Wednesday, December 28, 2016

बैलगाड़ी से यात्रा


आज दसवें दिन बाबा ने अपना अनशन तोड़ दिया. गुरूजी और बापू के कहने पर ही यह सम्भव हुआ. उसके मन से भी जैसे कोई बोझ उतर गया है. चार जून को राजधानी में जो हुआ वह अप्रत्याशित था. उसके बाद की घटनाएँ भी कम दुखद नहीं थीं. आज वह अस्पताल से छूट जायेंगे. शायद कल से वे उन्हें पुनः आस्था पर देख पायें. कल दिन भर गर्मी बहुत रही पर आज बदली छायी है. नन्हे के लिए जो कविता उसने लिखी थी वह जून को भेजी है, पत्र से अच्छा है उसे ही भेज दे. समझदार को इशारा ही काफी है. आजकल नेट पर उसकी कविताएँ ज्यादा लोगों द्वारा पढ़ी जा रही हैं. परमात्मा की कृपा है, बल्कि कहना चाहिए उसीका गुणगान हो रहा है. भगवद्गीता का पांचवा अध्याय लिखना आरम्भ करना है. मन में अब भी विकार नजर आते हैं, संस्कार पुराने हैं लेकिन ध्यान में उनकी स्मृति भी नहीं रहती. तब केवल प्रकाश ही शेष रहता है. वाणी की कठोरता जाते-जाते भी नहीं जाती, शायद यह उसका प्रारब्ध है, लेकिन इससे नये कर्म तो संचित नहीं हो रहे, सद्गुरू हँस रहे होंगे उसकी इस बात पर. जिसने अपना-आप परमात्मा के साथ एक करके देख लिया वह अभी तक कर्मों के फेर में पड़ा है. यदि कोई यह मान ही बैठा है कि उसकी वाणी कठोर है और इसमें कभी कोई परिवर्तन हो ही नहीं सकता तो नहीं हो सकता. मान्यता ही संस्कारों को दृढ करती है !

कल दोपहर हिंदी पढ़ने उसकी दोनों छात्राएं आयीं और बैठी रहीं, उसे बुलाया नही और वह दूसरे कमरे में नई कविता टाइप करती रही यह सोचकर कि आज गुरूवार है. असजगता ही इसका कारण है. आज सुबह माली को डांटा, बाद में लगा क्रोध उचित नहीं था. वे किस तरह जीते हैं, रोबोट की नाईं  ही तो. आज नैनी का आपरेशन है, पिताजी को उसकी चिंता हो रही है. उनका हृदय बहुत कोमल है, उसकी बेटी से भी उन्हें मोह हो गया है.

आज फिर उसके सिर में हल्का दर्द है कारण वही पेट से सम्बन्धित होना चाहिए. उस दिन सुना था कि देह में मैल तभी जमता है जब मन में बात जम जाती है. उसके मन में एक ही नहीं अनेक बातें जम गयी हैं. भगवद्गीता पढ़ रही है तो पता चल रहा है, मन कितना चंचल है, कुछ पल भी इसे टिकाना कितना कठिन है और मक्खी की तरह यह जाता भी बार-बार कीचड़ की तरफ ही है. काम, क्रोध व लोभ को नर्क के द्वार बताया है. कितना सही है. रोग से बढ़कर और कौन सा नर्क होगा. अचेतन मन एक अथाह सागर है. कितने जन्मों की वासनाएं छिपी हैं उसमें. साधना की गति बैलगाड़ी की चाल से बढ़ रही है फिर भी भीतर एक आनन्द छाया रहता है. सद्गुरू के निकट रहकर जो साधना कर पाते हैं वे शीघ्र पहुँच जाते हैं, ऐसा भी कोई नियम नहीं है. आज बड़े भाई को दो कहानियाँ भेजी हैं, देखे, उनकी बिटिया को स्कूल में काम आती हैं या नहीं.


आजकल कितने अजीब-अजीब स्वप्न आते हैं. देखते समय यह भी पता चलता है, यह स्वप्न है. उस दिन स्वप्न में एक जैन मुनि को प्रवचन देते सुना और बाद में एक गोल-गोल घूमने का, ध्यान का अनुभव हुआ. परसों एक यात्रा की, मोटरबाइक पर लम्बी यात्रा. मन की क्या कहे कोई, कहाँ-कहाँ घूमने चला जाता है. कल रात स्वप्न में साईं बाबा को देखा. विशाल प्रांगण था. वह दूसरी मंजिल की बालकनी में थी. एक गार्ड बारी-बारी से उनसे मिलाने ले जा रहा था. एक वृद्ध व्यक्ति उनके चरणों को छू रहा था पर वह नाखूनों को एक-एक कर पकड़ रहा था. उनका चेहरा नहीं दिखा पर उनके गाउन का केसरिया रंग झलक रहा था. वह एक डायरी पर कुछ लिख रही थी, शायद वे प्रश्न जो उसे पूछने थे. पर जब उसकी बारी आयी तो गार्ड ने कहा, आप पढ़-पढ़ के उनसे बात करेंगी तो उसने  डायरी और पेन रख दिए और कहा, नहीं वह ऐसे ही जाएगी. तब वह एक ऐसे कमरे में पहुंची जहाँ जमीन पर काले रंग का बिछावन बिछा था. कई लोग साधना कर रहे थे. वह बैठ गयी तो साईं बाबा प्रवचन देने वाले थे पर एक महिला वहाँ खड़ी होकर उनकी जगह बोलने लगी और उसकी नींद खुल गयी अथवा तो स्वप्न टूट गया. यह स्वप्न कहीं उसके मन का मायाजाल तो नहीं अथवा..लेकिन आज सुबह ध्यान में कृष्ण के दर्शन हुए तथा भीतर चलने वाले यज्ञ का आभास हुआ जिसमें श्वासों की समिधा निरंतर पड़ रही है. उसने एक कविता लिखी थी ‘यज्ञ भीतर चल रहा है’  पर आज उसका अर्थ स्पष्ट हुआ. कृपा निरंतर बरस रही है..वे ही अपना पात्र उल्टा करके बैठे रहते हैं. देह को ही सब कुछ मानकर उस अनुपम खजाने से वंचित रह जाते हैं. परम ही चारों ओर खेल कर रहा है. उनका मन एक रोबोट की नाईं है, बटन दबाया और उसका काम शुरू हो जाता है. वे खुद तो सोये रहते हैं तो जीवन का हाल तो बेहाल होना ही है...सद्गुरू के बिना कौन बतायेगा यह सब ? आज विश्व संगीत दिवस है.     

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