Friday, February 27, 2015

श्यामा तुलसी


कल शाम को जून नन्हे से नाराज थे, नूना ने कहा प्यार से समझाना चाहिए पर जो प्यार की भाषा ही न समझे उसे समझाने का कोई दूसरा तरीका खोजना ही पड़ेगा. अभी भोजन नहीं बनाया है और किचन में गैस लीक को ठीक करने कारीगर आ गये हैं. उसे एक सखी के यहाँ जाना था, जून भी आज फ़ील्ड गये हैं, पर अब सम्भव नहीं लगता.

अप्रैल का अंतिम दिन, सुबह वे वक्त से उठे, ‘क्रिया’ की. जून दफ्तर जा रहे थे कि खुले जाली वाले गेट से पूसी अंदर आ गयी, उन्हें बुरा लगा होगा क्योंकि दफ्तर जाकर उन्होंने फोन पर कहा. पिछले दिनों नन्हे के जवाब देने के कारण और फोन पर देर-देर तक बात करने के कारण वह परेशान थे ही. परिवार में आपसी सद्भाव, प्रेम व सौहार्द के साथ-साथ अनुशासन भी बहुत जरूरी है, अन्यथा सभी सदस्य अपनी मनमानी करके अपनी-अपनी राह चलने लगते हैं. रही पूसी व उसके तीन बच्चों की बात तो उन्हें कुछ सोचना होगा. उनका फोन खराब है सो छोटी ननद से बात नहीं हो पायी, उसे art of living कोर्स किये दो दिन हो गये हैं, यकीनन खुश होगी. पार्लियामेंट में आज गुजरात मुद्दे पर १८४ के अंतर्गत बहस जरी है, सरकार तो बच ही जाएगी लेकिन गुजरात कब बचेगा इसकी किसी को चिंता नहीं है. जब तक वहाँ के निवासियों को सद्बुद्धि नहीं आएगी हिंसा का दौर चलता ही रहेगा. कल शाम वे क्लब एक फिल्म देखने गये अभिनेत्री के आते ही उठ गये बहुत ही भद्दे वस्त्र पहने थी और आवाज भी भद्दी निकाल रही थी. आज क्लब में अशोका फिल्म है शायद ठीक लगे. सुबह गुरुमाँ को सुना स्वयं को खोजना ही अध्यात्म है. ध्यान में भी एक विचार गहरे विचरता है कि ध्यान चल रहा है, पर कर्ताभाव से मुक्त हुए बिना ‘उसकी’ झलक नहीं मिलती. कल रात लेकिन देह का ठोसपना गायब होता लगा, तरंगों का अनुभव हुआ.   

मई महीने का आरम्भ हो चका है. कल दिन भर वर्षा होती रही पर अज धूप निकली है. स्टोर की सफाई (मासिक) करवायी और बाएं तरफ की पड़ोसिन के यहाँ से लाकर काली तुलसी का एक पौधा लगाया. नन्हा वहाँ पूसी के बच्चों को छोड़ने गया था, पर वह उनमें से दो को वापस ले आयी है, तीसरे का पता नहीं. जून ने कहा है अब पूसी वहाँ नहीं रह सकती.

आज उसका मन अद्भुत शांति से परिपूर्ण है, बाबाजी ने ध्यान की विधि इतने सरल शब्दों में बताई जो दिल को छू गयी. वह उनके सच्चे हितैषी हैं जो उत्थान की बात करते हैं, किस तरह वे अपने मन को ईश्वर की ओर लगायें, सुख और शांति उनके सहज मित्र हो जाएँ, ज्ञान, प्रेम और आनंद स्वरूप अपने मूल को वे खोज सकें और उसमें स्थित रह सकें. उन्नत विचार, उन्नत भाव मानव को सहज बनाते हैं. आदर्शों को सामने रखते हुए, मन, वचन, काया से सद्कर्म करने हैं, तभी वे सुखी होंगे.



Wednesday, February 25, 2015

हरमंदिर का कीर्तन


मैं कौन हूँ ? इसका ज्ञान हो जाये तो सारे संशय मिट जायेंगे. वे जो नहीं हैं, स्वयं को मानते हैं अपने वास्तविक स्वरूप को भूले हुए हैं, इसलिए ही सुख-दुःख के झूले में झूलना पड़ता है. मन को मनमानी करने के लिए छोड़ दें तो भीतर से आनंद की धारा सूखने में देर नहीं लगेगी. माया बहुत दुस्तर है, कृष्ण की शरण में गये बिना इससे छुटकारा नहीं. आज बाबाजी ने गुरू नानक की कथा सुनाई, कैसे उन्हें ज्ञान हुआ और कैसे उन्होंने अपने अनुभव  को ‘जपुजी’ में प्रकट किया.

