Showing posts with label जोधपुर. Show all posts
Showing posts with label जोधपुर. Show all posts

Monday, December 9, 2013

जैसलमेर का किला


जैसलमेर, सरोज पैलेस – कल सुबह दस बजे वे दर्शनीय स्थान देखने निकले थे. सर्वप्रथम जोधपुर का किला देखने गये, जो लगभग ५०० वर्ष पुराना है, शानदार किले की दीवारों, छतों और बड़े-बड़े दालानों में सुंदर काम किया गया है. तोपें, गुम्बद और छतरियां दर्शनीय हैं, किले की विशालता का अनुमान उसका पूरे शहर से दिखाई दे सकने से लगाया जा सकता है. किले की छत से पुराना जोधपुर शहर नीले सफेद मकानों से बहुत सुंदर लग रहा था. संग्रहालय में घोड़े, पालकियां और हथियार थे, पगड़ियाँ, संगीत यंत्र, अनूठी पेंटिग्स, और पुराने ताले सभी कुछ देखने योग्य था. बाद में वे जसवंत तड़ा देखने गये जो सफेद संगमरमर का बना है, उमेद पैलस में १९४३ में बना संग्रहालय है, जिसमें घड़ियों व तस्वीरों का विशाल संग्रह है. आधे हिस्से को पांच सितारा होटल में बदल दिया गया है. जोधपुर के राजा की ३८वीं पीढ़ी अब भी वहाँ रहती है. शाम को वे नेहरु उद्यान देखने गये और रात ११ बजे की ट्रेन से चलकर वे सुबह सवा छह बजे जैसलमर  पहुंच गये, कल जोधपुर में गर्मी बहुत थी. आज यहाँ मौसम अच्छा है, बदली बनी हुई है, सो गर्मी कम है. आज वे रेतीले मैदान देखने जायेंगे.

आज दिन भर मौसम मेहरबान रहा, सो वे राजस्थान की उस गर्मी से बच गये जिसका जिक्र कई बार सुना था. होटल हवादार है और स्वच्छ भी. शाम चार बजे वे सैम सैंड ड्युन्स देखने जीप में रवाना हुए. रास्ते में लौद्रवा मन्दिर देखा जो एक हजार साल पुराने मन्दिर का जीर्णोद्धार करके बनाया गया है. रानी मूमल की कथा यहाँ से जुडी है. उससे पहले अमर सागर में एक जैन मन्दिर देखा जिसका जाली का काम अनोखा है. आज भी हमारे देश में ऐसे अद्भुत कारीगर हैं जो पत्थर में जान डाल सकते हैं. आगे जाकर एक उजड़ा हुआ गाँव मिला जहाँ के निवासी पालीवाल राजा के डर से सदियों पूर्व रातों-रात गाँव छोड़कर पलायन कर गये थे. यहाँ से ४५ किमी दूर रेतीले मैदान शुरू हो गये, जहाँ उन्होंने ऊंट की सवारी भी की. रेत के सुंदर ऊँचे-नीचे पहाड़ों पर जो हवा से बनते बिगड़ते थे ऊंट पर सवार होकर जाना एक अनोखा अनुभव था. हवा से रेत पर लहरें पैदा हो रही थीं, और नदियों के किनारे देखी चांदी सी रेत के बजाय यहाँ सुनहरी रेत थी. तभी इस स्थान को ( पूरे जैसलमेर में पीले पत्थर के मकान बने हैं ) गोल्डेन लैंड कहते हैं. रास्ते में विदेशी यात्री भी दिखे जो ऊंट पर सवारी करते हैं और तम्बुओं में रहते हैं.


जैसलमेर में आज उनकी दूसरी शाम है. कुछ देर पूर्व ही वे sunset point से आये हैं. बादलों के कारण सूर्यास्त तो नहीं देख सके पर उस जगह से किले का दृश्य बहुत भव्य प्रतीत हो रहा था. वे गजरूप सागर नामक एक स्थान देखने गये जहाँ देवी का एक मन्दिर है. बड़ा बाग़ में कई छतरियां देखीं जो अब टूटने के कगार पर हैं. सुबह किला देखने गये थे, जो यहाँ से निकट ही है. किले के प्रथम द्वार पर एक गाइड मिल गया जिसने १२वीं शताब्दी में बने राजा जैसल के, भारत के दूसरे सबसे बड़े किले के बारे में कई जानकारियां दीं. मन्दिर में बने सात जैन मन्दिरों में पत्थर पर बनी मूर्तियाँ तथा अन्य कलाकृतियाँ दर्शनीय हैं. किले में लगभग ४००० हजार लोग रहते हैं. काफी बड़ा भाग टूट गया है किन्तु जो भी शेष है, भव्य है. वहाँ से निकल कर वे गदीसर झील देखने गये, जहाँ एक कृत्रिम झील में राजा के निवास के लिए एक छोटा सा कमरा है. आस-पास कई बुर्ज हैं और द्वार पर सत्य नारायण का एक मन्दिर है, एक संग्रहालय भी था पर वे बहुत थक गये थे सो नहीं देखा. आटोरिक्शा करके पटवां हवेली गये जो एक सेठ ने अपने पांच बेटों के लिए बनवाई थी. हवेली के बाहर एक साढ़े चार फीट लम्बी मूंछ वाले आदमी के साथ बच्चों ने तस्वीर खिंचवायीं. नथमल हवेली बाहर से देखी और बाजार होते हुए वापस आ गये. कुछ और खरीदारी भी की. उसने नीले हरे रंग का एक गाउन खरीदा और बड़ी बहन के लिए एक वाल हैंगिंग . सामान बढ़ता ही जा रहा है और जून की झुंझलाहट भी. अभी उन्हें दो हफ्ते और सफर में रहना है. 

