आज उनके घर के पीछे वाली ज़मीन की छोटी सी पट्टी पर और दायें-बायें दोनों तरफ़ के लॉन में कार्पेट घास लग गई है।पड़ोसियों के यहाँ भी घास लग गई है, अब हरियाली बढ़ गई है दोनों ओर।माली ने गुड़हल के पौधे भी लगा दिये हैं। जून नर्सरी से क्रोटन के भी चार पौधे लाए हैं।शाम को वे पुन: बोटेनिका गये। भविष्य में यह बहुत सुंदर सोसाइटी बनेगी, अभी तो मात्र सड़कें बनीं हैं और दोनों तरफ़ फूलों की क्यारियाँ और वृक्ष लगे हैं। सूर्यास्त का सुंदर दृश्य भी दिखाई दे रहा था। दाहिनी तरफ़ की सड़क एक गाँव की तरफ़ जाती है। शाम को नन्हे ने फ़ोन किया, इतवार को वे लोग अपने एक मित्र परिवार से मिलने गये थे। श्रीमती जी का जन्मदिन था, उन्होंने फल खिलाए, बाद में चाय व टोस्ट। उसके दाँत में दर्द था, गाल फूला हुआ था, पर वह अपने पैतृक शहर में जाकर ही इलाज करवायेंगी, ऐसा तय किया था। सोनू ने उसे अपने डेंटिस्ट का नंबर दिया।पापाजी ने बताया, उन्होंने मोबाइल पर हिन्दी में टाइप करना सीख लिया है। आज अंततः दीदी-जीजाजी ने भी कोरोना का टीका लगवा लिया। अभी-अभी भांजी को उसकी बिटिया के लिए लिखी कविता भेजी, उसे अवश्य पसंद आएगी। सुबह वे टहलने गये तो हवा में ठंडक थी। मानसून का असर होने लगा है हवाओं में।
एक और दिन काल के गर्त में समा गया।पूरा दिन कुछ न कुछ व्यस्तता बनी रही।नन्हा व सोनू सुबह-सुबह आ गये थे। कल उन्हें भी वैक्सीन लगनी है। नन्हे ने एक नया गेम भेजा था, उसे खोलकर सीखने का प्रयास किया, नया मॉडेम भी लगाना था।नाश्ते में जून ने दोसे के साथ केसरिया खीर भी बनायी थी।सवा नौ बजे वे चले गये, कोरोना की वजह से जीवन कितने बंधनों में बंध गया है।नूना ने लेखन कार्य आगे बढ़ाया। दोपहर को गुरुजी का गाइडेड ध्यान किया। शाम को अख़बार की पहेलियाँ हल कीं।पापा जी से रोज़ की बातचीत हुई। सांध्य भ्रमण, ध्यान, रात्रि भोजन और रात्रि भ्रमण। इस समय वह दिन का अंतिम कार्य कर रही है, डायरी लेखन। जीवन कितना सहज हो गया है, न ऊधो का लेना ना माधव का देना ! न टीवी पर समाचार सुने न ही अख़बार में हेडलाइन्स के अलावा कुछ ज़्यादा पढ़ा। कुछ किताबें मंदिर में रखी हैं, उनमें से एक-एक पन्ना सुबह-शाम पढ़ने के अलावा और कोई किताब भी नहीं पढ़ी।सेवा के नाम पर अनुवाद कार्य चल रहा है और ब्लॉग के माध्यम से थोड़ी बहुत साहित्य सेवा ! योग वसिष्ठ पढ़ते समय कैसी मस्ती का अनुभव होता है, गुरुजी के साथ ध्यान करते समय भी। वह कितना काम कर रहे हैं। उनकी पुस्तक पढ़ना भी एक सुखद अनुभव है।
आज सुबह वे टहलकर आये तो जून ने कहा, ड्राइव पर चलते हैं। बादलों के कारण सूर्योदय के दर्शन नहीं हुए। ठंडी हवा का आनंद लिया, आम ख़रीदे, तस्वीरें उतारीं। शाम को जून ने एक जूम मीटिंग अटेंड की, जिसमें बताया गया, दुनिया को पूर्ववत होने में अभी काफ़ी समय लगेगा और स्थिति शायद कभी भी पूरी तरह नार्मल न हो। भविष्य ही बताएगा कि आगे क्या होने वाला है।जून ने एक मित्र से बात की, उनके पुत्र का विवाह अगले महीने होने वाला है।
आज सुबह नूना टहलकर आयी तो बिना किसी आलंबन के ध्यान किया। उस समय ऐसा लग रहा था जैसे ईश्वर ने ही यह सब तय किया है। हर आत्मा के लिए एक निर्धारित काल होता है जब उसे पूर्ण सत्य का बोध हो। उसके जीवन में भी वह दिन कभी न कभी आएगा, पर तभी न जब उसके लिए प्रयास जारी रहेगा।
आज शाम को टहलने गये तो गाँव की तरफ़ निकल गये, कई मज़दूर एक छोटी सी पहाड़ी को काट कर मिट्टी निकाल रहे थे। पहाड़ी पर नारियल के कुछ वृक्ष बचे थे, वे भी कुछ दिनों में उखाड़ कर फेंक दिये जाएँगे, जैसे अब तक न जाने कितने पेड़ काट दिये गये होंगे। ज़मीन को इस तरह काट कर मिट्टी को बेचा जाता है, यह पहली बार ही देखा। आज बहुत दिनों बाद जून के पुराने मित्र व भाभी जी से बात हुई। उनकी बातें बहुत मज़ेदार होती हैं। बनारस की रीतियों, पूजापाठ, त्योहारों के बारे में बहुत जानकारी है उन्हें। दिवाली तक के कितने ही उत्सवों को गिना गयीं, बाद में सोचा रिकॉर्ड क्यों नहीं कर ली उनकी बातें। बनारसी लहजे के कारण कुछ समझ में आया कुछ नहीं। अगले महीने होने वाले बेटे के विवाह में बुला रही थीं। घर में बँटवारे की बात भी चल रही है, इसका भी तनाव है उन्हें, और बड़ा बेटा अपनी पत्नी व पुत्र से अलग रहता है, इसकी भी चिंता है। फिर भी बहुत आराम से सारी बातें करती रहनों। बनारस के लोगों की यह ख़ासियत है। सुबह छत पर प्राणायाम के समय धुआँ आने लगा था। पड़ोस में जो घर बन रहा है, मज़दूर खाना बनाना शुरू कर रहे थे शायद, अब वे झोपड़ी छोड़कर आधे बने घर में ही रहने लगे हैं। दूसरी मंज़िल बननी आरंभ हो गई है। अभी कुछ महीने और लगेंगे, तब तक शोर और यह परेशानी झेलनी पड़ेगी।