Thursday, September 19, 2019

फूलों की तस्वीर






आज कामवाली नैनी की जगह उसकी भांजी काम करने आयी है, उन्हें भी बाद में एक सहायिका को नियुक्त करना होगा, इतने बड़े घर की देखभाल व सफाई के लिए कोई तो चाहिए होगा. जून नेट फ्लिक्स पर 'तीन' देख रहे हैं, अमिताभ बच्चन की फिल्म है यह. उसे फ़िल्में देखने का जरा भी मन नहीं होता अब, जगत ही नाटक लगने लगे तो किसी और नाटक की जरूरत ही नहीं रहती. यहाँ आने के बाद एक बार भी तैरने नहीं गयी, मौसम सदा ही ठंडा रहता है, भीगा-भीगा सा. लेखन कार्य भी बंद है. अपना घर अपना ही होता है, यह बात उनके मन को कितना संकुचित कर देती है, अपना तो यह सारा जहान है !

दोपहर के बारह बजकर दस मिनट हुए हैं. मौसम हल्का गर्म है, धूप तेज है. शाम को मॉल जाना है. वाशिंग मशीन की एएमसी करके अभी-अभी कर्मचारी गया है. कल रात देर से सोये, नन्हा नये घर के लिए खरीदने वाली वस्तुओं की सूची बना रहा था. सोनू देर से लौटी, उसके बाद साढ़े ग्यारह बजे वे सोने गये. सुबह मन्दिर के बाहर बैठने वाली मालिन से फूल लेने गये, छोटी-छोटी दो मालाएं और गुलाब के ढेर सारे फूल ! वह मर्फी की किताब के साथ कार्नेगी की एक पुस्तक भी पढ़ रही है. जीवन को जब तक कोई दिशा नहीं मिलती, वे नया सीखने में उत्सुक नहीं रहते. आत्मा का स्वभाव है जानना, वह हर पल नयी है और नया सीखना चाहती है. अभी क्रोम बुक नही खोली है, आज की पोस्ट लिखनी है.

आज पूरा एक सप्ताह हो गया उन्हें यहाँ आए हुए. नन्हे व सोनू का घर बहुत सुंदर है, सारी सुख-सुविधाओं से पूर्ण, उनका आपसी व्यवहार भी बहुत अच्छा है, भरोसे और सहयोग से भरा ! शाम को नेत्रालय जाना है, परसों डेंटिस्ट के पास. इंटीरियर डेकोरेटर के पास सप्ताहांत में. आज बड़ी भाभी की तीसरी बरसी है. समय जैसे पंख लगाकर उड़ता है. आज सुबह पांच बजे नींद खुली. सुंदर स्वप्न चल रहा था, मुस्कान थी चेहरे पर जब आँख खुली. फूलों की तस्वीरें उतारीं. कल शाम को एक जगह सुंदर फूल देखे थे, पर आज सुबह नहीं थे, माली ने कटिंग कर दी, पता नहीं कहाँ फेंके होंगे श्वेत व रक्तिम वे पुष्प ! जून ने कल रात ढेर सारा पुलाव बना दिया, नन्हा सुबह टिफिन में वही ले गया है. जाने से पूर्व घर भी ठीक-ठाक कर के जाता है, उसे जरा भी काम नहीं करने देता. उसे अँधेरे से डर लगता है, बचपन में ही यह डर उसके मन में बैठा होगा. उसके खुद के मन में भी कितने भय के संस्कार थे, जिनका सामना करने से वे समाप्त प्रायः हो गये हैं. जून आज सुबह भविष्य के लिए चिंतित थे जब वे वृद्ध हो जायेंगे. यह घड़ी पर्याप्त है जीने के लिए, न कोई भूत सताये न भविष्य  सताये..वर्तमान का यह पल ही पर्याप्त है ! नेट पर एक लेख पढ़ा मछली खाने को लेकर, लेखिका को एक रोग है जो व्यक्ति को कमजोर कर देता है. गेहूँ, चावल, दूध के बने पदार्थ उन्हें नहीं पचते. उसे इतने बड़े विश्व में इस पल अथवा तो ज्यादातर समय किसी से कुछ लेना-देना नहीं होता, वह अपने आप में ही प्रसन्न है ! कोई जवाबदेही न हो किसी के भी प्रति, यही तो सच्ची आजादी है ! यह आजादी जिसने एक बार अनुभव कर ली वह भला क्यों बंधना चाहेगा ! सेवा का बंधन भी नहीं, कर्त्तव्य का बंधन भी नहीं..सदा-सर्वदा मुक्त और अपनी आजादी में जो हो उसे होने देना..जो अस्तित्त्व कराए हो जाने देना !

दस बजे हैं सुबह के, आज असमिया सखी आने वाली है, कई बार पहले भी उसने कहा, अंततः वे लोग यहाँ आ रहे हैं. हो सकता है एक और मित्र परिवार भी आये. आज बहुत दिनों बाद दीदी का ब्लॉग पढ़ा. शाम को बड़े भाई से बात की, कल दोपहर वह परेशान हो गये थे, अकेलेपन का दंश और भाभी की उपस्थिति का अभाव उन्हें चुभ रहा था, पर स्वयं को स्वयं ही समझाकर वह उस स्थिति से बाहर आ पाए. मन का काँटा मन से निकलता है फिर उस कांटे को भी फेंक देना है. मौसम आज अच्छा है, बाहर का भी और मन का भी !

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