Wednesday, July 16, 2025

नारियल के पेड़


आज उनके घर के पीछे वाली  ज़मीन की छोटी सी पट्टी पर और दायें-बायें दोनों तरफ़ के लॉन में कार्पेट घास लग गई है।पड़ोसियों के यहाँ भी घास लग गई है, अब हरियाली बढ़ गई है दोनों ओर।माली ने गुड़हल के पौधे भी लगा दिये हैं। जून नर्सरी से क्रोटन के भी चार पौधे  लाए हैं।शाम को वे पुन: बोटेनिका गये। भविष्य में यह बहुत सुंदर सोसाइटी बनेगी, अभी तो मात्र सड़कें बनीं हैं और दोनों तरफ़ फूलों की क्यारियाँ और वृक्ष लगे हैं। सूर्यास्त का सुंदर दृश्य भी दिखाई दे रहा था। दाहिनी तरफ़ की सड़क एक गाँव की तरफ़ जाती है। शाम को नन्हे ने फ़ोन किया, इतवार को वे लोग अपने एक मित्र परिवार से मिलने गये थे। श्रीमती जी का जन्मदिन था, उन्होंने फल खिलाए, बाद में चाय व टोस्ट। उसके दाँत में दर्द था, गाल फूला हुआ था, पर वह अपने पैतृक शहर में जाकर ही इलाज करवायेंगी, ऐसा तय किया था। सोनू ने उसे अपने डेंटिस्ट का नंबर दिया।पापाजी ने बताया, उन्होंने मोबाइल पर हिन्दी में टाइप करना सीख लिया है। आज अंततः दीदी-जीजाजी ने भी कोरोना का टीका लगवा लिया। अभी-अभी भांजी को उसकी बिटिया के लिए लिखी कविता भेजी, उसे अवश्य पसंद आएगी। सुबह वे टहलने गये तो हवा में ठंडक थी। मानसून का असर होने लगा है हवाओं में। 


एक और दिन काल के गर्त में समा गया।पूरा दिन कुछ न कुछ व्यस्तता बनी रही।नन्हा व सोनू सुबह-सुबह आ गये थे। कल उन्हें भी वैक्सीन लगनी है। नन्हे ने एक नया गेम भेजा था, उसे खोलकर सीखने का प्रयास किया, नया मॉडेम भी लगाना था।नाश्ते में जून ने दोसे के साथ केसरिया खीर भी बनायी थी।सवा नौ बजे वे चले गये, कोरोना की वजह से जीवन कितने बंधनों में बंध गया है।नूना ने लेखन कार्य आगे बढ़ाया। दोपहर को गुरुजी का गाइडेड ध्यान किया। शाम को अख़बार की पहेलियाँ हल कीं।पापा जी से रोज़ की बातचीत हुई। सांध्य भ्रमण, ध्यान, रात्रि भोजन और रात्रि भ्रमण। इस समय वह दिन का अंतिम कार्य कर रही है, डायरी लेखन। जीवन कितना सहज हो गया है, न ऊधो का लेना ना माधव का देना ! न टीवी पर समाचार सुने न ही अख़बार में हेडलाइन्स के अलावा कुछ ज़्यादा पढ़ा। कुछ किताबें मंदिर में रखी हैं, उनमें से एक-एक पन्ना सुबह-शाम पढ़ने के अलावा और कोई किताब भी नहीं पढ़ी।सेवा के नाम पर अनुवाद कार्य चल रहा है और ब्लॉग के माध्यम से थोड़ी बहुत साहित्य सेवा ! योग वसिष्ठ पढ़ते समय कैसी मस्ती का अनुभव होता है, गुरुजी के साथ ध्यान करते समय भी। वह कितना काम कर रहे हैं। उनकी पुस्तक पढ़ना भी एक सुखद अनुभव है। 


आज सुबह वे टहलकर आये तो जून ने कहा, ड्राइव पर चलते हैं। बादलों के कारण सूर्योदय के दर्शन नहीं हुए। ठंडी हवा का आनंद लिया, आम ख़रीदे, तस्वीरें उतारीं। शाम को जून ने एक जूम मीटिंग अटेंड की, जिसमें बताया गया, दुनिया को पूर्ववत होने में अभी काफ़ी समय लगेगा और स्थिति शायद कभी भी पूरी तरह नार्मल न हो।  भविष्य ही बताएगा कि आगे क्या होने वाला है।जून ने एक मित्र से बात की, उनके पुत्र का विवाह अगले महीने होने वाला है। 


