Friday, March 13, 2015

बारिश और छाता


कबिरा इस जग में आय के अनेक बनाये मीत
जिन बाँधी एक संग प्रीत वही रहा निश्चिंत !

उस एक से जब लौ लग जाती है तो जीवन फूल सा हल्का हो जाता है, कोई रूई के फाहों की तरह गगन में उड़ने लगता है. वह एक इतना प्यारा है, इतना अपना कि दिल भर जाता है उसकी याद में. वह हर पल मित्र की तरह साथ रहता है, कुशल-क्षेम को वहन करता है. उसकी कृपा असीम है, अपार है, उस पर किसी का जितना अधिकार है उतना संसार की किसी भी वस्तु पर नहीं. उसकी सारी बातें ही निराली हैं, उसका बखान करना जितना कठिन है उतना ही आसान भी ! एक शब्द में कहें तो प्रेम वही तो है, सभी में उसका ही प्रकाश है. सद्गुरु की आँखों में उसकी ही तो चमक है, उनकी मुस्कान में उसका ही रहस्य झलकता है, उनके हृदय की गहराई में एकमात्र वही बसता है. उस अशब्द परमात्मा को शब्दों से नहीं जाना जा सकता. वह मौन है उसे मौन में ही ढूँढना होगा. कोई जितना-जितना अपने आस-पास की ध्वनियों के प्रति सजग होता जाता हैं उतना-उतना ही उसे मौन का भी आभास होता है. दो ध्वनियों के बीच का मौन और वह बेहद प्रभावशाली होता है, शब्दों से कहीं ज्यादा, उस मौन में उसे अपने होने का अहसास तीव्रता से होता है. अपने वास्तविक शून्य रूप का ! वही उन्हें पहुंचना है, जहाँ न राग है न द्वेष, न संयोग हैं न वियोग, न अच्छा न बुरा ! उस अद्भुत लोक में प्रवेश करने के लिए जीवन में साधना की आवश्यकता है. ध्यान का अर्थ है कोई अपने को जो आज तक मानता आया है उससे अलग सच्चे स्वरूप को जानना. ईश्वर को जानना हो तो अपने आप को जानना होगा.

आज सुबह ध्यान में नवीन अनुभव हुआ, जैसे वह एक गहरी सुरंग में उतरती जा रही है, फिर कुछ शब्द सुने जो अप्रिय थे. एक बार विपासना में सुना था आत्म मंथन के समय सभी तरह के अनुभव होंगे लेकिन यह याद रखना है जो उत्पन्न होता है वह नष्ट हो जाता है. यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है अत किसी भी अच्छी या बुरी संवेदना को महत्व नहीं देना है. मन को समत्व भाव में स्थिर रखना है. आज सुबह संगीत की कक्षा हुई. दोपहर को एक हास्य फिल्म देखी. अख़बार पढ़ा. नन्हा अभी तक कोचिंग से आया नहीं है, वर्षा हो रही है उसके पास छाता तक नहीं है. परसों शाम वह डांट खाने के कारण बहुत नाराजगी व्यक्त कर रहा था पर कल दोपहर उतनी ही ख़ुशी व्यक्त कर रहा था. हर रात के बाद सवेरा आता है, हर दुःख के बाद सुख. पिछले हफ्ते छोटी बहन का फोन सुनकर उसने उसे व्यर्थ ही सुझाव दिए. अस्वस्थ होना तो कोई भी नहीं चाहता पर अगर कोई किसी कारणवश हो भी जाता है तो दुखी होने का कारण नहीं है. “जो पहले नहीं था वह बाद में भी नहीं रहेगा” और वे मात्र शरीर तो नहीं हैं जो थोड़ी सी परेशानी से ही व्यथित हो जाएँ, भविष्य में ध्यान रखेगी. उन्हें अपनी आत्मिक शक्ति पर भरोसा रखना है. रोग तो शरीर के साथ लगे ही रहते हैं. बड़े-बड़े ऋषि, मुनि, संत यही तो कहते आए हैं कि जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा और रोग ये चार व्याधियाँ ऐसी हैं जिनका भाजन हरेक को बनना है. इनसे कोई जीवात्मा बच नहीं सकता. आत्मा जो परमात्मा का ही अंश है अपनी जीने की इच्छा के कारण ही देह धारण करता है और फिर इन चारों के चक्रव्यूह में फंस जाता है. माया का बंधन काट दें तो इन चारों का अस्तित्त्व नहीं रहता ! 


आज तीन महीनों की छुट्टियों के बाद नन्हा स्कूल गया है. उसका हृदय उसके लिए शुभाशीष और शुभकामनाओं से युक्त है. जैसे आज तक वह अपनी पढ़ाई में सफल रहा है वैसे ही आगे भी रहेगा. आज सुबह वे तीनों सुबह चार बजे उठे. वह समय से पहले ही तैयार हो गया था. जून और उसने सुबह साधना भी की. ईश्वर के सम्मुख होकर यदि वे अपने दिन का आरम्भ करें तो दिन भर मन सात्विक भावों से पूर्ण रहता है. कृष्ण उनके अंतर में ज्ञान का दीपक जलाकर स्वयंमेव तम को मिटने का संकल्प करते हैं. कल इस का अनुभव हुआ, गीता का एक श्लोक उसे अपने आप याद आया और मन में विचारों की एक अनवरत श्रृंखला.. जो एक भाव को ही पोषित कर रही थी, प्रवाहित होने लगी, जैसे तेल की धार. उसे विश्वास है कि एक दिन एक ऐसा क्षण इसी जन्म में आयेगा जब उसके मन में ऐसा ठहराव आयेगा जिसके बाद और दौड़ नहीं करनी होगी. जब मन ध्यान में टिकाना नहीं पड़ेगा बल्कि टिका रहेगा. अभी उस लक्ष्य से दूर है, पर कृष्ण उसके साथ हैं. अंतर में उसी का उजाला, बुद्धि में उसी का प्रकाश और आत्मा में उसी का प्रेम...वह प्रिय से भी प्रिय उसके मन पर अपना पूर्ण अधिकार कर चुका है ! वही उसे मुक्त करता है इस जग से !

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