कुछ देर पूर्व वे रात्रि भ्रमण से लौटे हैं, हवा ठंडी थी, शाम भर वर्षा होती रही थी। जाने कहाँ से बादल इतना जल लेकर आते हैं और अचानक किसी स्थान पर धरा को भिगो कर चले जाते हैं। प्रकृति की लीला को कौन समझ सका है। भगवद गीता में कृष्ण कहते हैं, वही पंच भूतों के स्रोत हैं। देवों के देव में देखा, पार्वती की तपस्या अपने अंतिम चरण में पहुँच गयी है। उन्होंने वनस्पति का आधार भी छोड़ दिया है और केवल वायु के आश्रय रहकर तप कर रही हैं। जब कि वे कुछ घंटे भी भोजन के बिना नहीं रह पाते। बहुत सामान्य है उनका जीवन, पर उस विराट से मिलने की आस रखते हैं। दुर्गाष्टमी आने वाली है। गुरु जी ने बहुत सुंदर व्याख्या की है दुर्गा के नौ रूपों की। उनके एक व्याख्यान का हिंदी में ट्रांस्क्रिप्शन किया। वह कहते हैं, शैल पुत्री किसी अनुभव की पराकाष्ठा से उत्पन्न हुई ऊर्जा है। ब्रह्मचारिणी अनंत में व्याप्त ऊर्जा है। चंद्र घंटा सौंदर्य का अनुभव करने वाली शक्ति का प्रतीक है। कुषमाँडा ऊर्जा से परिपूर्ण होने की अवस्था है। स्कंद माता मातृ शक्ति है। कात्यायनी ज्ञान की देवी है। कालरात्रि रात्रि के समान विश्राम देने वाली, सिद्धीदात्री सिद्धियों को देने वाली तथा महागौरी सक्षम बनाने वाली तथा मुक्ति प्रदायिनी है।
परसों बड़ी भांजी का जन्मदिन है। सीए होते हुए वह अंग्रेज़ी में तीन छोटे उपन्यास लिख चुकी है, चौथा लिख रही है। वेब साइट खोल ली है। जो ऑन लाइन पुस्तक छपवाना चाहते हैं, उनकी मदद करना चाहती है। उसका दाँया और बाँया दोनों मस्तिष्क सजग हैं, गणित और अर्थशास्त्र जैसे रूखे-सूखे विषय में पारंगत है और लेखन जैसे सरस विषय में भी। बेटी, भांजी, एक समर्पित पत्नी, फ़रमाबरदार बहू, एक बिटिया की वात्सल्यमयी माँ, बहन, मौसी, बुआ सब है। उसके अगले दिन सोनू का जन्मदिन है, वह समझदार और सबका ध्यान रखने वाली है। प्राणी, पौधा, अपना या पराया, किसी में कोई भेद नहीं करती। सहेलियों से बनाकर रखती है और रिश्तेदारों का हालचाल लेती रहती है। अपना ऑफिस का काम भी मन लगाकर करती है। घर व वस्त्रों को सलीके से रखती है। कितना कुछ है उनके जन्मदिन पर कविता लिखने के लिए।
नैनी गाँव से अपने खेत की एक लौकी और मूँगफली लायी है, जिसे उन्होंने एयर फ्रायर में भून कर खाया।आज गुरुजी के लेख का अनुवाद किया, जिसमें रामायण के प्रतीकात्मक गूढ़ अर्थ को समझाया था। अभी-अभी उनका लाइव सत्संग सुना, कह रहे थे, पर्व इसलिए आते हैं कि रोज़मर्रा के जीवन में उलझा हुआ मानव कुछ समय देवाराधना के लिए निकाल सके। आज सुबह चार बजे एक स्वप्न देखा, पापा जी कह रहे हैं, उन्हें ठंड लग रही है। शाम को उनसे बात हुई तो पता चला, उस समय उन्हें वाक़ई ठंड लग रही थी। उन्हें हल्का बुख़ार हो गया था, दवा ले ली थी, अब ठीक हैं। उन्होंने दीपक चोपड़ा के एक वीडियो के बारे में बात की, जिसमें नब्बे साल की एक वृद्ध महिला योग सिखा रही हैं। शाम को वे टहलने गए तो अक्सर मिलने वाले एक नब्बे वर्षीय एक वृद्ध से बात हुई, अपने रंगून प्रवास के बारे में बता रहे थे, वे वहाँ पाँच साल रहे थे और रोज़ झील के चक्कर लगाते थे। यहाँ रोज़ शाम को उनका नौकर उन्हें कार में घुमाता है, फिर एक जगह कार रोककर वे प्रकृति के नजारों को देखते हैं और कभी-कभी कुछ देर छड़ी लेकर कुछ कदम चलते हैं। वृद्धावस्था में देह साथ नहीं देती, वे गर्मी में भी मोज़े पहने रहते हैं; पर बातों में उत्साह से भरे होते हैं। चेतना कभी वृद्ध नहीं होती, इसलिए कभी-कभी बूढ़े बिलकुल बच्चों जैसे हो जाते हैं।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-04-2023) को "बंजर हुई जमीन" (चर्चा अंक 4658) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेख।
ReplyDeleteस्वागत व आभार रूपा जी!
Deleteयादें जब आँखों के सामने आती है तो एक एक फिल्म की रील की तरह सामने आकर मन को उद्वेलित कर लेती है। बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteस्वागत व आभार कविता जी!
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