Tuesday, June 15, 2021

पुलवामा का दर्द


उस दिन “शांति धाम” से लौटकर भी वहाँ की स्मृति दिन भर मन में बनी रही. वहाँ की मैनेजर एक महिला थीं, उनके पति को मधुमेह की बीमारी है, शरीर पर पूरा नियंत्रण नहीं है फिर भी काम में उनकी सहायता करते हैं. उन्होंने ही आश्रम दिखाया. एकमात्र पुत्र दुर्घटना में चल बसा, अभी कुछ समय पहले ही वे ये लोग यहाँ आये हैं, और काम समझ रहे हैं, ऐसा कहा. पुत्र होते हुए भी कुछ लोग अकेले रहने को विवश हैं शायद यही सोचकर वे अपने मन को समझा लेते होंगे। दोपहर को मोदीजी का कोकराझार में दिया भाषण सुना, जिसको सुनने के लिए चार लाख लोग आए थे, सभी बोडो भारत सरकार के साथ हुए समझौते से प्रसन्न थे. पूरे शहर में मानो उत्सव का माहौल बना हुआ था. बीती रात असम के इस शहर में लाखों दीये भी जलाए गये. मोदीजी ने कहा कि सरकार ने बोडो की समस्याओं को समझा और उनका हल निकाला. बोडो आतंकवादी संगठनों ने भी शांति का मार्ग अपना लिया है. उन्होंने कहा, सभी को बैर छोड़ना होगा, हिंसा से कभी कुछ हासिल नहीं हुआ है. उसे असम में निवास के समय बोडो आंदोलन के कारण हुई हिंसा और आए दिन के असम बंद के दिन याद हो आए। कोकराझार का नाम ही तब हिंसा का पर्याय बन गया था। आज उसका मन भी उन लोगों की ख़ुशी में शामिल था। कल दिल्ली में चुनाव है, संभवतः इस बार बीजेपी जीतेगी। कल वे आर्ट ऑफ़ लिविंग के अनुसंधान विभाग में गये, जून को बुलाया था सेवा काम के सिलसिले में। रास्ते में श्री श्री स्कूल भी देखा। बहुत सुंदर स्थान है। परसों इस सोसाइटी में स्थित एक नया पार्क देखा, वह मुख्य सड़क से काफ़ी अलग है। आज घर के सामने की सड़क बनना आरम्भ हुई है।आज आश्रम में स्थित एम्पिथिएटेर में सत्संग हुआ। गुरूजी ने पहले ध्यान कराया फिर प्रश्नों के उत्तर दिए। उन्होंने कन्नड़ में भी बोला, अब काफ़ी समझ में आने लगा है, संस्कृत के कई शब्द इसमें भी हैं। भीड़ बहुत थी। एक व्यक्ति जो मैक्सिको से आया था उसकी श्रद्धा अपार थी, उसने थैंक्स कहा और उसकी आवाज़ डबडबा गयी हो जैसे आंसुओं में। एक लड़की ने मधुर गीत गाया। छोटी बहन ने उसके और अपने एक पुराने फ़ोटो को देखकर एक पेंटिंग बना दी है, वे दिगबोई के गोल्फ़ के मैदान में थे, जब यह चित्र लिया गया था। यूएई में उसके घर को एओएल का एक सेंटर बना दिया है। वह बहुत खुश थी, सेवा से जो ख़ुशी और शक्ति मिलती है उसकी तुलना किसी अन्य ख़ुशी से नहीं की जा सकती।


