Saturday, May 26, 2012

पानी चला गया


कल सुबह पौने नौ बजे पानी व बिजली दोनों नदारद हो गए कुछ घंटो के लिये, वापस आये सवा  तीन बजे, कुछ पानी हमेशा गर्म पानी की टंकी में रहता है सो काम किसी तरह चल गया. कम पानी से काम चलाना कोई उनकी महरी से सीखे, आधी बाल्टी पानी में उसने सारे बर्तन धो दिए फिर उनके इस्तेमाल के लिये कहीं से एक बाल्टी पानी ले आयी. जून ने उसे फिर समझाया कि मनुष्य में हर परिस्थिति में रहने की, सामंजस्य बिठाने की ताकत होनी चाहिए. कल दोपहर गर्मी की वजह से वह बहुत परेशान हो गयी थी.
आज सुबह वे सो ही रहे थे कि उनके पड़ोसी के द्वारा मालूम हुआ कि उनकी पत्नी ने बीती रात साढ़े बारह बजे बेटे को जन्म दिया है, नूना ने सोचा उसका जन्मदिन छह जून को मनाया जायेगा, वह उसे देखने जायेगी,
वह जून के साथ अस्पताल गयी थी उसकी सखी ने बताया कि अंत में आपरेशन करना पड़ा. जून कहता है कि उसके साथ ऐसी कोई समस्या नहीं होगी, काश ! ऐसा ही हो, उसने सोचा. देह का दर्द तो सहा जा सकता है पर मन का भय कहीं ज्यादा है. आजकल उसे रात भर में नींद बहुत कम आती है. उसकी मानसिक असहजता बढ़ गयी है, वह जल्दी-जल्दी अधीर हो जाती है. जून उसे समझाता है पर प्रश्न यह है कि उसे दुःख है ही क्या ? सिवाय उसके मन की दुर्बलता के, और इसे और कोई दूर नहीं कर सकता जब तक कि वह स्वयं न चाहे.


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