तुंगभद्रा के किनारे
रात्रि के नौ बजे हैं, रात्रि भोजन के बाद टहलते समय पिताजी से बात की। वह आज व कल अकेले रहेंगे, नवासी वर्ष की उमर में भी वह अकेले रह सकते हैं, यह क़ाबिलेतारीफ़ है। उन्होंने बताया, एक नयी किताब पढ़ी, ‘गॉड डेल्यूजन’, जो छोटी पोती ने दी है। उसे भी आध्यात्मिक किताबें पढ़ने का शौक़ है, पर नूना ने इस किताब के बारे में पढ़ा तो आश्चर्य हुआ, इसमें ईश्वर के अस्तित्त्व को नकारा गया है। लेखक नास्तिक है और उसे धर्म की कोई आवश्यकता नज़र नहीं आती। शायद आस्तिक होने के लिए नास्तिकता के पुल को पार करके ही आना होता है। शाम को वे निकट स्थित एक नर्सरी में माली ढूँढने गये, कल एक माली छत देखने आएगा, जहाँ टैरेस गार्डन उगाना है, शायद अगले वर्ष तक उनके सपनों का बगीचा तैयार हो जाए।आज लॉन में नयी घास भी लगवायी। जून ने बताया सोलर पैनल के द्वारा आज बिजली का अधिकतम उत्पादन हुआ, सुबह ठंड थी पर दिन में तापमान बत्तीस डिग्री था। आज अचानक शयनकक्ष के स्नानघर में पानी रिसने लगा, शायद दीवार में कोई पाइप ब्लॉक हो गयी है।
कल शाम एक पुराने परिचित के पुत्र के विवाह समारोह में सम्मिलित हुए, जहाँ कई पुराने परिचित मिले। पुराने मित्रों से मिलना कितना सुखद अनुभव होता है। आज दिन में एओएल का ट्रांसक्रिप्शन का कार्य पहली बार किया। शाम को शिवरात्रि उत्सव के कार्यक्रम में आश्रम गये। हज़ारों की भीड़ थी। ‘मैं’ को पीछे रखकर किया गया कार्य ही सेवा है, गुरूजी ने अपने प्रवचन में कहा। सुबह जून के एक मित्र परिवार सहित आए थे, उनकी डाक्टरी पास पुत्री अगले पाँच दिन यहीं रहेगी। वह सहयोगी प्रवृत्ति रखने वाली बहुत शांत स्वभाव की है और समझदार भी। मृदुभाषी है, सहज और धीरे बोलती है। उसे एमडी की परीक्षा की तैयारी करनी है। अगले हफ़्ते दोनों परिवारों को मिलकर हम्पी और हौस्पेट की यात्रा पर जाना है। बहुत दिनों बाद रेलयात्रा का आनंद मिलेगा।
सुबह-शाम बगीचों में भ्रमण करते, सूर्योदय व सूर्यास्त की तस्वीरें उतारते दिन बीत रहे हैं। शाम को बैडमिंटन खेला। नन्हे ने बगीचे के लिए सौर ऊर्जा से जलने वाली दो मशालें भेजी हैं, दिन भर में ऊर्जित हो जाती हैं, रात भर जलती हैं, उनकी रोशनी दूर से ही दिखती है। कल छोटी डाक्टर अपने घर चली जाएगी।
आज सुबह सात बजे वे एक मित्र परिवार के साथ हौस्पेट पहुँच गये थे। समाचारों में सुना, कोलकाता में गृह मंत्री ने बयान दिया है कि सीएए का व्यर्थ ही विरोध किया जा रहा है। आस्था पर संत संचित, क्रियमाण व प्रारब्ध कर्म के बारे में बता रहे हैं। यह यात्रा क्रियमाण कर्म है, इसमें होने वाले अनुभव प्रारब्ध कहे जा सकते हैं। संचित कर्म में से कुछ कर्मों के कारण ही वे इस दुनिया में आए हैं। आज तुंगभद्रा नदी पर बना बांध देखने जाना है। कर्नाटक में कई सुंदर प्राकृतिक स्थल हैं तथा मानव की अपरिमित क्षमता से बनाए गए कई दर्शनीय स्थान भी। यहाँ लोहे का बड़ा भंडार है जिस कारण स्टील की कई फ़ैक्टरियाँ भी हैं। ज्वर,
कल सुबह यात्रा का आरंभ एक ऐसे स्थान से किया जहाँ बच्चों और युवाओं के लिए रोमांचक खेल थे, वहाँ कुछ झूले, रस्सी के पुल आदि बने थे। उन्होंने उस स्थान का भरपूर लाभ उठाया और अपनी क्षमता को पहचाना। दोपहर को एक सहकारी बैंक में गए। जिसकी स्थापना मित्र के पिता जी ने की है। शाम तक तुंगभद्रा के किनारे पहुँचे। सूर्यास्त का अनुपम दृश्य देखने बहुत सारे दर्शक आए थे। पार्क में संगीतमय फ़ौवारे लगे थे। पूरा वातावरण एक मोहक स्वप्नलोक की रचना कर रहा था। उसके बाद मित्र अपने चचेरे भाई के यहाँ ले गये। जहाँ ज्वार की रोटी के साथ मूली-टमाटर का रायता, मूँगफली व लाल मिर्च की चटनी, मेथी-पालक वाली दाल तथा अंकुरित सलाद था, सभी व्यंजन स्थानीय थे और अति स्वादिष्ट भी।मित्र की चाचीजी से ज्वार की रोटी बनाना भी सीखा। लगभग उबलते हुए पानी में इसका आटा गूँथा जाता है। घर में दो बच्चे भी थे जो काफ़ी समय तक मोबाइल पर ही खेल रहे थे।एक ही दिन में कितने सारे अनुभव हो गये, यात्रा कितना कुछ नया सिखाती भी है। कल उन्हें बादामी गुफ़ाएँ देखने जाना है।
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