Friday, May 3, 2013

महालया- पूजा की खरीदारी




 फिर पांच दिनों का अंतराल, इसी बीच नन्हे के स्कूल का समय बदला और फिर पूर्ववत हो गया. पहले का समय ही ठीक है, दोपहर को कम से कम दो घंटे सुकून से अखबार-पत्रिकाएँ पढ़ते हुए गुजरते हैं और नन्हे को भी सुबह आराम से तैयार होने का समय मिल जाता है. आज कई दिनों बाद पुराना स्वीपर आया है, अस्वस्थ दीखता है, परिवार नियोजन के इस युग में एक और बच्चे का पिता बना है, जाने कब लोगों को समझ आएगी. जून आज देर से आएंगे, फील्ड गए हैं, कल शाम को उनके सिर में दर्द था, नूना ने बाथरूम का दरवाजा जोर से बंद क्र दिया, वह इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान कहाँ रख पाती है. आज अभी तक स्नान भी नहीं हुआ है, दस बजने को हैं, सीमा, उसकी नैनी के दो भतीजे कुछ देर पहले आये थे. उसकी बहन की बेटी ‘बेबीसिटर’ काम छोड़कर चली गयी है, उससे नौ-दस माह का शरारती बच्चा नहीं संभलता और जेठ अपने बच्चों को इनके घर आने नहीं देता...हर तरफ वही दरार. रिश्तेदार कभी भी आपस में प्यार से रहते नहीं देखे, छोटे लोग हों, या मध्य वर्गीय या उच्च  वर्गीय, आपसी तकरार, टकराव हर जगह देखने को मिलता ही है. कल शाम वे पहले असमिया सखी के यहाँ गए फिर उस नन्ही बच्ची को देखने, वह बहुत छोटी सी लगी चिड़िया के बच्चे की तरह नाजुक, उसकी बड़ी बहन के लिए तो एक खिलौना है. उसने डायरी में नीचे लिखी आज की पंक्ति पढ़ी-  you can discover more about a person in an hour of play than in a year of conversation. यह भी खरी उतरती है उनकी कसौटी पर. कैरम खेलने से वे कितने करीब आ गए हैं, कल बहुत दिनों बाद बैडमिंटन भी खेला, और बागवानी की. कल कई दिनों बाद धूप निकली थी, गुलदाउदी के सारे पौधे धूप में रखे हैं.

  ऐसा कम ही होता है कि नन्हे के स्कूल में छुट्टी हो और उसे सुबह के सारे कार्य निपटाकर डायरी खोलने का अवसर मिल जाये, पर आज इसके दो कारण हैं, पहला तो यह कि सोमवार से होने वाले टेस्ट की पढ़ाई के लिए वह जल्दी उठ गया और दूसरा यह कि आज लंच में सिर्फ कढ़ी-चावल बनाने हैं, जो आधे घंटे का भी काम नहीं. कल शाम फिर उसी परिचिता से बहस में उलझ गयी हिंदी-इंग्लिश के मसले को लेकर. रात देर तक शाम की बातें दिमाग में छायी रहीं फिर ईश्वर की सुमधुर याद ने आश्रय दिया. महीनों से उस भावना का स्पर्श तक नहीं हुआ है जिसके वशीभूत होकर वे कवितायें लिखी थीं जिनमें ईश्वर के सौंदर्य का वर्णन होता था. इन्हीं सांसारिक सुखों को अपना लक्ष्य मानकर जीने वाली वह अनुभव करे भी तो कैसे, पर यह छोटे-छोटे सुख भी तो उसी ईश्वर के दिए हुए हैं न, उसके जीवन का हर सुखद क्षण उसी के असीम उदार भाव का ही तो प्रतीक है. पिछले हफ्ते की तरह इस हफ्ते भी घर से कोई पत्र नहीं आया है, उसने सोचा, वह भी तभी लिखेगी जब वास्तव में कोई लिखने वाली बात होगी. जून आज देर से आएंगे, उन्हें फिर फील्ड जाना पड़ा है. गर्मी कुछ हो ही गयी है, और सुबह से इधर-उधर के कार्यों में उसकी सारी ताकत जैसे खर्च हो चुकी है, कलम चलाने में हाथ को श्रम महसूस हो रहा है.

  आज पुरे सात दिनों के बाद कलम उठायी है. मौसम आज बहुत अच्छा है, ठंडी-ठंडी हवा जब चेहरे को छू जाती है तो सिहरन का अहसास होता है, गुलाबी ठंड की आमद ही आमद है. आज महालया है, यानि नवरात्रि भी आरम्भ हो रही है, पिछले दिनों वे व्यस्त रहे, नन्हे के इम्तहान थे, और उसकी वही जानी-पहचानी सी व्यस्तता. एक दिन लेडीज क्लब की मीटिंग भी थी, लेडीज ने स्टाल लगाये थे, वह भी एक सखी के साथ वस्त्रों के स्टाल पर खड़ी थी, एक गाउन उसने लिया भी. बड़े भाई के खत के जवाब के साथ और भी पत्र लिखे, सोचती है दीदी और बड़ी ननद को कार्ड्स के साथ खत भेजेगी. पिछले दो दिनों से सबको स्वप्नों में देखती है, अगली यात्रा तक स्वप्नों में देखकर ही तो रहना है न. एक दिन वह अपनी बंगाली सखी के यहाँ गयी, उसने ‘पूजा’ की खरीदारी दिखाई अच्छा लगा. उनकी खरीदारी अभी नहीं हुई है, शनिवार को जब वाशिंग मशीन खरीदने जायेंगे तभी वह अपने लिए सूट के कपड़े खरीदेगी. इसी बीच एक दिन जून से नाराज भी थी वह, पर उनके धैर्य और प्यार ने उसे जीत लिया, वह अद्भुत हैं, इतना गहरा प्यार है उनका और इतना बड़ा दिल भी. उसे उन पर गर्व है. नन्हे का वीडियो गेम भी पता किया पर बहुत मंहगा है, इधर पूरे देश में प्लेग की खतरनाक बीमारी के कारण दहशत सी फैली रही. दो अक्टूबर को को गाँधी जी का एक सौ पचीसवाँ जन्म दिन भी मनाया गया. बस इसी तरह बीत गए ये पिछले सात दिन.




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