दोपहर के पौने तीन बजे हैं, चारों ओर एक सन्नाटा पसरा हुआ है. सभी अपने घरों में बंद गर्मी की दोपहर का लुत्फ़ ले रहे होंगे. मौसम इतना गर्म तो नहीं कि सड़क पर निकला भी न जा सके. आज से बीहू का अवकाश आरम्भ हो गया है. अब चार दिन बाद स्कुल व दफ्तर खुलेंगे. स्थानीय स्कूलों में तो शायद और भी लम्बी छुट्टी होगी. आज बैसाखी भी है, सुबह ‘हरमंदिर साहब’ से शब्द कीर्तन सुना. उस दिन गुरुमाँ ने हरमंदिर साहब की नींव किसी मुस्लिम पीर से रखवाये जाने की बात कही थी, संत-महात्मा जानते हैं कि असल में सभी धर्म एक ही हैं सिर्फ ऊपरी सजावट अलग-अलग है. नन्हा गणित पढ़ रहा है जून अख़बार पढ़ रहे हैं. उसे अपने लिए कोई सार्थक कार्य तय करना है, जून के लेख water water everywhere... का हिंदी में अनुवाद या कादम्बिनी के नये अंक को पढ़ना, पत्रों के जवाब या सिलाई का पेंडिग काम. आज सुबह एक परिचिता का फोन आया, अगले मंगलवार को उनके स्कूल ला सिल्वर जुबली कार्यक्रम है, जिसमें हिंदी कविता पाठ के लिए एक निर्णायक की भूमिका उसे नभानी है.

आज शाम को उन्हें एक सहभोज में जाना है, साथ-साथ खाने से अवश्य ही आत्मीयता बढ़ती होगी. आज भी रूटीन लगभग रोज का रहा, छुट्टी के बावजूद जून कुछ देर के लिए दफ्तर गये हैं, कर्मयोगी बन रहे हैं, प्रमादी नहीं, यह अच्छा लक्षण है. इतनी सुविधाजनक जिन्दगी उन्हें मिली है कि इसमें विशेष अवकाश की आवश्यकता नहीं है. नन्हा नाश्ता कर रहा है टीवी के सामने बैठकर. कल शाम असमिया सखी परिवार सहित आयी, उसकी सास भी आयीं थीं, जो काफी शांत और सौम्य लगीं, सडसठ वर्ष की उमर में भी चेहरे पर ओज व चमक थी.

आज सुबह दीदी का फोन आया, पिताजी उनके पास गये हैं, आँखों के डाक्टर को दिखाया है, उसने इलाज भी शुरू कर दिया है. आज बीहू की छुट्टियों के बाद दफ्तर खुला है. नन्हे की लम्बी छुट्टियाँ हैं, कोचिंग क्लास हफ्ते में मात्र तीन दिन है, उसे कुछ सिखाना बहुत मुश्किल है, अपनी जिद पर अड़ा रहता है शायद इस उमर में सभी बच्चे ऐसे होते हैं.

लगता है तमस के दिन जा रहे हैं और नवप्रकाश का उदय हो रहा है. सद्गुरु ने मीठी फटकर लगते हुए समझाया कि साधक स्वयं पीठ किये रहता है प्रभु से और उम्मीद करता है कि उससे मिलन होगा और जब कभी उसकी ओर नजर कर भी ली तो इतना अहम भीतर भर लेता है कि फिर दूर हो जाता है. मन की चाह उसे खोखला कर देती है यदि समता भाव में रहे तो ईश्वर से सम्बन्ध स्वतः स्फूर्त है. जब मन कृतज्ञता से भरना भूल जाये और शिकायतों का अम्बार लेकर बैठा रहे तो प्रेम कैसे टिकेगा. अपने भीतर ओढ़ी हुई कल्पनाओं और विचारों का इतना कूड़ा-करकट एकत्र कर लेता है कि आनंद का जो स्रोत भीतर था वह ढक जाता है. एक एक करके इन सारी परतों को हटाते जाना है, बिलकुल खाली हो जाना है. इसी का नाम भक्ति है !

नैया पड़ी मझदार, गुरू बिन कैसे लागे पार, हरि बिन कैसे लागे पार ! कबीर ने उनकी तरफ से ही तो कहा था उस क्षण जब उनके गुरू उनसे रुष्ट हो गये थे. ‘चिन्तन ही मानव को पशु से भिन्न करता है’, अभी-अभी गुरुमाँ ने यह वाक्य कहा. यूँ तो इन्सान भी सामाजिक प्राणी कहा जाता है, पर वह अपनी भूलों को सुधार सकता है, स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ते हुए वह पूर्णता को प्राप्त कर सकता है.  आज सतोगुण का उदय हुआ है. सुबह ध्यान में मन टिका. कल रात को महाभारत पढ़कर सोयी थी. अथाह ज्ञान का सागर है महाभारत. आज शाम को एक कार्यक्रम में उसे कविता पाठ करना है, ईश्वर उसके साथ हैं !


