Wednesday, February 25, 2015

हरमंदिर का कीर्तन


मैं कौन हूँ ? इसका ज्ञान हो जाये तो सारे संशय मिट जायेंगे. वे जो नहीं हैं, स्वयं को मानते हैं अपने वास्तविक स्वरूप को भूले हुए हैं, इसलिए ही सुख-दुःख के झूले में झूलना पड़ता है. मन को मनमानी करने के लिए छोड़ दें तो भीतर से आनंद की धारा सूखने में देर नहीं लगेगी. माया बहुत दुस्तर है, कृष्ण की शरण में गये बिना इससे छुटकारा नहीं. आज बाबाजी ने गुरू नानक की कथा सुनाई, कैसे उन्हें ज्ञान हुआ और कैसे उन्होंने अपने अनुभव  को ‘जपुजी’ में प्रकट किया.

दोपहर के पौने तीन बजे हैं, चारों ओर एक सन्नाटा पसरा हुआ है. सभी अपने घरों में बंद गर्मी की दोपहर का लुत्फ़ ले रहे होंगे. मौसम इतना गर्म तो नहीं कि सड़क पर निकला भी न जा सके. आज से बीहू का अवकाश आरम्भ हो गया है. अब चार दिन बाद स्कुल व दफ्तर खुलेंगे. स्थानीय स्कूलों में तो शायद और भी लम्बी छुट्टी होगी. आज बैसाखी भी है, सुबह ‘हरमंदिर साहब’ से शब्द कीर्तन सुना. उस दिन गुरुमाँ ने हरमंदिर साहब की नींव किसी मुस्लिम पीर से रखवाये जाने की बात कही थी, संत-महात्मा जानते हैं कि असल में सभी धर्म एक ही हैं सिर्फ ऊपरी सजावट अलग-अलग है. नन्हा गणित पढ़ रहा है जून अख़बार पढ़ रहे हैं. उसे अपने लिए कोई सार्थक कार्य तय करना है, जून के लेख water water everywhere... का हिंदी में अनुवाद या कादम्बिनी के नये अंक को पढ़ना, पत्रों के जवाब या सिलाई का पेंडिग काम. आज सुबह एक परिचिता का फोन आया, अगले मंगलवार को उनके स्कूल ला सिल्वर जुबली कार्यक्रम है, जिसमें हिंदी कविता पाठ के लिए एक निर्णायक की भूमिका उसे नभानी है.

आज शाम को उन्हें एक सहभोज में जाना है, साथ-साथ खाने से अवश्य ही आत्मीयता बढ़ती होगी. आज भी रूटीन लगभग रोज का रहा, छुट्टी के बावजूद जून कुछ देर के लिए दफ्तर गये हैं, कर्मयोगी बन रहे हैं, प्रमादी नहीं, यह अच्छा लक्षण है. इतनी सुविधाजनक जिन्दगी उन्हें मिली है कि इसमें विशेष अवकाश की आवश्यकता नहीं है. नन्हा नाश्ता कर रहा है टीवी के सामने बैठकर. कल शाम असमिया सखी परिवार सहित आयी, उसकी सास भी आयीं थीं, जो काफी शांत और सौम्य लगीं, सडसठ वर्ष की उमर में भी चेहरे पर ओज व चमक थी.

आज सुबह दीदी का फोन आया, पिताजी उनके पास गये हैं, आँखों के डाक्टर को दिखाया है, उसने इलाज भी शुरू कर दिया है. आज बीहू की छुट्टियों के बाद दफ्तर खुला है. नन्हे की लम्बी छुट्टियाँ हैं, कोचिंग क्लास हफ्ते में मात्र तीन दिन है, उसे कुछ सिखाना बहुत मुश्किल है, अपनी जिद पर अड़ा रहता है शायद इस उमर में सभी बच्चे ऐसे होते हैं.

लगता है तमस के दिन जा रहे हैं और नवप्रकाश का उदय हो रहा है. सद्गुरु ने मीठी फटकर लगते हुए समझाया कि साधक स्वयं पीठ किये रहता है प्रभु से और उम्मीद करता है कि उससे मिलन होगा और जब कभी उसकी ओर नजर कर भी ली तो इतना अहम भीतर भर लेता है कि फिर दूर हो जाता है. मन की चाह उसे खोखला कर देती है यदि समता भाव में रहे तो ईश्वर से सम्बन्ध स्वतः स्फूर्त है. जब मन कृतज्ञता से भरना भूल जाये और शिकायतों का अम्बार लेकर बैठा रहे तो प्रेम कैसे टिकेगा. अपने भीतर ओढ़ी हुई कल्पनाओं और विचारों का इतना कूड़ा-करकट एकत्र कर लेता है कि आनंद का जो स्रोत भीतर था वह ढक जाता है. एक एक करके इन सारी परतों को हटाते जाना है, बिलकुल खाली हो जाना है. इसी का नाम भक्ति है !

नैया पड़ी मझदार, गुरू बिन कैसे लागे पार, हरि बिन कैसे लागे पार ! कबीर ने उनकी तरफ से ही तो कहा था उस क्षण जब उनके गुरू उनसे रुष्ट हो गये थे. ‘चिन्तन ही मानव को पशु से भिन्न करता है’, अभी-अभी गुरुमाँ ने यह वाक्य कहा. यूँ तो इन्सान भी सामाजिक प्राणी कहा जाता है, पर वह अपनी भूलों को सुधार सकता है, स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ते हुए वह पूर्णता को प्राप्त कर सकता है.  आज सतोगुण का उदय हुआ है. सुबह ध्यान में मन टिका. कल रात को महाभारत पढ़कर सोयी थी. अथाह ज्ञान का सागर है महाभारत. आज शाम को एक कार्यक्रम में उसे कविता पाठ करना है, ईश्वर उसके साथ हैं !


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