नूना का जन्मदिन था, सबसे पहले पापाजी का फ़ोन आया। वे लोग तैयार होकर प्रातः भ्रमण के लिए निकले ही थे कि बच्चे आ गये।सोनू ब्लूबेरी केक बनाकर लायी थी। नन्हे ने उसे एप्पल का डेस्क टॉप दिया, जिसका कीबोर्ड बहुत स्लीक है और स्क्रीन साढ़े तेइस इंच है।जून ने मैंगो शेक बनाया, ब्रोकोली राइस और बूँदी का रायता। दस बजे वे लोग चले गये। दोपहर व शाम को भी सभी भाई-बहनों व सखियों के फ़ोन आते रहे। फ़ेसबुक पर भी सौ से अधिक लोगों ने शुभकामना दी। नूना के प्रकृति प्रेम और साहित्य से लगाव का ही यह परिणाम है। इन लोगों में से कितनों से तो वह मिली भी नहीं, अधिकतर असम के हैं। आज सुबह आकाश पर नारंगी रंग के बादल थे, छत पर सूर्य नमस्कार करते हुए बाल सूर्य की किरणों को अंतर में भरना कितना सुखद है। टहलने जाने से पूर्व वह कुछ न कुछ लिखती है, बाद में वैसा एकांत नहीं मिलता न बाहरी न आंतरिक। भोर का समय जब पिछले दिन के सब उहापोह साफ़ हो चुके होते हैं, मन बिलकुल ख़ाली होता है, तब ही कुछ नया कहा जा सकता है, सोचा जा सकता है। जून आजकल अपने मोबाइल में ज़्यादा व्यस्त रहते हैं, उन्हें नये-नये व्यंजन बनाने का भी शौक़ है, आज ज्वार के आटे में सहजन के पत्ते डालकर रखे हैं। छोटी बहन का फ़ोन आया, उसकी छोटी बिटिया पालतू पूसी के जाने का दुख भुला नहीं पायी है, वह घर में अकेले नहीं रह पाती, किसी मॉल या रेस्तराँ में जाकर काम करती है या पढ़ती है। पापा जी ने व्हाट्सएप पर पढ़कर घर, मकान, होम, बंगला, हवेली, फ्लैट आदि की परिभाषाएँ बतायीं, सभी अच्छी थीं। घर या होम जहाँ हवन होता है, मकान में दीवारों के कान होते हैं, बंगला यानी पड़ोसी से दूरी, हवेली यानी हवादार, फ्लैट जो लोन लेकर ख़रीदा गया हो।
आज नूना ने अपनी लिखी एक पुरानी कविता पढ़ी तो लगा उसकी काव्य क्षमता पहले से कम हो गई है।आज दीदी का जन्मदिन है, उन्हें कविता भेजी। नये कंप्यूटर पर लिखना आरंभ किया। छोटा भाई हफ़्तों हैदराबाद के एक होटल में रहकर आज घर पहुँच गया।सुबह टहलने गये तो रास्ते में रेत दिखी थी, गुलदाउदी की पौध लगाने के लिए अच्छी है, जब नूना ने जून से कहा तो वह कार ले आये। रेत लेने के बाद उन्होंने कहा, कुछ दूर तक होकर आते हैं। वैक्सीन की दूसरी डोज़ लगाने के बाद से नूना कहीं भी नहीं गई थी।सोसाइटी के मुख्य द्वार से थोड़ा ही आगे गये होगें तो सूर्योदय के दर्शन हुए, उसके साथ ही लाल फूलों से लदे हुए गुलमोहर के पेड़ आकर्षित कर रहे थे।नाइस रोड तक जाकर वे वापस लौट आये।
अभी कुछ देर पहले वे रात्रि भ्रमण से लौट कर आये हैं। आजकल सबसे पहले देखना होता है, कौन सी सड़क ख़ाली है, दायें, बायें या सामने वाली, कोरोना काल में लोगों से बचकर निकलना ही ठीक है। मास्क पहनने के बावजूद भी दूर से कोई दिख जाये तो सड़क बदल लेते हैं, ऐसा कई लोगों को करते भी देखा है। यह कैसा वक्त आया है कि आदमी, आदमी से डरने लगा है। आज अख़बार में एक चित्र देखा जिसमें सामूहिक अस्थि विसर्जन किया जा रहा है। लोग अपने मृत रिश्तेदारों की अस्थियाँ लेने आये ही नहीं तो सरकार को यह करना ही पड़ा। मन्त्रोच्चरण के साथ फूलों से उन्हे सजाकर यह रस्म की गई।
नन्हे से बात हुई, इस बार वे लोग शनिवार को आयेंगे। सोनू ने बताया, उसे अपनी कंपनी में अब से ग्लोबल टीम में काम करना होगा।आज दोपहर तीन बजे से वर्षा शुरू हुई तो लगातार तीन घंटे होती रही। छह बजे वे टहलने गये, एक घर के सामने एंबुलेंस खड़ी देखी, शायद कोई मरीज़ घर लौटा हो या जाने वाला हो इलाज के लिए, उन्होंने रास्ता बदल लिया और कुछ पता नहीं किया। यदि सामान्य समय होता तो अवश्य ही वहाँ जाकर पूछ लेते। कर्नाटक में लॉक डाउन की अवधि और बढ़ा दी गई है। नन्हे ने लिखा, उसने सरेंडर का अभ्यास शुरू कर दिया है, ईश्वर उसे इस मार्ग पर आगे बढ़ने का साहस दे। नूना ने आज योग वशिष्ठ का कुछ अंश पढ़ा, उसमें चेतना का अद्भुत वर्णन है, पढ़ते-पढ़ते ही जैसे ध्यान लगने लगता है।
विश्व पर्यावरण दिवस पर बच्चे आज गुड़हल के दो पौधे लाये, एक नारंगी व दूसरा गुलाबी रंग के फूलों का है। आज ही लॉन लगाने के लिए घास भी आ गई है। आज पड़ोसन ने निकट ही बनी एक नयी सोसाइटी बोटेनिका के बारे में बताया। वे देखने गये, हरियाली का एक सागर हो जैसे, साफ़-सुथरी सड़कें और फूलों के वृक्षों से सजी थी। उसी में से होकर एक सड़क निकट के एक गाँव में जाती है। वे दूर तक चलते गये, पहले कच्ची सड़क थी, फिर पक्की सड़क आ गई। शाम को पापा जी से बात हुई, उन्हें वृद्धावस्था में होने वाली परेशानियाँ हो रही हैं। वे बहुत नियम से रहते हैं पर तन-मन पर किसी का वश तो नहीं है।
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