कल सुबह सवा नौ बजे वे घर से निकले और रात को नौ बजे वापस आए। जून का स्वास्थ्य परीक्षण हो गया, सब सामान्य है। वह लाओत्से की पुस्तक पढ़ती रही, कुछ देर एक फ़िल्म देखती रही मोबाइल पर प्रियंका चोपड़ा की। नन्हा व सोनू एक मित्र के विवाह के संगीत में गये हैं, उन्हें वहाँ छोड़ते हुए वे घर आए। आज सुबह वे गाँव के पोस्ट ऑफ़िस गये जो किसी के घर में है, एक कमरे का डाक खाना, जिसकी ब्रांच पोस्ट मास्टर एक महिला हैं, वह अपने पति को काम सिखा रही थीं, ताकि ज़रूरत पड़ने पर वह भी कुछ कर सकें।
सुबह से बड़ी भाभी का स्मरण हो रहा है। पाँच वर्ष हो गये उन्हें जग से विदा लिए हुए, उससे एक या दो वर्ष ही बड़ी रही होंगी उमर में। बेहद ख़ुशदिल और जीवंत स्वभाव वाली पर उन्हें हृदय का रोग था। भाई ने उनकी तस्वीरों से एक सुंदर वीडियो बनाया है। उसे एओएल के कोर्सेस के लिए बनी वेब साइट्स का हिंदी अनुवाद करना था, तब पता चला कितने सारे कोर्स होते हैं आश्रम में। गुरूजी कितना काम करते हैं, शायद सत्रह-अठारह घंटे तो करते ही होंगे। कल संभवतः वे ‘शिकारा’ देखने जाएँ, अगले हफ़्ते एक मित्र के पुत्र के विवाह में सम्मिलित होने जाना है। ‘आप’ को दिल्ली में बासठ सीटें मिली हैं और बीजेपी को मात्र आठ। केजरीवाल ने काफ़ी काम किया है दिल्ली में और बिजली पानी मुफ़्त, महिलाओं के लिए बस व मेट्रो में टिकट भी नहीं लगती।जनता तो तत्काल लाभ देखती है।


आज पुलवामा हमले को पूरा एक वर्ष हो गया। पिछले वर्ष आज ही के दिन जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर सी आर पी एफ के क़ाफ़िले पर विस्फोटक सामग्री से भरे वाहन से टकराकर आत्मघाती हमला किया गया। इस हमले की ज़िम्मेदारी पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जैशे मोहम्मद ने ली थी।उसे याद है टीवी पर सैनिकों के शव की पंक्तियाँ थीं, सारा देश आक्रोश से भर गया था। आज भी एक कविता लिखी, दोपहर को रिकार्ड की फिर पोस्ट भी की। शाम को आश्रम में गुरूजी का एक रिकॉर्डेड साक्षात्कार देखा, बच्चों ने सुंदर गीत गाए। आश्रम में अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन आरंभ हो गया है। दोपहर को मृदुला सिंह जी को सुना, अन्य कई वक्ता भी थीं। पैशन, डिस्पैशन व कम्पैशन पर उन्हें बोलना था।


आज दोपहर जून के परिचित दक्षिण भारतीय एक पुराने सहकर्मी मिलने आए, पूरे तेईस वर्षों के बाद वे मिले। उनके लिए भोजन बनाने में नन्हे और सोनू ने बहुत मदद की, वे लोग कल आ गये थे, शाम को जून सभी को अपने बड़े भांजे के यहाँ ले गये, काफ़ी दूर है उसका घर, दो घंटे की ड्राइव के बाद वहाँ पहुँचे, इतने समय में तो कोई दूसरे शहर ही जा सकता है,। उसे लेकर सब ‘उटा’ गये विशुद्ध स्थानीय भोजन के लिए प्रसिद्ध है यह जगह। उटा का अर्थ कन्नड़ भाषा में भोजन होता है। पिताजी से पता चला, छोटा भाई परिवार के साथ यूरोप जा रहा है अगले महीने, उस दौरान बड़े भाई उनके पास आकर रहेंगे।

5 comments:

  1. बहुत बहुत आभार दिलबाग जी!

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  2. बोडो आन्दोलन के बारे में सिर्फ समाचारों में जो सुना बस वही जाना! वास्तव में उत्तर पूर्व को ऐसा अलग थलग कर दिया गया कि वह राष्ट्र का अंग ही प्रतीत नहीं होता!वहाँ रहकर, समझकर ही उनके विचार जाने जा सकते हैं और उनका औचित्य भी!

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    1. सही है, लेकिन अब स्थितियों में बदलाव आ रहा है।

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  3. सार्थक रिपोर्ताज ।

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