आज सुबह नूना टहलकर आयी तो बिना किसी आलंबन के ध्यान किया। उस समय ऐसा लग रहा था जैसे ईश्वर ने ही यह सब तय किया है। हर आत्मा के लिए एक निर्धारित काल होता है जब उसे पूर्ण सत्य का बोध हो। उसके जीवन में भी वह दिन कभी न कभी आएगा, पर तभी न जब उसके लिए प्रयास जारी रहेगा। 


आज शाम को टहलने गये तो गाँव की तरफ़ निकल गये, कई मज़दूर एक छोटी सी पहाड़ी को काट कर मिट्टी निकाल रहे थे। पहाड़ी पर नारियल के कुछ वृक्ष बचे थे, वे भी कुछ दिनों में उखाड़ कर फेंक दिये जाएँगे, जैसे अब तक न जाने कितने पेड़ काट दिये गये होंगे। ज़मीन को इस तरह काट कर मिट्टी को बेचा जाता है, यह पहली बार ही देखा। आज बहुत दिनों बाद जून के पुराने मित्र व भाभी जी से बात हुई। उनकी बातें बहुत मज़ेदार होती हैं। बनारस की रीतियों, पूजापाठ, त्योहारों के बारे में बहुत जानकारी है उन्हें। दिवाली तक के कितने ही उत्सवों को गिना गयीं, बाद में सोचा रिकॉर्ड क्यों नहीं कर ली उनकी बातें। बनारसी लहजे के कारण कुछ समझ में आया कुछ नहीं। अगले महीने होने वाले बेटे के विवाह में बुला रही थीं। घर में बँटवारे की बात भी चल रही है, इसका भी तनाव है उन्हें, और बड़ा बेटा अपनी पत्नी व पुत्र से अलग रहता है, इसकी भी चिंता है। फिर भी बहुत आराम से सारी बातें करती रहनों। बनारस के लोगों की यह ख़ासियत है। सुबह छत पर प्राणायाम के समय धुआँ आने लगा था। पड़ोस में जो घर बन रहा है, मज़दूर खाना बनाना शुरू कर रहे थे शायद, अब वे झोपड़ी छोड़कर आधे बने घर में ही रहने लगे हैं। दूसरी मंज़िल बननी आरंभ हो गई है। अभी कुछ महीने और लगेंगे, तब तक शोर और यह परेशानी झेलनी पड़ेगी।  


Sunday, July 13, 2025

नारंगी बादल


नूना का जन्मदिन था, सबसे पहले पापाजी का फ़ोन आया। वे लोग तैयार होकर प्रातः भ्रमण के लिए निकले ही थे कि बच्चे आ गये।सोनू ब्लूबेरी केक बनाकर लायी थी। नन्हे ने उसे एप्पल का डेस्क टॉप दिया, जिसका कीबोर्ड बहुत स्लीक है और स्क्रीन साढ़े तेइस इंच है।जून ने मैंगो शेक बनाया, ब्रोकोली राइस और बूँदी का रायता। दस बजे वे लोग चले गये। दोपहर व शाम को भी सभी भाई-बहनों व सखियों के फ़ोन आते रहे। फ़ेसबुक पर भी सौ से अधिक लोगों ने शुभकामना दी। नूना के प्रकृति प्रेम और साहित्य से लगाव का ही यह परिणाम है। इन लोगों में से कितनों से तो वह मिली भी नहीं, अधिकतर असम के हैं। आज सुबह आकाश पर नारंगी रंग के बादल थे, छत पर सूर्य नमस्कार करते हुए बाल सूर्य की किरणों को अंतर में भरना कितना सुखद है। टहलने जाने से पूर्व वह कुछ न कुछ लिखती है, बाद में वैसा एकांत नहीं मिलता न बाहरी न आंतरिक। भोर का समय जब पिछले दिन के सब उहापोह साफ़ हो चुके होते हैं, मन बिलकुल ख़ाली होता है, तब ही कुछ नया कहा जा सकता है, सोचा जा सकता है। जून आजकल अपने मोबाइल में ज़्यादा व्यस्त रहते हैं, उन्हें नये-नये व्यंजन बनाने का भी शौक़ है, आज ज्वार के आटे में सहजन के पत्ते डालकर रखे हैं। छोटी बहन का फ़ोन आया, उसकी छोटी बिटिया पालतू पूसी के जाने का दुख भुला नहीं पायी है, वह घर में अकेले नहीं रह पाती, किसी मॉल या रेस्तराँ में जाकर काम करती है या पढ़ती है। पापा जी ने व्हाट्सएप पर पढ़कर घर, मकान, होम, बंगला, हवेली, फ्लैट आदि की परिभाषाएँ बतायीं, सभी अच्छी थीं। घर या होम जहाँ हवन होता है, मकान में दीवारों के कान होते हैं, बंगला यानी पड़ोसी से दूरी, हवेली यानी हवादार, फ्लैट जो लोन लेकर ख़रीदा गया हो। 