Saturday, February 7, 2015

स्वेटर्स की धुलाई


कल शाम वह पहली बार aol के सत्संग में गयी. ॐ के उच्चारण से आरम्भ हुआ और फिर एक के बाद एक कई भजन गए गये. कृष्ण, राम, शिव और गणेश के नामों का उच्चारण संगीत के साथ श्रद्धापूर्वक किया गया. प्रसाद बंटा फिर एक महिला ने अपने अनुभव सुनाये. तेजपुर से इटानगर तक उनकी कार में गुरूजी ने सफर किया उनसे बातें की, पूरा परिवार बेहद उत्साहित व प्रसन्न था मानों उन्हें गुरू रूप में अमूल्य निधि मिल गयी हो. गुरू की महिमा ऐसी ही होती है. वापस लौटने में उसे देर हो गयी, पौने आठ बज गये जबकि चर्चा अभी जारी थी, जून को लेने भी जाना पड़ा और उन्हें इतनी देर होना भी नहीं भाया. खैर...भविष्य में क्या होगा भविष्य ही बतायेगा. रात को देर तक गुरूजी के बारे में सोचती रही. मन में कई विचार आ जा रहे थे, सब कुछ जैसे अस्पष्ट सा हो गया था. दो नावों पर पैर रखने वाले की स्थिति सम्भवतः ऐसी ही होती है. उसे अपना मार्ग स्वयं ही खोजना होगा. उपासना की भिन्न-भिन्न विधियों के जाल में स्वयं को उलझाना ठीक नहीं है. कृष्ण को अपने जीवन का आधार मानकर उससे ही ज्ञान पाना होगा. इस बार ‘महाभारत’ भी वे लाये हैं. स्टेशन पर ही मिल गया. अभी आरम्भ से पढ़ना शुरू नहीं किया है. कल द्वितीय खंड की भूमिका पढ़ी. सफाई का कार्य अभी चल रहा है, दो-एक दिन और चलेगा.

आज ‘जागरण’ में ध्यान की विधि सिखा रहे थे. सुंदर वचनों से हृदय प्रफ्फुलित हो उठा. कुछ देर संगीत अभ्यास किया फिर एक परिचिता आयीं अपने तीन-चार वर्ष के पुत्र को लेकर. जाते समय वह नन्हे के तीन-चार खिलौने लेता गया जो उसकी आदत है. अगले दिन माँ सबको वापस भिजवाती हैं. पुत्र मोह इन्सान से क्या-क्या करवाता है. आज नन्हा वाशिंग मशीन में स्वेटर धोने का कार्य कर रहा है. सभी स्वेटर धोकर अगली सर्दियों तक सहेज कर रखने होंगे. कल कुछ वस्त्र मृणाल ज्योति में देने के लिए निकाले, सोमवार को एक अन्य महिला के साथ वह वहाँ जाएगी. एक अन्य परिचिता का फोन आया, मुख्य अधिकारी की विदाई के लिए उन्हें दो कविताएँ चाहियें.


आज सुबह पौने पांच बजे उठी. जून ने मच्छरों के कारण नेट के अंदर ही क्रिया करने की तैयारी कर रखी थी जब वह ब्रश आदि करके कमरे में आयी. कल पहली बार एसी भी चलाया, गर्मी एकाएक बढ़ गयी थी. आज फिर बादल छा गये हैं. सुबह घर में सभी से बात हुई, पिताजी काफी ठीक लगे. छोटी बहन मेजर बनने वाली है मई में, उसे बधाई देनी है. गुरू माँ ने कहा, जिसके हृदय में प्रेम नहीं वह धार्मिक नहीं हो सकता, दिल में प्रेम हो, सरलता, सहजता हो, विश्वास हो तो ईश्वर की तरफ चलने के पात्र बन सकते हैं वे. ईश्वर जो उनके भीतर है उन्हें उनसे भी ज्यादा अच्छी तरह जानता है. उसे बाह्य आडम्बरों से कुछ भी लेना-देना नहीं है, वह तो मन, बुद्धि का साक्षी है. वे कितने भले हैं अथवा कितना ढोंग क्र रहे हैं, उसे सब पता है इसलिए उसके सम्मुख कोई दुराव नहीं चल सकता. खुले मन से उसे पुकारना है, खुली आँखों से उसे निहारना है. जिस मन में कोई छल न हो, जिन आँखों में कोई भ्रम न हो..  

Friday, February 6, 2015

मरुथल या मधुबन


ईश्वर का भक्त किसी से द्वेष नहीं करता, वह दयालु होता है. मिथ्या अहंकार से मुक्त रहना, समता भाव में रहना, हर घटना को ईश्वर का प्रसाद मानना भी भक्त के लक्षण हैं. आज ‘आत्मा’ में कृष्ण द्वारा बताये गये भक्त के गुणों का वर्णन हो रहा है. कल सुबह मेहमानों के लिए भोजन बनाने में थोडा वक्त लग गया, व्यायाम नहीं हो पाया, दिन भर यह बात याद आती रही, आज भी दस बजे दो परिचित महिलाएं आयंगी, सो समय कम पड़ेगा पर किसी तरह आवश्यक कार्य पूजा, स्वाध्याय, योगासन आदि अवश्य करने होंगे. वास्तव में वह आत्मा है, यह शरीर उसका वस्त्र है, जो समय के साथ नष्ट होने वाला है, इसको स्वस्थ रखना जरूरी है न कि इसके आराम का ख्याल रखते-रखते अपने वास्तविक स्वरूप को ही भूल जाये. जिसके अज्ञान से जगत कलह का कारण बनता है, ज्ञान में स्थित हुए के लिए यह जग कृष्ण का मधुबन बन जाता है. कृष्ण उसके साथ हैं, हर क्षण वह निर्देशन देते हैं, जिसे आत्मभाव में स्थित होकर ही कोई सुन सकता है. विपरीत परिस्थितियाँ तो आएँगी ही पर एक वृक्ष की भांति बहार और पतझड़ दोनों को समभाव से सहना होगा. उनके पास इतना सामर्थ्य नहीं है कि अपनी सभी इच्छाओं को पूरा कर सके पर आत्मतुष्ट व्यक्ति की सभी इच्छाएँ जैसे अपने आप पूर्ण होती रहती हैं क्योंकि जो पूरी नहीं हुईं उसे वे अपने लिए अनावश्यक मानते हैं !