Sunday, December 8, 2013

उमेद पैलेस - जोधपुर की शान


आज होली है और उनकी यात्रा में आराम का दिन, कल सुबह नौ बजे वे होटल से निकले, आटो ड्राइवर एक खुशदिल आदमी था, वह समय पर दर्शनीय स्थलों पर जाने के लिए आ गया. सबसे पहले एक कैफे में ले गया, कॉफी के एक बढ़िया कप के बाद तन व मन दोनों  यात्रा के लिए तैयार थे. फिर वे ‘राज मन्दिर’ पिक्चर हॉल गये जो एशिया का दूसरा सबसे अच्छा हॉल है जहाँ वे एक फिल्म भी देखने वाले हैं. इसके बाद पिंक सिटी में प्रवेश किया और सर्वप्रथम ‘हवा महल’ की अद्भुत वास्तुकला का अनुभव लिया. वहाँ दुनिया की विशालतम धूप घड़ी भी देखी. अगला पड़ाव था, सिटी पैलेस जहाँ वस्त्रालय, शस्त्रालय तथा कला दीर्घा दखने योग्य हैं. हाथी द्वार तथा मयूर द्वार बेहद आकर्षक हैं. भोजन के लिए ड्राइवर उन्हें खंडेलवाल होटल ले गया, स्वादिष्ट भोजन मिला वह भी बिना मिर्च का.

आम्बेर महल के रास्ते में जल महल देखा जो चारों ओर से पहाड़ों से घिरी झील में स्थित है., अब वहाँ जाना मना है. यह महल जमीन से ५०० फीट की ऊँचाई पर एक पहाड़ पर स्थित है, वहाँ शीशमहल देखा जहाँ दिन में भी तारे दिखाई दिए. महल कला का अनूठा नमूना है, छतों पर सुंदर नक्काशी की गयी है. राजस्थान पर्यटक विभाग के हस्त कला केंद्र में ब्लॉक प्रिंटिंग देखी. वापसी में राजस्थान कॉटेज उद्योग भी गये जहाँ से कानों के बुँदे तथा दो ऊंट लिए जो पंच धातु के बने हुए हैं. वहाँ जाने से पूर्व गोविन्द मन्दिर तथा नटवर मन्दिर देखने गये जहाँ एक सुंदर कनक उद्यान देखा, कनक उद्यान में अनेकों फौवारे तथा छतरियां थीं, वहाँ कई फिल्मों की शूटिंग हुई है. किसी ने कहा, जूही चावला और आमिर खान का गीत घूँघट की ओट से.... वहीं फिल्माया गया था. जयपुर चिड़ियाघर तथा केन्द्रीय अजायबघर भी देखा. चिड़ियाघर में घुसते ही बाघ दिखा, तथा अनेकों मगरमच्छ एक साथ देखे. जयपुर एक साफ-सुथरी अच्छी जगह है. यहाँ के लोग भी काफी अच्छे हैं, शांत व सहयोग करने वाले, उन्हें वहाँ घूमते समय कोई परेशानी नहीं हुई. कल सुबह उन्हें जोधपुर के लिए निकलना है.  

जोधपुर गेस्ट हाउस - कल सुबह वे जयपुर से साढ़े सात बजे की डीलक्स बस से रवाना हुए और यहाँ दोपहर सवा तीन बजे पहुंच गये. रास्ते में कैक्टस के बड़े-बड़े वृक्षों पर लाल रंग के फूल खिले थे, चारों ओर थी धूल और सूखे पहाड़ व चट्टानें, जोधपुर शहर किन्तु स्वच्छ, आकर्षक और हरा-भरा भी है. यात्रा आरामदेह थी पर Midway का भोजन उतना अच्छा नहीं था. मार्ग में एक वैन-ट्रक दुर्घटना देखी, गाड़ी की हालत बहुत बुरी थी पर वह गैराज में जाकर ठीक कराई जा सकती है पर दुनिया में कोई ऐसा गैराज नहीं जो उस व्यक्ति को ठीक कर सके जो सड़क किनारे अपनों से दूर धूल में लिटाया हुआ था.

यहाँ इस गेस्ट हाउस में जो लोग इन कमरों में रह रहे थे वे बाहर गये हैं सो एक रात्रि  के लिए उन्हें यहाँ स्थान मिल गया है. शाम को वे बाजार भी गये, जहाँ से राजस्थानी चादरें, रजाई व एक सूती साड़ी भी ली, जिन पर अनेक रंगों से कलात्मक चित्र बने हुए हैं. वापस आकर वे टीवी पर ‘सैलाब’ देख रहे थे कि एक पुराने परिचित मिलने आ गये, बातचीत से जाहिर हुआ, उनकी शिकायतें करने की आदत अभी तक वैसी ही है. दुनिया जहाँ से उनको शिकायते हैं, मगर बहुत अनुग्रह से उन्होंने अपने घर बुलाया है, आज वे जायेंगे. आज दस बजे उन्हें भ्रमण के लिए निकलना है, उमेद पैलेस, मन्दौर गार्डन और जोधपुर किला आदि देखने हैं. आज ही रात्रि ग्यारह बजे की ट्रेन से वे जैसलमेर जा रहे हैं, जब तक वे वहाँ पहुंचेगे प्रातः की लालिमा आकाश में बिखर चुकी होगी.