आज नूना ने अपनी लिखी एक पुरानी कविता पढ़ी तो लगा उसकी काव्य क्षमता पहले से कम हो गई है।आज दीदी का जन्मदिन है, उन्हें कविता भेजी। नये कंप्यूटर पर लिखना आरंभ किया। छोटा भाई हफ़्तों हैदराबाद के एक होटल में रहकर आज घर पहुँच गया।सुबह टहलने गये तो रास्ते में रेत दिखी थी, गुलदाउदी की पौध लगाने के लिए अच्छी है, जब नूना ने जून से कहा तो वह कार ले आये। रेत लेने के बाद उन्होंने कहा, कुछ दूर तक होकर आते हैं। वैक्सीन की दूसरी डोज़ लगाने के बाद से नूना कहीं भी नहीं गई थी।सोसाइटी के मुख्य द्वार से थोड़ा ही आगे गये होगें तो सूर्योदय के दर्शन हुए, उसके साथ ही लाल फूलों से लदे  हुए गुलमोहर के पेड़ आकर्षित कर रहे थे।नाइस रोड तक जाकर वे वापस लौट आये।   


अभी कुछ देर पहले वे रात्रि भ्रमण से लौट कर आये हैं। आजकल सबसे पहले देखना होता है, कौन सी सड़क ख़ाली है, दायें, बायें या सामने वाली, कोरोना काल में लोगों से बचकर निकलना ही ठीक है। मास्क पहनने के बावजूद भी दूर से कोई दिख जाये तो सड़क बदल लेते हैं, ऐसा कई लोगों को करते भी देखा है। यह कैसा वक्त आया है कि आदमी, आदमी से डरने लगा है। आज अख़बार में एक चित्र देखा जिसमें सामूहिक अस्थि विसर्जन किया जा रहा है। लोग अपने मृत रिश्तेदारों की अस्थियाँ लेने आये ही नहीं तो सरकार को यह करना ही पड़ा। मन्त्रोच्चरण के साथ फूलों से उन्हे सजाकर यह रस्म की गई। 


नन्हे से बात हुई, इस बार वे लोग शनिवार को आयेंगे। सोनू ने बताया, उसे अपनी कंपनी में अब से ग्लोबल टीम में काम करना होगा।आज दोपहर तीन बजे से वर्षा शुरू हुई तो लगातार तीन घंटे होती रही। छह बजे वे टहलने गये, एक घर के सामने एंबुलेंस खड़ी देखी, शायद कोई मरीज़ घर लौटा हो या जाने वाला हो इलाज के लिए, उन्होंने रास्ता बदल लिया और कुछ पता नहीं किया। यदि सामान्य समय होता तो अवश्य ही वहाँ जाकर पूछ लेते। कर्नाटक में लॉक डाउन की अवधि और बढ़ा दी गई है। नन्हे ने लिखा, उसने सरेंडर का अभ्यास शुरू कर दिया है, ईश्वर उसे इस मार्ग पर आगे बढ़ने का साहस दे। नूना ने आज योग वशिष्ठ का कुछ अंश पढ़ा, उसमें चेतना का अद्भुत वर्णन है, पढ़ते-पढ़ते ही जैसे ध्यान लगने लगता है। 


