आज बैसाखी है. बाहर तेज धूप है. कुछ देर में वे
आश्रम जायेंगे, उससे पूर्व बाजार, जहाँ जून को थोड़ा काम है. घर का सामान खरीदने की
जिम्मेदारी उन्हीं की है, उन्होंने संभाली हुई है. आज सुबह देर से उठे वे, कारण कल
रात देर से सोये. कल शाम डेंटिस्ट के यहाँ पहुँचे तो क्लिनिक पर कोई नहीं था. आठ
बजे तक का समय सामने की दुकान पर काफ़ी पीकर व स्नैप सीड पर फोटो ठीक करके बिताया.
कल दोपहर को दोनों मित्र परिवार आये थे. उन्हें पुलाव खिलाया, पुरानी यादें ताजा
कीं, भविष्य के लिए योजनायें बनायीं और दो घंटे का समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं
चला. असमिया सखी तीन दिन बाद अपने पुत्र के यहाँ जा रही है, जिसके यहाँ सन्तान का
जन्म होने वाला है. आज सुबह व कल शाम को ओशो पर बनी एक डॉक्युमेंट्री देखी. उनके
आश्रम में क्या चल रहा था, वह उससे अनभिज्ञ तो नहीं रहे होंगे. जीवन विरोधाभासों
से भरा है. इंसान जब अपने भीतर के पशु को पूरी तरह से देख लेगा, तभी उसके भीतर नये
मानव का जन्म होगा, शायद इसीलिए ऐसा करते रहें हों वे लोग.
आज सुबह वे चार बजे से भी पहले उठे. कल शाम को ही नंदी हिल
जाने का कार्यक्रम नन्हे ने बनाया था. नहा-धोकर वे तैयार हुए और पांच बजे उसके
मित्र की कार लेकर निकल पड़े. रास्ते में ही लालिमा दिखाई दी, अर्थात सूर्योदय तो
हो चुका था. लगभग डेढ़-पौने दो घंटे की यात्रा के बाद सुंदर पर्वत आरंभ हो गये.
घुमावदार चढ़ाई पर कार के टायर घिसने लगे और एक गंध हवा में भर गयी. सैकड़ों लोग
वहाँ पहुँच चुके थे. मौसम ठंडा था. बादल, धुंध और कोहरे के कारण कुछ दिखाई नहीं दे
रहा था. पेड़ों से गिरती पानी की बूंदों ने सडकों को गीला कर दिया था. हवा ठंडी थी.
उन्होंने जैकेट पहन लिए थे और सिर भी ढक लिए थे. ऊपर कई रेस्तरां थे. एक जगह बैठकर
चाय पी और एक प्लेट सांबर बड़ा में से सबने आधा-आधा बड़ा खाया, जिसका स्वाद अच्छा
था, क्योंकि यह सुबह का पहला भोजन था. जगह-जगह वाचिंग टावर बने थे. जिसपर चढ़कर
सूर्योदय तथा नीचे की घाटी का दृश्य देखा जा सकता था. थोड़ी देर बाद वहाँ बन्दर आने
लगे, जो आदमियों को देखकर जरा भी नहीं डर रहे थे. कुछ समय बिताकर वे वापस आये तो
पता चला कि गाड़ी का एक टायर पंक्चर हो गया है. रास्ते में पंक्चर ठीक कराया, बीस
मिनट लगे, वापसी में परांठे की एक प्रसिद्ध दुकान पर नाश्ता किया, आलू, मूली, गोभी
और पिज़ा परांठे का नाश्ता !
पौने दो बजे हैं दोपहर के. आज ओशो की फिल्म का अंतिम भाग भी
देख लिया. उन जैसे व्यक्ति दुनिया में हलचल मचाने के लिए ही आते हैं. वे सोये हुए
लोगों के भीतर क्रांति के जागरण का बीज बोते हैं. कल उन्हें वापस जाना है, पैकिंग
लगभग हो गयी है. आज बीहू है, यहाँ हर दिन ही उत्सव है. नन्हा ढेर सारा भोजन ऑन
लाइन मंगवा लेता है. सोनू ने केक बनाया है. जून ने आम काटे और कल नंदी हिल से
वापसी की यात्रा में लिए काले अंगूर धोकर खिलाये. शाम को नन्हे के एक परिचित के
यहाँ जाना है. बनारस के रहने वाले हैं. सुबह उसका एक सहकर्मी परिवार सहित आया था.
नीचे बच्चों के तैरने की आवाजें आ रही हैं. सोसाइटी के तरणताल पर दिन भर रौनक लगी
रहती है.
आज वे घर वापस लौट आये हैं. सुबह चार बजे से थोड़ा पूर्व ही
उठे. साढ़े पांच बजे एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए और साढ़े छह बजे पहुँच गये. कल शाम
नन्हा और सोनू ढेर सारा सामान ले आये साथ ले जाने के लिए. अंजीर की बर्फी के रोल
स्वादिष्ट थे और रिबन पकौड़ा भी. साढ़े ग्यारह बजे कोलकाता पहुँचे अगली फ्लाईट के
लिए. हिन्दू, टाइम्स ऑफ़ इंडिया पढ़ते हुए समय बीत गया. साढ़े तीन बजे वे घर पहुँच
गये. ढेर सारे फूल खिले हैं बगीचे में. सामने वाला गुलाबी फूलों वाला पेड़ फूलों से
पूरा भर गया है. घर आकर सफाई आदि करते-कराते सात बज गये. नैनी अपनी देवरानी को ले
आई, माली की दोनों पत्नियों को भी बुला लिया, चारों ने मिलकर सफाई की व कपड़े धोये.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-09-2019) को "आलस में सब चूर" (चर्चा अंक- 3467) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार !
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