Wednesday, August 3, 2016

भीगा भीगा मौसम


आज सुबह क्रिया के दौरान तथा बाद में ध्यान में भी सद्गुरु की कृपा का अनुभव हुआ, भीतर उस चैतन्य शक्ति का अनुभव हुआ और उनकी उपस्थिति इतने स्पष्ट तौर से महसूस की कुछ पलों के लिए ! कितना अद्भुत है यह आत्मा का ज्ञान ! आज का दिन उसके लिए (भाषा के कारण कहना पड़ता है वरना एक ‘लहर’ के लिए, ‘आत्मा’ के लिए) बहुत खास हो गया है. शब्द छोटे पड़ते हैं उन भावों को व्यक्त करने के लिए, वह अकारण दयालु है, सुहृद है..हितैषी है, करुणा का सागर है..आज ये सारे शब्द अनुभव में आये हैं. एक-एक कर वह उसकी कमजोरियों से मुक्त करा रहे हैं. उसका ध्यान कक्ष जैसे उनका आश्रम ही बन गया है. वहाँ योग शिक्षिका ने कोर्स कराया, उस दिन सद्गुरु वहाँ अवश्य उपस्थित रहे होंगे. कितने सरल ढंग से कितनी गूढ़ बातें वह उन्हें सिखा देते हैं, कहते हैं वे यूज़फुल बनें, मस्ती और ज्ञान में डूबे हुए, छोटे बच्चे की तरह निर्दोष ! वे कितने बेहोश जीते चले जाते हैं, कंकरों, पत्थरों को सम्भालते हैं और हीरे गंवा देते हैं ! परमात्मा की कृपा अनंत है, वह महान हैं और इतने भोले भी कि सभी को अपने जैसा ही मानते हैं, वह उन्हें उनकी सारी कमियों के साथ अपना लेते हैं.


दोपहर के दो बजे हैं, मौसम सुहावना बना है, अभी –अभी आइसलैंड के राष्ट्रपति का भाषण सुना कि जो ज्वालामुखी अभी फटा है उससे बड़ा फटने को है. पिछले कई दिनों से यूरोप में हवाई उड़ानें बंद हैं. कुछ देर पहले एक सखी से बात हुई, उसकी बिटिया कुछ ही दिनों में घर लौट आएगी. जून ऑफिस में हैं, माँ-पिताजी सो रहे हैं. तीन दिन बाद माली आया है, गुलाब के पौधों की कुड़ाई कर रहा है. उससे कुछ बात करने का सहज ही मन नहीं हो रहा. मौसम अभी भी भीगा-भीगा सा है. जून का स्वास्थ्य अभी भी ठीक नहीं है, आज दोपहर उन्होंने कहा कि प्रेम की कमी भी कारण हो सकती है...जो स्वयं प्रेम हो वह दूसरों से प्रेम मांगे, अजीब लगता है पर जिसने अभी यह नहीं जाना कि वह प्रेम है वह तो ऐसा ही कहेगा.. उसे भी अपना अतीत नहीं भूलना चाहिए, जून की ज्यादा देखभाल करनी होगी, उसके खोये विश्वास को पुनः जगाना होगा. वह जिसमें जीते ऐसे खेल उसके साथ खेलने होंगे, उपदेश से कुछ भी नहीं होने वाला है. जब उसे स्वयं के लिए अब कुछ भी करना नहीं है, कुछ भी पाना नहीं है तो उसकी हर श्वास अब जून के लिए ही होनी चाहिए..उसके प्रेम में पड़ना होगा  जैसे पहले उन दिनों में थी..उसके भीतर भी तो वही परमात्मा है..परमात्मा भी केवल प्रेम चाहता है और जून भी केवल प्रेम ही चाहते हैं, ढेर सारा प्रेम..और वह सिवाय प्रेम के कुछ रह ही नहीं गयी है..अनंत प्रेम से ही वह बनी है..जीवन कितना सुंदर है यहाँ कुछ भी खोने को नहीं है केवल पाना ही पाना है अनंत प्रेम, आनन्द और शांति..फिर वही देते जाना है..अस्तित्त्व को..लोगों को..प्रकृति को..और जून को..उसके होना तभी सार्थक होगा जब जून भी पूर्णस्वस्थ हों..पूर्णतृप्त हों..पूर्णमुक्त हों..और..पूर्ण प्रसन्न हों..अब उसे उन्हीं के लिए जीना है. स्वार्थ समाप्त हुआ क्योंकि वहाँ कोई है ही नहीं. वहाँ  जो है वह देने वाला है..लेकिन एक्टिंग भी करनी पड़ेगी लेने वाले की..अभिनय भी करना होगा जैसे भक्त और भगवान करते हैं..एक होकर भी दो का अभिनय करते हैं ! जून अवश्य ही ठीक हो जायेंगे..उसने स्वयं से वादा किया. 


2 comments:

  1. कभी ऐसी ही आत्मानुभूति के पल में मेरे लिये भी शान्ति की याचना कोई करता तो कैसा होता... भागदौड भरे जीवन ने मेरा समय भी मुझसे छीन लिया है.
    जून के स्वास्थय लाभ की कामना!

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  2. आपको पता नहीं है पर हर पल कोई आपकी खबर रखता है, हर पल वह आपके साथ है, उसके लिए आप उससे अलग नहीं हैं..यह भरोसा ही तो भक्त का संबल है. आपका समय कोई आपसे छीन नहीं सकता, हर क्षण आप अपने भीतर रह सकते हैं, रहते ही हैं, पता नहीं है, यात्रा के दौरान अथवा जब भी समय मिले श्वासों पर ध्यान केन्द्रित करें, उस तक पहुंचने का सबसे सुगम मार्ग हमारी श्वासें हैं, और हम एक क्षण भी श्वासों के बिना नहीं हैं.. आभार !

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