विश्व पर्यावरण दिवस पर बच्चे आज गुड़हल के दो पौधे लाये, एक नारंगी व दूसरा गुलाबी रंग के फूलों का है। आज ही लॉन लगाने के लिए घास भी आ गई है। आज पड़ोसन ने निकट ही बनी एक नयी सोसाइटी बोटेनिका के बारे में बताया। वे देखने गये, हरियाली का एक सागर हो जैसे, साफ़-सुथरी सड़कें और फूलों के वृक्षों से सजी थी। उसी में से होकर एक सड़क निकट के एक गाँव में जाती है। वे दूर तक चलते गये, पहले कच्ची सड़क थी, फिर पक्की सड़क आ गई। शाम को पापा जी से बात हुई, उन्हें वृद्धावस्था में होने वाली परेशानियाँ हो रही हैं। वे बहुत नियम से रहते हैं पर तन-मन पर किसी का वश तो नहीं है। 


  


Friday, July 11, 2025

चीटियों की क़तार




आज संस्कार पर गुरु माँ को सुना,  कह रही थीं, मानव शरीर में अरबों कोशिकाएँ और जीवाणु रहते हैं। उन्हें कुल मिलाकर एक ‘मैं’ का निर्माण होता है, इसी प्रकार अरबों जीवों को मिलकर ईश्वर का। जैसे ‘मैं’ उन जीवाणुओं के जोड़ से कहीं अधिक है, ईश्वर भी सब जीवों के जोड़ से अधिक है। आज जून की, छोटी बहन से बात हुई, भांजे ने इन्फ़ोसिस का जॉब छोड़ दिया है और डेलॉयट में काम कर रहा है। उसे आश्चर्य होता है, आजकल बच्चे हर दो साल के बाद कंपनी बदल लेते हैं, उनमें कंपनी के प्रति अपनेपन का भाव पैदा भी नहीं होता होगा। शायद वे मोह-माया से ऊपर उठ चुके हैं अथवा तो अधिक माया का मोह उन्हें ऐसा करने पर विवश करता है। इस दुनिया में चमत्कार भी होते हैं। यदि इस शब्द का अस्तित्त्व है तो इसको अर्थवान भी होना होगा। कितने ही संत, महात्मा व अवतारी पुरुष चमत्कार करते हैं।आज एक स्वामी जी के मुख से सुना, एक महिला और उनकी पुत्री ने उन्हें आकर धन्यवाद दिया, यह कहकर कि उन्होंने पुत्री के एक असाध्य रोग का इलाज बताया था। स्वामी जी ने कहा, मैंने उन दोनों को पहली बार देखा था, पर उनकी श्रद्धा और विनम्रता देखकर उनपर अविश्वास नहीं कर सका, शायद परमात्मा ने ही कोई लीला रची होगी। शाम को पापा जी से बात हुई, वह आजकल ओशो का शांडिल्य सूत्र पढ़ रहे हैं।जून ने उनके लिए ग्रीन टी और बिस्किट भेजे हैं।नूना ने उनके लिए लिखी सारी कविताओं का एक संकलन बनाया है, ‘पितृ दिवस’ पर उन्हें भेजने का विचार है।  


शाम को भोजन के बाद नूना किचन में गई तो नन्हे का ध्यान आया, तभी फ़ोन की घंटी बजी।उसे पंद्रह मिनट का समय मिला था, सो फ़ोन कर लिया।काफ़ी व्यस्त चल रहा है, दिन भर कॉल्स चलती हैं। कह रहा था, सोनू और वह दोनों लंच पर मिलते हैं फिर सीधा रात्रि भोजन पर। घर से काम करने पर व्यस्तता अधिक बढ़ गई है। इतवार की सुबह छह बजे आयेंगे, नौ बजे वापिस चले जाएँगे, क्योंकि दस बजे के बाद बाहर नहीं रह सकते।


