Friday, November 22, 2013

वसंत पंचमी


आज ‘सरस्वती पूजा’ है यानि वसंत पंचमी, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ के शांति निकेतन में इस दिन को बहुत उल्लास से मनाते हैं, ऐसा उसने कई जगह पढ़ा है, पीले वस्त्रों में सजी बंगाली बालाएं रवीन्द्र संगीत पर नृत्य करतीं व रंग उड़ाती कितनी आकर्षक लगती होगीं. नन्हे का स्कूल आज बंद है, और इस वक्त वह अपने एक सहपाठी ‘लामा’ के साथ ‘सरस्वती पूजा’ देखने गया है, बाहर बच्चों के झुंड, खासतौर से छोटी लडकियां साड़ी, लहंगा पहने पूजा देखने आ जा रही हैं. सुबह एक स्वप्न देख रही थी फिर अलार्म सुनाई पड़ा, आज ‘कुकड़ू कूं’ की जगह ‘धत तेरे की’ सुनाई पड़ रहा था. नन्हे की लापरवाही की वजह से उसे आज डांट खानी पड़ी, वह इतना क्रोध कर सकती है अब सोचकर ही अजीब लग रहा है, उस वक्त भी मन में यह विचार आ गया था कि क्रोध उन दोनों के लिए हानिकारक है, पर कभी-कभी वह इतना नासमझ बन जाता है कि...वैसे आमतौर पर समझदारी भरे काम ही करता है. कल शाम खेलते समय जून भी क्रोधित हो गये थे, जब वह  अच्छा नहीं खेल रही थी, इसका अर्थ यह हुआ, उसे जो मिला उसने आगे बढ़ा दिया, क्या हर बार हमारे क्रोध का कारण यही तो नहीं होता. कल रात जून ने कहा, उन्हें वसंत पंचमी के दिन बचपन में घर पर बनने वाला भोजन खाने का मन है, सो आज उनका मीनू है, चने की दाल की भरवां रोटी, चावल की खीर, साथ में उनके बगीचे में उगी पत्ता गोभी की सब्जी.

कल नन्हा दो बार सरस्वती पूजा देखने गया, तिलक लगाकर लौटा, उसने नहाए बिना ही पूजा भी कर ली, असत्य कहते समय उसे थोड़ी भी हिचकिचाहट नहीं हुई, अपनी सुविधा के लिए छोटे-मोटे झूठ बोल लेने चाहिये, जिससे किसी का कोई नुकसान न हो, ऐसा वह घर में उनसे ही सीखता आया है. आजकल यहाँ आकाश में दिन में कई बार फाइटर प्लेन उड़ते रहते हैं. नन्हा अक्सर बाहर जाकर उन्हें देखने का प्रयत्न करता है, मशीनों से उसका लगाव है. उसने बगीचे में झांककर देख, शाम को पानी देना होगा, माली आज सातवें दिन भी नहीं आया है, उस दिन फूलों के पौधे लाने के लिए पैसे लेकर गया था, शायद वह पैसे उसने कहीं और खर्च कर दिए या फिर बीमार पड़ गया हो.

“वैलेंटाइन डे”, सुना और पढ़ा है कि इस नाम के एक सन्त हुए थे, जो राजा क्लाडियस के हुक्म के बावजूद सिपाहियों की शादी करवाया करते थे. जो भी हो यह प्यार की स्मृति दिलाने का दिन है, पति-पत्नी हों या प्रेमी-प्रेमिका. अभी कुछ देर एक साधु बहुत मालाएं वगैरह पहने और एक औरत पड़ोसिन के घर से निकले, उसे लगा कहीं उनके घर न आ जाएँ, पर वे नहीं आये. कल उसने ‘राजा हिन्दुस्तानी’ देखी, अच्छी फिल्म है. आज क्लब में लेडीज क्लब का विशेष कार्यक्रम ‘हसबैंड नाईट’ है पर जून को वहाँ जाना पसंद नहीं है, वैसे ठीक भी है, अगर ख़ुशी न मिले तो जाने में कोई तुक नहीं. आज जून ब्रह्मपुत्र मेल में उनकी टिकट बुक कर आये हैं यानि की यात्रा पर जाने में एक महीना शेष है.

आज धूप ने दर्शन दिए हैं, सुबह गेट का ताला खोलने गयी तो सामने चाय बागान के ऊपर हल्के गुलाबी बादल दिखाई दिए, पतझड़ में झड़ गयी पत्तियों के कारण काले हो गये पेड़ और सलेटी आकाश, एक सुंदर दृश्य था. ‘जीवन यदि कुछ मूल्यों पर आधारित हो तभी सच्चे सुख का अनुभव किया जा सकता है’, कुछ देर पहले टीवी पर ब्रह्मकुमारी प्रजापति ईश्वरीय ज्ञान संस्था की हीरक जयंती के अवसर पर हुए मुख्य कार्यक्रम के कुछ अंश देखे, उसे विवाह पूर्व अपने घर के उस कमरे की याद हो आयी जब मंझला भाई ब्रह्म कुमारी आश्रम जाकर वहाँ से पुस्तकें तथा वहाँ के सिखाये योग, क्रियाओं आदि के बारे में बताता था. सामने एक मोमबत्ती रखकर उसकी ओर देखकर ध्यान करता था. ‘राजयोग’ आदि शब्द सम्भवतः तभी प्रथम बार उसने सुने थे. कल दीदी व काकू से बात की, उन्होंने कल ही उसे पत्र भी लिखा है, टेलीपैथी इसे ही कहते हैं.






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