आज कितने सुंदर वचन उसने सुने, ईश्वर के प्रति प्रेम जिसके हृदय में नहीं है, वह शुष्क मरुथल के समान है, जहाँ झाड़-झंकाड़ के सिवा कुछ भी नहीं उगता, जहाँ मीठे जल के स्रोत नहीं हैं, जहाँ तपती हुई बालू है. जिसपर दो कदम भी चलना कठिन है, जो मरुथल स्वयं भी तपता है और अन्यों को भी तपाता है. जिस हृदय में भगवद् प्रेम हो वही आनंद का स्रोत है !

आज लगभग तीन हफ्तों के बाद नूना ने अपनी चिर-परिचित डायरी खोली है. उस दिन वे यात्रा पर निकले थे और कल वापस आये. बीच में तीन-चार पर किसी कापी में लिखने का समय निकाला, अन्यथा तो सांसारिक कार्यों में इतना उलझे रहे कि सुबह सवेरे गीतापाठ के अलावा प्रभु का ध्यान कम ही रहा, लेकिन बनारस के एक आश्रम से कुछ पुस्तकें खरीदीं जिन्हें पढ़ने से मन ठिकाने पर रहा. आज सुबह ‘जागरण’ सुना, साथ-साथ कार्य भी चल रहा था. जीवन क्षण भंगुर है मृत्यु किसी भी समय आ सकती है, मिले हुए समय का और मिली हुई सांसों का सदुपयोग करें तभी वास्तविक कल्याण होगा. न जाने कितने जन्म वे ले चुके हैं और कितने अभी लेने शेष हैं. मन में इच्छाओं का स्फुरण यदि इसी प्रकार होता रहा तो अनेकानेक जन्म उन कामनाओं की पूर्ति के लिए लेने होंगे अतः निष्काम होना है और भक्ति उसके लिए सरल उपाय है, भक्ति साध्य भी है और साधन भी. अहैतुकी भक्ति जिसका लक्ष्य केवल भगवद् प्राप्ति हो. ध्यान में प्रतिदिन एक घंटा बैठे तो भक्ति दृढ़ होगी. ध्यान, अध्ययन, लेखन, चिन्तन, मनन आदि में चौबीस घंटो में से चार घंटे तो लगाने ही चाहियें. तभी देह रूपी पिंजरे में स्थित आत्मा रूपी पक्षी संतुष्ट रहेगा और उसकी संतुष्टि उन्हें वास्तविक आनंद की ओर ले जाएगी !



Thursday, February 5, 2015

आम के बौर की गंध


आज सुबह कराची वाले संत से ये सुंदर वचन सुने, “जैसे वे अपना कीमती सामान सुरक्षित रखते हैं वैसे ही अपना मन तथा बुद्धि कृष्ण के भीतर सुरक्षित रख के निश्चिन्त हो जाना चाहिए. अन्यथा मन के चोर उसे ले जायेंगे  अथवा मन अपनी चंचलता के कारण ही भटक जायेगा, खो जायेगा ! मन जब कोई संकल्प करता है तो बुद्धि उसके पक्ष या विपक्ष में निर्णय लेती है. इन्द्रिय रूपी अश्व और मन रूपी लगाम यदि ईश्वर को समर्पित बुद्धि के हाथ में हो जीवन सही मार्ग पर आगे बढ़ेगा !” इस समय पौने दस बजे हैं, साढ़े आठ बजे तक जब तक जागरण सुना और उसके बाद कुछ देर तक तो उसका सुमिरन चलता रहा, फिर व्यायाम, भोजन, दो सखियों से फोन पर बाते करने में विस्मृत हो गया, लेकिन अब पुनः उसी का स्मरण हो आया है. पड़ोसिन की तबियत ठीक नहीं है, उसे दिल की बीमारी है जो कभी-कभी बढ़ जाती है, उससे मिलने जाना है.

