Tuesday, April 24, 2012

गन्ने के खेत



आज उसका पत्र आया रजिस्टर्ड पत्र था, उसमें कुछ पैसे भी थे. नूना ने सोचा कि वह उसका इतना ध्यान रखता है कि अपने लिये कम खर्च करके उसके लिये उपहार देना चाहता है. वह मोरान में है सो उसे खत भी देर से मिल पाएंगे. सुबह वह अपने पूर्व समय पर उठी, कोई स्वप्न देख रही थी. शाम को शर्मा आंटी के साथ दूध लेने गयी, उसके आगे भी निकल गए वे लोग, रजवाहे तक, वहाँ से गन्ने के खेत भी नजर आते हैं, अच्छा लगा पर माँ के साथ शाम को टहलना और भी भाता है.
सुबह धूप में बैठकर वह ईख की शहद सी मीठी गनेरियां खा रही थी कि शर्मा आंटी के साथ मिलेट्री कैंटीन जाने के लिये माँ ने कहा और उसने वहाँ से जून के लिये मोज़े खरीदे. दोपहर बाद उसके स्वेटर के बटन लेने गयी, स्वेटर बन गया है, पार्सल भी सिल दिया है, कल भेज देगी.

आज कितना इंतजार किया उसने डाकिये का पर...कल आयेगा यह सोचकर मन को मना लिया. ठंड बढ़ गयी है सुबह सवा छह बजे भी बहुत अँधेरा था और हवा काटती हुई सी चुभ रही थी. कोई श्रीमती गुप्ता आयीं थीं, अपनी दक्षिण भारत की यात्रा के संस्मरण बहुत चटखारे ले लेकर सुना रही थीं.

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