार में मिला, बड़ी बहन ने भी एक सुंदर साड़ी उसे
वहाँ जाने पर दी थी.
shuru me to samajh nahi payi ki is chhoti si rachna se aap kya kahna chah rahi hain,ye kahani hai?kissagoyi hai?ya fir sirf ek udveg ko pour out kiya ja rahra hai...? magar jab pichhli posts padhi to laga ki ek jeevan ki kahani ko, usme chhoti-chhoti ghatit ghatnaon ko anshon ke roop me prastut kiya ja raha hai....ek badi si kahani jaise hisson me padhi jaa rahi hai...!rochak hai.
ReplyDeletebadhai.
सुनीता जी,आप शुरू से पढ़ेंगी तो ज्यादा अच्छा लगेगा ..आभार!
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