भक्ति का अभ्यास करना होता है इसे ही अभ्यास योग या साधना कहते हैं. कृष्ण उन्हें आश्वासन देते हैं कि यदि उनकी ओर जाने का लगाता प्रयास करते हैं तो एक न एक दिन अवश्य सफल होंगे ! भगवद गीता में कृष्ण कई अध्यायों में भक्तियोग पर चर्चा करते हैं पर बारहवें अध्याय में वह स्पष्ट आमन्त्रण देते हैं. आज अभी कुछ देर पूर्व छोटे भाई का फोन आया उसे उनकी भेजी पुस्तकें मिल गयी हैं. ईश्वर हर क्षण उनके साथ है ! कल शाम उसे इसका अभूतपूर्व अनुभव हुआ ! आज मौसम बेहद अच्छा है, ठंडी, सुहानी, शीतल हवा बह रही है जिसमें आम के बौर व फूलों की सुगंध है ! सुबह पांच बजे से कुछ पहले ही उठी, क्रिया की, मन थोडा उद्व्गिन था लेकिन हर पल उसे अपने मन के भाव का बोध रहता है सो कोई भी अनचाहा भाव टिकने नहीं पाता. कृष्ण की स्मृति उसे हटा देती है. आज वह पुरानी संगीत अध्यापिका के यहाँ भी जाएगी, उन्हें पुस्तक देनी है और उनके गोद लिए पुत्र से मिले भी बहुत दिन हो गये हैं. एक और परिचिता को फोन किया पर वह मिली नहीं, कल पता चला कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है. मन में संसार समाया है जहाँ केवल कृष्ण होने चाहिए. हो सकता है वही उसे प्रेरित कर रहे हों. आज कादम्बिनी की समस्यापूर्ति का हल भी पोस्ट किया है.

आज नन्हे की अंतिम परीक्षा है. सुबह से ही वह व्यस्त है. पांच बजे उठी, उसके पूर्व पौने चार बजे जी नींद खुल गयी थी. तिनसुकिया स्टेशन से जून के एक सहकर्मी का फोन आया था, उनकी ट्रेन तीन बजे ही पहुंच गयी थी पर कार तब तक नहीं पहुंची थी. जून की नींद रात को भी डिस्टर्ब रही, सो नन्हे को छोड़ने जाते समय उनके सर में दर्द था. उसका भी हाल कुछ ठीक नहीं रहा. बेवजह ही नैनी पर क्रोध किया, अपने भीतर का उठता क्रोध का आवेग बहुत अजीब लग रहा था, आश्चर्य भी हुआ कि यह था उसके भीतर, जो भीतर न हो वह महसूस कर भी कैसे सकते हैं, फिर कृष्ण के नाम का जप किया, कृष्ण हर संकट में उसकी रक्षा करते हैं. दो परिचितों के फोन आये, दोनों को नन्हे की किताब-कापियों में से कुछ चाहिए. आज सुबह भैया-भाभी, दीदी-जीजाजी से बात हुई, दीदी AOL का कोर्स नहीं कर पा रही हैं, खैर..उन्हें भविष्य में कभी पत्र लिखकर अपने मन की बात कहेगी. पिताजी के यहाँ आने की उम्मीद उसे अब भी है, मई या जून में सम्भवत वह यहाँ आयेंगे. आज ‘आत्मा’ में गीता का बारहवां अध्याय ही चल रहा था. कृष्ण उन्हें आकर्षित करते हैं पर संसार की ओर वे खिंचे चले जाते हैं, उनकी वृत्तियाँ बहिर्मुखी हैं. अन्तर्मुखी होकर कृष्ण को अनुभव करने का प्रयास भी नहीं करते, जबकि उसका आश्रय लिए बिना इस भवबंधन से मुक्ति पाना असम्भव है. उसका मन कृष्ण का आश्रय ले चुका है और अब इससे उसे कोई नहीं अलग कर सकता !
   
 



Wednesday, February 4, 2015

वेद की ऋचाएं


आज शिवरात्रि है. सुबह दीदी का फोन आया, परसों शाम वह श्री श्री रविशंकर जी के कार्यक्रम में गयीं और अगले हफ्ते AOL का कोर्स करने जा रही हैं. टीवी पर आत्मा आ रहा है जिसमें भक्तियोग की महत्ता पर बल दिया जा रहा है. अभी-अभी एक सखी से बात की, वह शिवरात्रि का व्रत रख रही है, श्री श्री के बारे में भी चर्चा हुई और भौतिक संसार की भी, जो उनके मनों में गहरा समाया हुआ है. कृष्ण को स्थापित करें तो कैसे करें, मन में इतना बड़ा ब्रह्मांड समाया है. जो इसका स्रोत है, जिस तत्व से सारे तत्व उत्पन्न हुए हैं उसी को स्थान नहीं है, यह एक विडम्बना ही तो है. कृष्ण आदि हैं, समस्त सृष्टि का कारण हैं. ज्ञान, प्रेम और आनंद का सागर हैं और वे भौतिक देह नहीं हैं, बल्कि आध्यात्मिक स्फुलिंग हैं जो परम सत्य का अंश हैं. पूर्ण का अंश होते हुए वे क्यों विखंडित जीवन व्यतीत करें, कृष्ण का आश्रय लेने पर ही वे शांति व संतोष का अनुभव करते हैं. ऐसा सुख जो शाश्वत है, जो बदली हुई परिस्थितियों के कारण प्रभावित नहीं होता. यह जगत स्वप्नवत है, क्षणिक है, देह के संबंध भी शाश्वत नहीं हैं. युगों युगों से तो वे संसार के गुलाम रहते आये हैं, यदि इस जन्म में भक्ति का उदय हुआ है तो उसे प्रश्रय देना होगा, आँधी, धूल से उसे बचाना होगा. कृष्ण से स्नेह करना होगा और वह तो हर पल उनसे स्नेह करता है !

