Monday, November 25, 2013

दूब घास पर दो कदम


उगती हुई सुबह और डूबती हुई शाम दोनों मन, प्राण को ऊर्जा से भर देती हैं. सुबह गुलाबी सूरज का मुखड़ा सलेटी बादलों से झांकता नजर आया जब जून सुबह बस स्टैंड गये थे और अभी शाम को बगीचे में काम करने के बाद नन्हे का इंतजार करते हुए झूले पर बैठकर वह नीले आकाश में चमकते पीले चाँद को देख रही थी. ठंडी मंद हवा सहला रही थी और आसमान में चमकता पहला तारा जैसे कोई संदेश दे रहा था. आज बहुत दिनों बाद मिट्टी में काम किया, अच्छा लगा, यह अलग बात है कि खुरपी से काम शुरू करते ही हाथ में चोट लगा ली. माली ने कल से आना शुरू किया है, पहली बार दूब घास को मशीन से काटा, सर्दियों में सूख गयी है, दो तीन महीने बाद एकदम हरी हो जाएगी. आज सुबह ही सुबह छोटी बहन और छोटे भाई से बात की, बहन के यहाँ नया मेहमान आने वाला है और भाई का मकान बनना शुरू हो गया है. माँ-पिता दिल्ली में हैं. कल शाम क्लब में एक बच्चे के साथ, जिसका नाम पारिजात था, बाहर घास पर बैडमिंटन खेला, कोर्ट खाली नहीं था.

कुदरत में सुंदर रंग बिछे
अनगिन गंधों के खिले फूल
धरती पर अनुपम चित्र खिंचे
ह्रदयों में कैसे बिंधे शूल

सुमनों उर से उल्लास उड़ा 
तितली पंखों से चुरा उमंग
भ्रमरों के गुंजन को भर के
थिरका मन ज्यों जल में तरंग

कल ‘बंद’ था और आज नन्हे की स्कूल बस नहीं आई, जून कार से ले गये हैं. कल दिन भर बादल और सूरज आँख मिचौनी खेलते रहे, एक बार तो मूसलाधार वर्षा भी शुरू हो गयी, बंद सुबह ४ बजे से शाम के ७ बजे तक था, सो कहीं जा भी नहीं सकते थे. कुछ देर नन्हे को पढ़ाया, पहली बार इस मौसम में मेथी पुलाव बनाया. सुबह फोन पर कुछ सम्बन्धियों से बात की, एक का लहजा वही पुराना था, इन्सान यदि बदलने की कोशिश करे तभी तो बदलेगा न जैसे वह ब्रिटिश ऑफिसर  MRA ज्वाइन करने के बाद बदल गया था Mr Jordine. MRA के चार सिद्धांत भी अनुकरणीय हैं – Absolute Honesty, Absolute Purity, Absolute Unselfishness, Absolute Love कई बार इन्हें याद करके अपने को संयत किया किया पिछले दिनों उसने.

आज इस वक्त सुबह से पहला मौका है जब वह स्थिर महसूस कर रही है, कल दोपहर बाद से ही सिर भारी था, शायद यह किसी हारमोन की करामत है कि पता नहीं क्या है दिल खोया-खोया सा ही रहता है, किसी जगह टिक कर बैठता नहीं, रात को कुछ देर ध्यान में बैठी तो अच्छा लगा. कुछ देर पहले बाहर गयी तो देखा उनकी नैनी अपनी रजाई को बाहर धूप में रख रही थी, उसे देखकर बहुत आश्चर्य हुआ, रजाई के नाम पर कुछ थिगड़ों को जोड़ा हुआ था, उसने सोचा कि उन्हें नई रजाई बनवा कर देगी, कल बाजार जाकर धुनिया को कहकर आएगी. कल सोमवार है, उसका व्यस्ततम दिन.. पूरे हफ्ते का, उम्मीद है कल से सब ठीक हो जायेगा, जिसकी शुरुआत अभी से हो गयी है.

अभी तक स्वीपर नहीं आया है, घर गंदा पड़ा है... अब इस बात पर इतना परेशान होने की क्या जरूरत है, आदत सी बना ली है उसने परेशान होने की और रहने की भी, हर वक्त एक अह्सासे कमतरी का शिकार खुद को बनाये रखना कहाँ तक ठीक है, हर पल यह अहसास कि समय का, अपने दिमाग का सदुपयोग नहीं कर रही है, चाहिए तो यह कि जिस वक्त जो काम करे खुशी के अहसास के साथ, शायद हारमोनों का असर कम हो रहा है. खुदबखुद दिल हैरान परेशान हो जाता है और फिर खुदबखुद ही खुश होने के उपाय सुझाता है, मन का भी यह कैसा रंगीन अजीब करिश्मा है.  आचार्य गोयनका जी कहते हैं इसी मन को तो साधना है तभी धर्म जीवन में उतरेगा. धर्म को धारण करना है न कि उसकी पूजा करनी है. मन को विचारों से मुक्त करना है...किसी भी तरह के तुच्छ विचार को दिल में जगह नहीं देनी है. बीज यदि शुद्ध होगा तो फल स्वयंमेव अच्छा होगा. 

No comments:

Post a Comment