कर्नाटक में एक दिन में तीस से पैंतीस हज़ार कोरोना के केस मिल रहे हैं आजकल। कोरोना के साथ ब्लैक फ़ंगस का प्रकोप भी बढ़ रहा है। ताउते के साथ याम तूफ़ान भी आने वाला है। प्राकृतिक आपदाएँ अब जल्दी-जल्दी आने लगी हैं। इज़राइल और फ़िलस्तीन में युद्ध जारी है, शायद इस बार निर्णायक हो, पर यह भी एक कल्पना ही है।कोई भी युद्ध निर्णायक नहीं होता, भविष्य में इसके सुलगने के आसार बने ही रहते हैं। आज एक पोस्ट प्रकाशित की, एक कविता, जो दोपहर को घट रही अनुभूति के दौरान लिखी थी।ऐसा आजतक चार-पाँच बार हो चुका है या आठ-दस बार, इससे अधिक नहीं। कोई घेरे रहता है और भीतर कुछ महसूस होता है, जिसे शब्दों में ढालकर भी नहीं ढाला जा सकता। दीदी आजकल  स्पोकन अंग्रेज़ी का अभ्यास सीख रही हैं।आजकल हैरी पॉटर पढ़ रही हैं।पापा जी से आज अध्यात्म चर्चा हुई। उनकी बातचीत का कुछ अंश रिकॉर्ड भी किया।अहंकार का परित्याग करके ही मानव आत्मा का अनुभव कर सकता है, जो यह सुख पा लेता है उसे अहंकार सताये ऐसा होना संभव नहीं है। 


जून से एक ऑन लाइन कोर्स करने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया, जीवन की धारा जिस गति में चल रही है, वह उसी में संतुष्ट हैं। वे सभी अपने अपने कम्फ़र्ट जोन में सुरक्षित रहते हैं और सोचते हैं, यही जीवन है। नूना को जीवन से कोई शिकायत नहीं है, जो जैसा है, वैसा ही स्वीकार्य है। नन्हे और सोनू ने अगले महीने आने वाले उसके जन्मदिन के लिए एक सुंदर उपहार भेजा है, अल्मूनियम की एक केतली, जिसे रंगों से सजाना है, नूना ने सोचा, कल से ही रंगना आरंभ करेगी। छोटी बहन का फ़ोन आया, उसे आजकल कभी अठारह घंटे, कभी चौबीस घंटे ड्यूटी करनी पड़ती है। कोरोना के कारण मरीज़ अधिक हैं। तीन वर्ष पूरा होने के बाद प्रैक्टिस जारी रखने के लिए एक परीक्षा भी देनी है। उनकी पालतू बिल्ली भी बीमार हो गई है।उसके बचने के आसार नज़र नहीं आते।  


आज सुबह टहलते समय सड़क पर चीटियों की बहुत लंबी क़तार देखी, वीडियो बनाया, अनोखा दृश्य था। एक टिटहरी दीवार पर बैठकर अपना गीत गा रही थी। पेड़ों पर आम भी अब काफ़ी बड़े हो गये हैं, पकने को तैयार। 


आज का दिन भी पूर्णता को प्राप्त होने को है। सुबह सुहानी थी, वॉकिंग मैडिटेशन किया फिर छत पर साधना। जून आजकल गर्मी व मच्छर के डर से नीचे कमरे में योगासन करते हैं, पर वहाँ हवा भी चलती है और मच्छर भी नहीं होते, ख़ैर, पसंद अपनी अपनी ! जीवन के इतने वर्ष बीत जाने पर नूना को यह समझ में आया है कि हरेक आत्मा को अपनी तरह से जीने की स्वतंत्रता है और कोई किसी को बदलने का प्रयास न करे, क्योंकि संस्कारों का परिवर्तन अपने ही हाथों में होता है, किसी और के प्रभाव में आकर किया परिवर्तन स्थायी नहीं होता। 


बाहर किसी ने आग जलायी, धुआँ ही धुआँ हो गया है, एसी के द्वारा कमरे तक उसकी गंध आ गई है।देवों के देव में पार्वती के मन की अस्थिरता को दिखाया गया। प्रकृति में विक्षोभ होना स्वाभाविक है, सत, रज और तम से बनी है। यास तूफ़ान से कई राज्यों में नुक़सान हुआ है।