भक्ति मार्ग सरल है, लेकिन भक्ति उसी के हृदय में पल्लवित होगी जो सरल हृदय का होगा. भगवद गीता में कृष्ण का वचन है कि निराकार की अपेक्षा साकार की पूजा करना शीघ्र प्रगति प्रदान करता है. अचिन्त्य, अव्यक्त, निराकार रूप की अपेक्षा मनमोहन का सुंदर, सुहावना रूप हृदय को शीघ्र एकाग्र करता है और व्यवहारिक भी है भक्ति मार्ग, इसमें कुछ छोड़ना नहीं पड़ता बल्कि ईश्वर को स्वयं से जोड़ना होता है और धीरे-धीरे भौतिक विषयों से मन अपने आप विरक्त होता जाता है. आज नन्हे की गणित की परीक्षा है, पिछले चार-पांच दिनों में उसने बहुत परिश्रम किया है. जो अवश्य रंग लायेगा. कल सुबह दीदी से पिताजी के स्वास्थ्य की बात की, उनकी आँखों का इलाज चल रहा है, उसने भी बात करनी चाही पर आज सुबह से ही फोन काम नहीं कर रहा है. कल भागवद में वेद की ॠचाओं द्वारा कृष्ण की स्तुति पढ़ी, जैसे सब कुछ स्पष्ट होने लगा, अब कोई संदेह नहीं रह गया है, सारे संशय मिट गये हैं. अध्यात्म जो कभी रहस्य प्रतीत होता था, अपने सारे सौन्दर्य के साथ उसके सम्मुख प्रकट हो उठा है. यह सभी सद्गुरु की कृपा से सम्भव हुआ है. उस दिन जो अनुभव हुआ था उसके बाद ही ज्ञान क्लिष्ट नहीं लगता है. भगवद गीता भी स्पष्ट हुई है पहले कई श्लोक बिना समझे ही पढ़ जाती थी, गुरू की कृपा महान है.

कल रात टीवी पर सद्गुरु को देखा, उनकी मुस्कुराहट मोहने वाली है और सहजता आकर्षक है. ज्ञान की बात वह सरल शब्दों में कहते हैं. “Intelligence with innocence is enlightenment. ‘I don’t know’ becomes beautiful when one starts knowing that he does not know everything or there is lot more to know.” वे जितना जानते हैं वह बहुत कम है इस बात का ज्ञान हो तो अहंकार नहीं होता, वे सहज होते हैं और मन सरल होने पर ही भक्ति को प्राप्त होता है. गुरूजी कहते हैं you are love and you should smile always what may come. AOL के सूत्र उन्हें सदा याद रखने चाहिए तो ही जीवन सुखमय और सरल रहेगा. नन्हे का गणित का पेपर ठीक हुआ है. अगले हफ्ते अंग्रेजी का अंतिम पेपर है और उसके अगले दिन उन्हें  यात्रा पर निकलना है. पिछले पन्द्रह-बीस मिनट से वह फोन पर बात कर रहा है. कल शाम बल्कि रात को कुछ देर उसने भागवत सुनी. गुरूजी का इंटरव्यू भी देखा. धीरे-धीरे उसे भी अध्यात्म का ज्ञान मिल रहा है. रोज सुबह कानों में ईश्वर की चर्चा पडती है और ईश्वर का नाम इतना प्रभावशाली है कि कोई भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता. उसकी भक्ति भी नैतिकता से शुरू हुई थी !


Tuesday, February 3, 2015

कृष्ण की लीलाएँ


आज नन्हे की हिंदी की परीक्षा है, नहाने गया है हर रोज की तरह बार-बार कहने पर, इन्सान अपनी प्रकृति का दास होता है. कृष्ण ने सच ही कहा है कि गुणों को गुण वर्तते हैं. लोग अपनी प्रकृति के अनुसार कर्म करते हैं और कर्म बंधन में पड़ जाते हैं क्योंकि यही कर्म उनके अगले जन्म के कारण बनते हैं फिर यह क्रम चलता ही रहता है, पर कभी तो इस पर रोक लगानी होगी. तीनों गुणों के पार पहुंचना होगा. कृष्ण की कृपा जिसपर हो वह गुणातीत हो जाता है. ईश्वर के शरणागति होने पर वह अभय प्रदान करते हैं. भागवद में कृष्ण की कथा पढ़कर मन प्रफ्फुलित हो उठता है. पूतना, अघासुर, बकासुर, तृणासुर, शकटासुर और नरकासुर कितने असुरों को वह खेल-खेल में ही परास्त करते हैं. भीतर के छह असुर काम, क्रोध, लोभ, मोह और मत्सर का भी नाश करते हैं और उच्च पदों पर ले जाते हैं, अद्भुत हैं कृष्ण और उनकी लीलाएं ! आज गुरुमाँ ने ध्यान की महत्ता पर बल दिया, लेकिन ध्यान का फल तो भक्ति ही है न, जब उसका मन कृष्ण का चिन्तन बिना ध्यान के भी करता रहता है तो क्या ध्यान की फिर भी आवश्यकता है. सम्भवतः है क्योंकि अभी भक्ति का पौधा कोमल है, उसे सहारा चाहिए, जैसाकि भागवद में कई जगह पढ़ा कि हृदय में भक्ति उदय होने पर भौतिक कार्यों से मन धीरे-धीरे अपने आप विरक्त होने लगता है, कुछ छोड़ना नहीं है बल्कि अपने आप छूटता जाता है !

