Friday, July 11, 2025

चीटियों की क़तार




आज संस्कार पर गुरु माँ को सुना,  कह रही थीं, मानव शरीर में अरबों कोशिकाएँ और जीवाणु रहते हैं। उन्हें कुल मिलाकर एक ‘मैं’ का निर्माण होता है, इसी प्रकार अरबों जीवों को मिलकर ईश्वर का। जैसे ‘मैं’ उन जीवाणुओं के जोड़ से कहीं अधिक है, ईश्वर भी सब जीवों के जोड़ से अधिक है। आज जून की, छोटी बहन से बात हुई, भांजे ने इन्फ़ोसिस का जॉब छोड़ दिया है और डेलॉयट में काम कर रहा है। उसे आश्चर्य होता है, आजकल बच्चे हर दो साल के बाद कंपनी बदल लेते हैं, उनमें कंपनी के प्रति अपनेपन का भाव पैदा भी नहीं होता होगा। शायद वे मोह-माया से ऊपर उठ चुके हैं अथवा तो अधिक माया का मोह उन्हें ऐसा करने पर विवश करता है। इस दुनिया में चमत्कार भी होते हैं। यदि इस शब्द का अस्तित्त्व है तो इसको अर्थवान भी होना होगा। कितने ही संत, महात्मा व अवतारी पुरुष चमत्कार करते हैं।आज एक स्वामी जी के मुख से सुना, एक महिला और उनकी पुत्री ने उन्हें आकर धन्यवाद दिया, यह कहकर कि उन्होंने पुत्री के एक असाध्य रोग का इलाज बताया था। स्वामी जी ने कहा, मैंने उन दोनों को पहली बार देखा था, पर उनकी श्रद्धा और विनम्रता देखकर उनपर अविश्वास नहीं कर सका, शायद परमात्मा ने ही कोई लीला रची होगी। शाम को पापा जी से बात हुई, वह आजकल ओशो का शांडिल्य सूत्र पढ़ रहे हैं।जून ने उनके लिए ग्रीन टी और बिस्किट भेजे हैं।नूना ने उनके लिए लिखी सारी कविताओं का एक संकलन बनाया है, ‘पितृ दिवस’ पर उन्हें भेजने का विचार है।  


शाम को भोजन के बाद नूना किचन में गई तो नन्हे का ध्यान आया, तभी फ़ोन की घंटी बजी।उसे पंद्रह मिनट का समय मिला था, सो फ़ोन कर लिया।काफ़ी व्यस्त चल रहा है, दिन भर कॉल्स चलती हैं। कह रहा था, सोनू और वह दोनों लंच पर मिलते हैं फिर सीधा रात्रि भोजन पर। घर से काम करने पर व्यस्तता अधिक बढ़ गई है। इतवार की सुबह छह बजे आयेंगे, नौ बजे वापिस चले जाएँगे, क्योंकि दस बजे के बाद बाहर नहीं रह सकते।


कर्नाटक में एक दिन में तीस से पैंतीस हज़ार कोरोना के केस मिल रहे हैं आजकल। कोरोना के साथ ब्लैक फ़ंगस का प्रकोप भी बढ़ रहा है। ताउते के साथ याम तूफ़ान भी आने वाला है। प्राकृतिक आपदाएँ अब जल्दी-जल्दी आने लगी हैं। इज़राइल और फ़िलस्तीन में युद्ध जारी है, शायद इस बार निर्णायक हो, पर यह भी एक कल्पना ही है।कोई भी युद्ध निर्णायक नहीं होता, भविष्य में इसके सुलगने के आसार बने ही रहते हैं। आज एक पोस्ट प्रकाशित की, एक कविता, जो दोपहर को घट रही अनुभूति के दौरान लिखी थी।ऐसा आजतक चार-पाँच बार हो चुका है या आठ-दस बार, इससे अधिक नहीं। कोई घेरे रहता है और भीतर कुछ महसूस होता है, जिसे शब्दों में ढालकर भी नहीं ढाला जा सकता। दीदी आजकल  स्पोकन अंग्रेज़ी का अभ्यास सीख रही हैं।आजकल हैरी पॉटर पढ़ रही हैं।पापा जी से आज अध्यात्म चर्चा हुई। उनकी बातचीत का कुछ अंश रिकॉर्ड भी किया।अहंकार का परित्याग करके ही मानव आत्मा का अनुभव कर सकता है, जो यह सुख पा लेता है उसे अहंकार सताये ऐसा होना संभव नहीं है। 


जून से एक ऑन लाइन कोर्स करने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया, जीवन की धारा जिस गति में चल रही है, वह उसी में संतुष्ट हैं। वे सभी अपने अपने कम्फ़र्ट जोन में सुरक्षित रहते हैं और सोचते हैं, यही जीवन है। नूना को जीवन से कोई शिकायत नहीं है, जो जैसा है, वैसा ही स्वीकार्य है। नन्हे और सोनू ने अगले महीने आने वाले उसके जन्मदिन के लिए एक सुंदर उपहार भेजा है, अल्मूनियम की एक केतली, जिसे रंगों से सजाना है, नूना ने सोचा, कल से ही रंगना आरंभ करेगी। छोटी बहन का फ़ोन आया, उसे आजकल कभी अठारह घंटे, कभी चौबीस घंटे ड्यूटी करनी पड़ती है। कोरोना के कारण मरीज़ अधिक हैं। तीन वर्ष पूरा होने के बाद प्रैक्टिस जारी रखने के लिए एक परीक्षा भी देनी है। उनकी पालतू बिल्ली भी बीमार हो गई है।उसके बचने के आसार नज़र नहीं आते।  


आज सुबह टहलते समय सड़क पर चीटियों की बहुत लंबी क़तार देखी, वीडियो बनाया, अनोखा दृश्य था। एक टिटहरी दीवार पर बैठकर अपना गीत गा रही थी। पेड़ों पर आम भी अब काफ़ी बड़े हो गये हैं, पकने को तैयार। 


आज का दिन भी पूर्णता को प्राप्त होने को है। सुबह सुहानी थी, वॉकिंग मैडिटेशन किया फिर छत पर साधना। जून आजकल गर्मी व मच्छर के डर से नीचे कमरे में योगासन करते हैं, पर वहाँ हवा भी चलती है और मच्छर भी नहीं होते, ख़ैर, पसंद अपनी अपनी ! जीवन के इतने वर्ष बीत जाने पर नूना को यह समझ में आया है कि हरेक आत्मा को अपनी तरह से जीने की स्वतंत्रता है और कोई किसी को बदलने का प्रयास न करे, क्योंकि संस्कारों का परिवर्तन अपने ही हाथों में होता है, किसी और के प्रभाव में आकर किया परिवर्तन स्थायी नहीं होता। 


बाहर किसी ने आग जलायी, धुआँ ही धुआँ हो गया है, एसी के द्वारा कमरे तक उसकी गंध आ गई है।देवों के देव में पार्वती के मन की अस्थिरता को दिखाया गया। प्रकृति में विक्षोभ होना स्वाभाविक है, सत, रज और तम से बनी है। यास तूफ़ान से कई राज्यों में नुक़सान हुआ है। 


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