कृष्ण उनके अन्तरंग हैं, वह उनके मन के उस कोने तक भी पहुँचे हुए हैं, जहाँ वे स्वयं भी नहीं गये हैं. उनसे संबंध आदिकाल से है, सदा से है, नित्य है और जो भी सुख-दुःख इस जग में होने वाले संबंधों से पाते हैं वे मात्र उसका प्रतिबिम्ब हैं. प्रतिबिम्बों से कोई कब तक मन बहला सकता है. सारे जप-तप नियम का उद्देश्य है मन की शुद्धि ताकि मन उस प्रियतम का दर्शन कर सके. मन समाहित हो सके, उस एक की शरण में जा सके जहाँ से वह आया है. मन चेतन है, सत् है, आनंद स्वरूप है, पर वे तो मन के इस रूप को नहीं पहचानते, जैसे कोई किसी महापुरुष के संपर्क में तो हो पर उसके गुणों से अनभिज्ञ हो तो उसे कोई अनुभूति नहीं होगी. परम सत्य को न जानने के कारण ही वे उससे दूर रहते हैं, अनजान रहते हैं जबकि वह अंशी इसकी जानकारी देना चाहता है. भागवद की कथा जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है उसका कृष्ण के प्रति प्रेम भी बढ़ रहा है, वह उसे अपने और निकट लगने लगा है. उसके प्रति सखाभाव दृढ़ होता जा रहा है. वह प्रेम स्वरूप है, वह माधुर्य की मंजुल मूर्ति है, वह अनोखा है, उससे प्रेम किये बिना कोई रह नहीं सकता. ब्रज की गोपियों के पास उसकी बांसुरी सुनके घर पर रुके रहने का कोई कारण नहीं था. कृष्ण केवल प्रेम और माधुर्य ही नहीं ज्ञान का अवतार भी हैं, वह योगेश्वर हैं, वह भक्ति मार्ग के साथ-साथ ज्ञान और कर्म योग की शिक्षा देते हैं. वह ज्ञान के अथाह स्रोत हैं. जब यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड उन्हीं की कृति है तो उनसे अलग कुछ हो भी कैसे सकता है और ऐसे कृष्ण उनके मनों में रहते हैं !

पिछले दो दिन कुछ नहीं लिख सकी, किसी दिन जब मन उर्वर होगा तो डायरी के ये खाली पेज भी पहले की भांति भर जायेंगे. आज ध्यान गहन नहीं हुआ, पता नहीं मन के किस कोने से एक संशय ने फन उठाया है, जिसे अभी कुचल देना चाहिए और इस मिथ्या भावना को पनपने का मौका नहीं देना चाहिए. आत्मभाव में स्थित रहकर ही वे अपनी बुद्धि पर लगे जंग को हटा सकते हैं.


   

Monday, February 2, 2015

रवीन्द्र जैन का संगीत


मार्च महीने का आरम्भ ! आज फूलों के बीज एकत्र किये, अगले वर्ष इन्हीं बीजों को अक्टूबर में बोया जायेगा और जनवरी-फरवरी में खिलकर फिर नये बीज...इसी तरह जीवन का क्रम भी चलता रहता है. आज सुबह वे जल्दी उठे, नन्हा भी, सुबह-सुबह क्रिया करके तन-मन दोनों खिल उठते हैं. सद्गुरु की उन पर बहुत बड़ी कृपा है. उसने भागवद् का नवम स्कन्ध पढ़ना शुरू कर दिया है, वामन भगवान की कथा बहुत मधुर है. सुबह गुरुमाँ ने बताया, जिस प्रकार स्वप्न में मन का ही विस्तार होता है, वैसे ही यह जगत ईश्वर के मन का विस्तार है, उसकी लीला है, उसकी माया है, इसे खेल समझ कर ही देखना चाहिए, स्वप्नवत् ही जानना चाहिए. तब यह जगत दुखों का घर नहीं लगता बल्कि क्रीड़ा स्थली लगता है. किसी ने पूछा कि जब वह कष्ट में होते हैं तब ईश्वर की आराधना नहीं हो पाती, उसका बखूबी उत्तर दिया, उनके मुखड़े पे एक अनोखा तेज दिखायी देता है. शायद उसकी दृष्टि ही बदल गयी है. ईश्वर से सम्बन्ध के बाद ही उनके भक्तों की मस्ती का रहस्य समझ में आता है. कृष्ण को अपने अंतर में देखने के बाद कोई भौतिक कष्ट उस तरह प्रभावित नहीं कर सकता, लेकिन उस रात सरदर्द के कारण वह कृष्ण से शिकायत तो कर रही थी. जीवन में सुख-दुःख, मान-अपमान तो तभी तक है जब तक द्वैत भाव बना है. जब कोई यह जान ले कि वह उसी परमात्मा का अंश है, जिसने अपनी चितवन मात्र इस सृष्टि की रचना कर दी है तो अपने सामर्थ्य पर गर्व होता है !

टीवी पर ‘हैलो डीडी’ आ रहा है, जिसमें गीतकार, संगीतकार रवीन्द्र जैन जी प्रश्नों के उत्तर दे रहे हैं. वह साधना के महत्व को बता रहे हैं, इन्होंने अनेक फिल्मों में गीत और संगीत दिया है. रामायण आदि कई धारावाहिकों में भी संगीत दिया है. यह अपना आदर्श रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को मानते हैं. बहुत दिनों बाद एक अच्छा कार्यक्रम देखने का मौका मिला है. उन्होंने कहा, “हम कॉमन रहें तो अपने आप अनकॉमन हो जाते हैं” ‘विश्वास अपने आपपर हो तो सफलता अवश्य मिलेगी’. उनकी आंखें नहीं हैं पर उनके मन की हजार आँखें हैं, वह इतने सुंदर गीत जो लिखते हैं, शेर लिखते हैं और सभी धर्मों को समान आदर देते हैं. चितचोर भी उन्हीं की फिल्म थी. कितने प्रभावशाली लोग फिल्म इंडस्ट्री में हैं तभी तो दशकों से इतना अच्छा गीत-संगीत देशवासियों को मिलता आ रहा है. अभी-अभी जून ने फोन किया दिगबोई से, नन्हा परीक्षा दे रहा होगा, यकीनन उसका एक्जाम अच्छा होगा. सुबह जून और नन्हे के जाने के बाद वह कुछ देर के लिए बाहर ही टहलती रही, एक सखी ने बहुत बार बुलाया था सो वहाँ चली गयी, चाय पिलाई उसने और अपने अस्त-व्यस्त घर व अस्त-व्यस्त जिन्दगी की दास्तान सुनाई, लौटी तो व्यायाम किया फिर टीवी ऑन किया और रवीन्द्र जैन जी से मुलाकात का मौका मिला जो सदा याद रहेगी. साढ़े ग्यारह हो चके हैं, टीवी पर गुजरात में हुई ताजा हिंसा के समाचार आ रहे हैं जो देखे नहीं जाते, लोगों की अक्ल पर पत्थर पड़ जाते हैं जो ऐसी हरकतों पर उतर आते हैं. कल भागवद का नवम स्कन्ध भी पढ़ लिया. कल बहुत दिनों बाद एक कविता लिखी !

आज सुबह सुबह जून ने हिंदी लाइब्रेरी से भागवद का दशम स्कन्ध तथा द्वादश स्कन्ध लेकर भिजवा दिया है. कल रात भर हुई वर्षा से मौसम ठंडा हो गया है और चारों दिशाएं भीगी-भीगी सी लग रही हैं. मन प्रभु प्रेम में आकंठ डूबा है, ऐसे में देहात्म बुद्धि का अपने आप क्षरण हो जाता है, सुख-दुःख आदि द्वन्द्व्दों से परे मन निर्विकल्प समाधि में स्थित रहता है ! आज बाबाजी ने गांधीजी के बारे में बताया और फिर वे रमन महर्षि के बाल्यकाल में देखे उस स्वप्न की बात बताने लगे जिसमें उन्होंने अपनी मृत्यी देखी थी. राजा जनक ने एक स्वप्न में देखा कि उनका राज्य छीन गया और वह भोजन के लिएय भटक रहे हैं. दोनों ने सोचा कि जो स्वप्न देख रहा था और जो जागृत अवस्था को देख रहा है वह कौन है और दोनों में से क्या सच था ? यह जिज्ञासा ही उन्हें आत्म साक्षात्कार तक ले गयी. ‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’ जितनी तीव्र यह जिज्ञासा किसी में होगी उतना शीघ्र उन्हें भगवद ज्ञान की प्राप्ति होगी लेकिन वे ईश्वर को याद करते हैं तो सुख की कामना के लिए, वे चाहते हैं उनका जीवन कष्टों से मुक्त रहे, वे ईश्वर को चाहते ही कहाँ हैं? वे तो सुख-सुविधाओं के आकांक्षी हैं फिर यदि ईश्वर उनसे दूर है तो इसमें क्या आश्चर्य है, लेकिन ईश्वर इतना दयालु है कि उनकी कृतघ्नता से वह अप्रसन्न नहीं होता, उनका साथ नहीं छोड़ता, हृदय में सदा विराजमान रहता है. आत्मा स्वयं को उनमें देखने के बजाय मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार में देखती है और सुख-दुःख का अनुभव करती है. जिस दिन वह मुड़ कर स्वयं को परमात्मा के दर्पण में देखती है तो सब कुछ बदल जता है ..  यह ज्ञान ही उन्हें मुक्त करता है !